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कोरोना, ऐसी मौत ना देना: शवों की लम्बी कतारों से सिस्टम ही नहीं मानवता भी शर्मसार

अब यहां के लोगों को दलगत विचारधाराओं से उपर उठकर बौद्धिकता का परिचय देना होगा। अन्यथा, आप हमेशा ठगे जाते रहे हैं और भविष्य में भी ठगे जाते रहेंगे। क्योंकि, आप जैसा चाहते हैं वैसा ही नेता आपको मिलता है। अपनों के खोने का गम मीडिया पैनलों में हल्ला करने एवं अपनी पार्टियों को कवरअप करने वाले नहीं समझ सकते। क्योंकि भ्रष्टाचार का दीमक सिर्फ सिस्टम को नहीं बल्कि मानवता को भी खोखला कर दिया है।

देश में कोरोना की दूसरी लहर अधिक जानलेवा साबित हो रही है। इस महामारी ने देश की लचर सरकारी सिस्टम और बीमार अस्पतालों की पोल खोल दी है। कोरोना मरीजों की मौत के आंकड़े प्रतिदिन अपने ही रिकॉर्ड तोड़ रहे हैं। आरोप यह भी लग रहे हैं कि कोरोना से होने वाली मौतों के आंकड़े राज्य सरकारें छिपा रही है।

कोरोना के कारण मृत शरीर को कहीं दो गज जमीन मय्यस्सर नहीं हो रही जबकि अपनों से अंतिम संस्कार तो मुनासिब ही नहीं है। इस विकट घड़ी में लोग अपने परिजनों के मृत शरीर का संस्कार करना भी उचित नहीं समझ रहे हैं। ज्यादातर मृत शरीर का दाह संस्कार एवं दफन सरकारी कर्मचारी और स्वयंसेवी संस्थाओं वाले ही कर रहे हैं।

खाक में मिलने के लिए कतारों में लगी फूल पैकिंग डेड बॉडी अपनी बारी का इंतजार करती हुई शासन की बदइंतजामी को भी बयां कर रही है। लगातार जलती चितांएं और श्मशान का खौफनाक मंजर देखकर इंसान तो क्या बेजुबान भी रो रहे हैं। यह सुनकर ही इंसान विचलित हो जा रहा है कि एक साथ तीन-चार शव जलाये जा रहे हैं और एक बड़ा गड्ढा खोदकर एक साथ कई मुर्दो को दफन किये जा रहे हैं।

मरीजों को जलाने और दफनाने के लिए श्मशान और कब्रिस्तान में जमीन कम पड़ गई है। कई राज्यों की सरकारों ने वैकल्पिक व्यवस्था करते हुए पार्को में ही शवों को जलाने का इंतजाम किया है। लेकिन इन मौतों ने शासन की नाकामियों को भी उजागर कर दिया है।

इस दौरान नेताओं का वास्तविक चरित्र और चेहरा भी सामने आ गया जब वह अपनी जिम्मेदारियों से भागते हुए इसका ठीकरा दूसरों (केन्द्र सरकार) पर फोड़ने लगे। अगर राज्य सरकारें अपनी नैतिक जिम्मेदारियों को भी पूरा कर लेती तो हालात इतने विकराल नहीं होते।

बदइंतजामी की वजह से कोरोना मरीजों के मरने के बाद चीखते-चिल्लाते उनके परिजनों को देखकर रूह कांप जा रही है। लेकिन ऐसे विकट समय में भी कुछ नेता मौत पर राजनीति करने में पीछे नहीं हैं और अपना चेहरा चमकाने के लिए अखबारों और टीवी पर विज्ञापन दे रहे हैं। अगर उतना ही खर्च अपने राज्य में चिकित्सकीय व्यवस्था सुधारने में कर दिये होते तो आज ऐसी नौबत नहीं आती।

जबकि, सच तो यह है कि इस देश में पिछले सत्तर सालों में कुछ बड़े शहरों को छोड़कर स्वास्थ्य सेवाओं पर बुनियादी स्तर पर भी काम नहीं हुए हैं। अस्पतालों की सिर्फ इमारतें बना देना ही बुनियादी काम नहीं है। सुदूर के अस्पतालों में जाकर देख लीजिए, वहां आवश्यक संसाधनों के अभाव में मरीज दम तोड़ देते हैं। कोरोना तो एक बहाना है कि यह एक राष्ट्रीय आपदा है।

राज्य सरकारें बदइंतजामी का ठीकरा केन्द्र सरकार पर फोड़ने का भरसक प्रयास कर ले, लेकिन वह सरकार जनता की नजरों से गिर चुकी है जो इस विकट परिस्थतियों में राजनीति करने से बाज नहीं आ रही है। उन सरकारों और नेताओं की बेहयाई और बेशर्मी को देखकर यह कहना पड़ रहा है कि उन्हें जनता का प्रतिनिधि नहीं बनाया जाता तो बेहतर होता। अब देश की जनता को पूरी उम्मीद हो चुकी है कि केन्द्र सरकार इस प्रतिकूल हालात से निपट लेगी। भले ही इसमे कुछ समय लगे।

