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जॉबलेस ग्रोथ: देश में बेरोजगारी की भयावह तस्वीर

” देश में रोजगार सृजन की गति काफी धीमी है।”

नई दिल्ली। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट ने मोदी सरकार की चिंता बढ़ा दी है। रिपोर्ट की मानें तो देश में बेरोजगारों की संख्या लगातार बढ़ रही है। वर्तमान सरकार की रोजगार सृजन नीतियां इससे निपटने के लिए प्रर्याप्त नहीं है। जबकि केन्द्र सरकार का कहना है कि रोजगार सृजन के लिए नये-नये प्रयास किये जा रहे हैं, कई योजनाएं चलाई जा रही हैं। विश्व बैंक की रिपोर्ट ने केन्द्र के दावों की पोल खोल दी है। आर्थिक समीक्षकों का भी मानना है कि सरकार की कई योजनाएं जो रोजगार प्रदान करने में अच्छी भूमिका निभाती लेकिन आज वह जमीन पर भी नहीं दिखाई देती है। केन्द्र सरकार की कई योजनाएं नोटबंदी की भेंट चढ़ गई।

बहरहाल, नोटबंदी और जीएसटी के नकारात्मक प्रभाव के कारण देश में बेरोजगारों की संख्या तेजी से बढ़ी है। वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक देश की आर्थिक वृद्धि चालू वित्त वर्ष में 7.3 प्रतिशत रहने का अनुमान है। हालांकि आगामी वर्षों में आर्थिक वृद्धि में तेजी के आसार हैं। लेकिन जहां तक देश में बढ़ती बेरोजगारी का सवाल है तो भारत सरकार की रोजगार सृजन की नीतियां उतना प्रभावी नहीं दिख रही है जिससे कहा जाये कि आने वाले दिनों में बेरोजगारी की दर में कमी आ सकती है। नोटबंदी के बाद उस रिक्तता की भरपाई करना केन्द्र सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। व्यवहारिक स्तर पर देखें तो देश में रोजगार सृजन की गति काफी धीमी है।

नोटबंदी और जीएसटी के कारण खुदरा कारोबार क्षेत्र सिमट गया है। वहीं उद्योग जगत भी जीएसटी के कारण हांफ रहा है। उत्पादन और निर्यात में भारी अंतर दिख रहे हैं। जबकि रियल इस्टेट सेक्टर अब भी नोटबदीं की मार से पूरी तरह नहीं उबरा है। देश के असंगठित मजदूर तबका एवं कर्मचारी इन्हीं क्षेत्रों से आजीविका चला रहे थे। रियल्टी सेक्टर में आई मंदी ने भी देश में बेरोजगारी बढ़ाई है। विश्व बैंक का कहना है कि भारत सरकार को बेरोजगारी की समस्या का हल करने के लिए प्रत्येक साल 81 लाख रोजगार सृजन की फूलप्रुफ नीतियां बनानी होगी।

मतलब, यह स्पष्ट हो गया कि देश में जब तक इंफ्रास्ट्रक्चर एवं उद्योग जगत में तेजी नहीं आयेगी बेरोजगारी की समस्या का समाधान संभव नहीं है। क्योंकि किसी भी देश में ये दो ऐसे सेक्टर हैं जहां औसतन हर तबके के बड़ी संख्या में लोग रोजगार पाते हैं, और ये सेक्टर देश की आर्थिक वृद्धि को भी विस्तार देते हैं। 2005-2015 के आंकड़ों के आधार पर कहा जा रहा है कि देश में रोजगार सृजन की दर में गिरावट आई है। कारोबार का हर सेक्टर कुछ नीतिगत समस्याओं से जूझ रहा है। नोटबंदी के बाद जीएसटी की नीतियों ने कारोबारियों के सामने मुश्किलें खड़ी की हैं। हालांकि सरकार ने जीएसटी से जुड़ी नीतियों को सरल किया है। लेकिन देश के कारोबारी अभी तक जीएसटी के फ्रेम में फिट नहीं बैठे हैं।

जबकि उद्योग संगठन पीएचडी चैम्बर की रिपोर्ट बताती है कि नोटबंदी और जीएसटी के कारण 2017-18 में देश का निर्यात प्रभावित हुआ है। मतलब, सरकार की कुछ पेचींदगी भरी नीतियों के कारण वैश्विक स्तर पर देश का कारोबार प्रभावित हो रहा है। रिपोर्ट का कहना है कि तमाम सुधारों के बाद भी नोटबंदी का प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक पिछले वित्त वर्ष में देश का निर्यात 302.8 अरब डॉलर का रहा, जो वैश्विक अनुमान के अनुकूल नही है। अनुमान था कि भारत का निर्यात 325 अरब डॉलर तक पहुंचेगा।

पीएचडी चैम्बर का मानना है कि नोटबंदी और जीएसटी के कारण उत्पादन और निर्यात दोनों अब तक प्रभावित हैं। इस रिपोर्ट को भी रोजगार सृजन और बेरोजगारी की कड़ी से जोड़कर देखा जा रहा है। अगर जीएसटी से कारोबार प्रभावित हो रहे हैं तो रोजगार प्रभावित होना तय है। हाल ही में पीएचडी चैम्बर ने ‘‘कारोबार, उद्योग एवं निर्यातकों पर जीएसटी का असर ’’ नामक एक रिपोर्ट तैयार की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि नोटबंदी और जीएसटी की नीतिगत खामियों के कारण संरचनात्मक एवं अन्य घरेलू कारकों से निर्यात प्रभावित हुआ है। नीतिगत खामियों के कारण देश के कारोबारी वैश्विक बाजारों के अवसर का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं।

बहरहाल, देश में बढ़ती बेरोजगारी केन्द्र सरकार के सामने बड़ी चुनौती है। इससे निपटने के लिए सरकार को और ठोस कदम उठाने की जरूरत है। इस देश में युवा वर्ग की बड़ी तादाद है। लेकिन सीमित होती नौकरियां, खत्म होते कारोबार और बढ़ती महंगाई ने देश के युवा वर्ग की सोच को अपंग बना दिया है, और इस कड़वे सच को भारत सरकार को व्यवहारिक नजरिये से देखने की जरूरत है।

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