कभी सोचा है आपने कि, ओवरऑल हेल्थ सिस्टम परफार्मेंस में भारत की रैंकिंग दुनिया में 112वें नंबर पर क्यों हैं। छोटे-छोटे देश भारत से आगे हैं जहां जरूरतों से जुड़ी संसाधनों के लिए भी विकसित देशों पर निर्भर रहना पड़ता है।
लेकिन, भारत में शिशु मृत्यु दर, गर्भवती महिलाओं की मृत्यु दर, कुपोषण, भूखमरी, टीबी, कैंसर एवं असाध्य बीमारियों से लड़ने के लिए इस देश का हेल्थ सिस्टम तैयार नहीं है। इस देश के लोगों में हालात से लड़ने और अभावों में भी जीने का जज्बा उन्हें जिंदा रखे हुए है। अन्यथा यहां की तुष्टिकरण की राजनीति और करप्ट ब्यूरोक्रेसी की सांठ-गांठ ने तो कफन में भी कमीशन खाने का जुगाड़ सेट कर लिया है।

याद रखिए, सरकारें आती-जाती रहेंगी, लेकिन जिनका अपना चला गया वह लौटकर नहीं आयेगा। इससे बड़ा संताप और क्या हो सकता है कि एक बुढ़ा बाप अपने बेटे की मृत शरीर के सामने बदहवास खड़ा है। उस सीलपैक डेड बॉडी को अपनी पथरायी आंखों से एक बार उसका अंतिम चेहरा देखने की गुहार लगा रहा है। एक लाचार पत्नि अपने पति की उखड़ती सांसों को बचाने के लिए ऑक्सीजन के लिए दर-दर भटक रही है, तो कोई अस्पताल के बाहर बेड के इंतजार में जमीन पर पड़-पड़ा ही दम तोड़ दे रहा है। कोरोना काल में ऐसे अनगिनत लोमहर्षक दृश्य जिसे देखकर लोग कह रहें कि कोरोना ऐसी मौत किसी को ना देना, जिसे अपनों से अंतिम विदाई भी नसीब न हो।

कोरोना वायरस आज मानवता पर भारी पड़ता दिख रहा है। ऑक्सीजन, रेमेडिसिविर सहित कोरोना महामारी से संबंधित जरूरी संसाधनों की कालाबाजारी में एक बड़ी लॉबी सक्रिय हो गई है, जिसमें बड़े अस्पतालों के डॉक्टर, बड़े व्यवसायी और दलाल शामिल हैं। वह और लाशों के गिरने का इंतजार कर रहे हैं। अभी इनकी क्षुधा नहीं भरी है।

इस बीमारी को लेकर सिस्टम पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं कि इन परिस्थतियों से निपटने की व्यवस्था पहले क्यों नहीं की गई। केन्द्र सरकार की जारी दिशा-निर्देश के अनुसार ऑक्सीजन सिलेंडर की व्यवस्था के लिए सभी राज्यों से एक साल पहले ही प्लांट स्थापित करने को कहा गया है।

जब सरकारें वर्ल्ड क्लास सिस्टम को अपनाने की बात करती है तो नागरिकों की मौलिक जरूरतों का ख्याल रखना क्यों जरूरी नहीं समझती। कोरोना के पहले फेज में अगर उन जरूरी मुद्दों पर काम कर लिया गया होता तो आज ऐसी नौबत नहीं आती। मरीज ऑक्सीजन के बिना तड़पकर नहीं मरते और बेबस परिजन सिस्टम और भाग्य को दोष नहीं देते। इन तमाम हालातों के लिए सिस्टम को जिम्मेदार कैसे नहीं ठहराया जा सकता।

विज्ञापन एवं अन्य गैरजरूरी वस्तुओं पर करोड़ों खर्च करने वाली राज्य सरकारें जब इस आपदा के लिए केन्द्र को दोषी ठहरा रही है तो अब ऐसा लग रहा है कि देश में पनप रहे कुकुरमुत्तों की तरह अवसरवादी नेताओं और राजनीतिक पार्टियों को अलविदा कहने का वक्त आ गया है। क्योंकि जब सारी जिम्मेदारी केन्द्र को ही उठानी है तो फिर आपकी क्या जरूरत है।

वहीं, गिद्धों और सियारों की भांति मुर्दों की बोटी नोचने के लिए ताक में बैठी मीडिया की लॉबी भी इस देश की बदहाल व्यवस्था के लिए कम जिम्मेदार नहीं है। खट्टे अंगूर की कहानी आज उस मीडिया पर सटीक बैठती है कि अगर सरकार उसके एजेंडे में फिट नहीं है तो उसकी बखिया उघेड़ने मे कोई कसर नहीं छोड़ती। वहीं कोई नकारा सरकार अगर विज्ञापन की चासनी में मीडिया लॉबी को डूबाते रहे तो उसका दिनभर गुणगान करते नहीं थकते।

अब यहां के लोगों को दलगत विचारधाराओं से उपर उठकर बौद्धिकता का परिचय देना होगा। अन्यथा, आप हमेशा ठगे जाते रहे हैं और भविष्य में भी ठगे जाते रहेंगे। क्योंकि, आप जैसा चाहते हैं वैसा ही नेता आपको मिलता है। अपनों के खोने का गम मीडिया पैनलों में हल्ला करने एवं अपनी पार्टियों को कवरअप करने वाले नहीं समझ सकते। क्योंकि भ्रष्टाचार का दीमक सिर्फ सिस्टम को नहीं बल्कि मानवता को भी खोखला कर दिया है।

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