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मणिपुर : दशकों से चल रहा धर्मांतरण का खेल अब राष्ट्रीय संकट बनकर उभरा

* मणिपुर में मैतेई की आबादी अब महज 10 फीसदी बची है *

* नगा और कूकी द्वारा मैतेई पर जुल्म से इसाई कंवर्जन को बल मिला *

” दूसरा कश्मीर बनने की राह पर मणिपुर “

नगा और कूकी जनजाति की आबादी अधिक होने के कारण सत्ता में भी इनकी पकड़ मजबूत है। राजनीतिक दलों के लिए नगा और कूकी जनजाति बड़ा वोट बैंक है। यही कारण है कि स्थानीय नेता नगा और कूकी के खिलाफ बोलने से परहेज कर रहे हैं।
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मणिपुर में जो कुछ भी हो रहा है उसमें एक बड़ी साजिश की बू आ रही है। मणिपुर में मूलतः नगा, कूकी और मैतेई समुदाय के लोग रहते हैं। मणिपुर में लड़ाई कुकी और मैतेई के बीच आपसी रंजिश से आगे निकल चुकी है। इस लड़ाई में स्थानीय नेता अपना नफा नुकसान देखकर ही बयान दे रहे है।

नगा और कूकी जो मूलतः इसाई है और उन्हें एसटी का दर्जा प्राप्त हैं। वह नहीं चाहते हैं कि मैतेई को एसटी का लाभ दिया जाये। इसके लिए सरकार पर दबाव बनाने के लिए मणिपुर में विरोध शुरू हो गये। यह विरोध आगे चलकर विद्रोह का रूप ले लिया। इस विद्रोह की आग में पिछले दो महीने से मणिपुर जल रहा है।

आंकड़े बता रहे हैं कि नगा और कूकी समुदाय के लोग ज्यादातर इसाई है जबकि मैतेई समुदाय के लोग हिन्दू धर्म को मानने वाले है। लेकिन मणिपुर में कई दशकों से हो रहे धर्मांतरण के कारण मैतेई अल्पसंख्यक हो गए।

दरअसल, मैतेई वहां के मूल निवासी हैं। जबकि नगा जनजाति पड़ोसी राज्य नगालैंड से भी आकर वहां बसी है और नगा जनजाति की 99 फीसदी आबादी इसाई धर्म को मानती है। जबकि कूकी जनजाति धर्मांतरित होकर इसाई बन चुकी है।

वहीं मैतेई जनजाति का भी इतनी तेजी से धर्मांतरण हुआ कि महज 10 फीसदी आबादी ही वैष्णव को मानने वाली है। वैष्णव का मतलब हिन्दू धर्म में आस्था रखने वाले लोगों की अब मणिपुर में बहुत कम संख्या रह गई है। जिस कारण मैतेई माइनरिटी कैटेगरी में आ गई है।

सूत्र बताते हैं कि मणिपुर के 90 फीसदी भूभाग पर नगा और कूकी जनजाति का कब्जा है। कभी भारत पर राज करनी वाली ब्रिटिश सरकार ने इस क्षेत्र में अफीम की खेती का बढ़ावा दिया था।

इसाई मिशनरी के दबाव में धर्मांतरित इसाई को सरकार ने एसटी का दर्जा दे दिया। इसाई मिशनरी मणिपुर में धर्मांतरण का खेल बेरोकटोक जारी है।

नतीजा यह हुआ कि कई दशकों से हो रहा धर्मांतरण का खेल आज भारत की अस्मिता के लिए एक संकट बन गया है। इससे पहले भी कई बार नगा और मैतेई के बीच खूनी संघर्ष हुआ है।

नगा और कूकी जनजाति की आबादी अधिक होने के कारण सत्ता में भी इनकी पकड़ मजबूत है। राजनीतिक दलों के लिए नगा और कूकी बड़ा वोट बैंक है। यही कारण है कि स्थानीय नेता नगा और कूकी के खिलाफ बोलने से परहेज कर रहे हैं।

पिछले दो महीने से मणिपुर में हो रहे विद्रोह, महिलाओं के साथ अत्याचार और मैतेई जाति का पलायन एक राष्ट्रीय संकट के रूप में उभरा। जिसपर प्रधानमंत्री कार्यालय से लेकर सर्वोच्च न्यायालय को भी संज्ञान लेना पड़ा।

इतिहासकार और पुरातत्ववेता डॉ. शत्रुघ्न डांगी का कहना है कि अगर भारत की सरकार देश की विविधताओं को संरक्षित करने पर कार्य करने लगे तो ऐसी नौबत ही नहीं आएगी। क्योंकि इस देश की हर जाति और जनजाति में एक अलग तरह की विविधता है जो भारत को अखंड भारत बनाता है।

डॉ. शत्रुघ्न डांगी का यह भी मानना है कि भारत सरकार अगर जाति और जनजातीय विविधताओं को संरक्षित करती है तो धर्मांतरण पर भी रोक लग सकती है। आजादी के बाद भारत में जनजातियों का सबसे ज्यादा धर्मांतरण किया गया है।मणिपुर के वर्तमान हालात से यह स्पष्ट हो रहे हैं कि यहां पर मैतेई जाति का शोषण हो रहा है। अगर ऐसी परिस्थितियां लम्बे समय तक रही तो पूर्वोत्तर भारत में उग्रवाद और अलगाववाद की जड़ें पुनः मजबूत होने लगेगी।

आजादी के बाद जब मणिपुर का भारत में विलय हुआ तो नगा और कूकी जनजाति को एसटी का दर्जा दे दिया गया। लेकिन इससे मैतेई को अलग रखा गया। मैतेई को सामान्य कैटैगरी में ही रखा गया। इसी का फायदा नगा और कूकी जनजाति उठाने लगी और मैतेई के अधिकारों का भी दोहन करने लगी। राज्य का शासन-प्रशासन से भी मैतेई को बहुत राहत नहीं मिली। नगा और कूकी द्वारा मैतेई पर जुल्म से इसाई कंवर्जन को बल मिला।

परेशान होकर मैतेई जाति के लोग इसाई मिशनरियों के चुगुल में फंसने लगे और बड़े-बड़े सब्जबाग दिखाये जाने के बाद तेजी से धर्मांतरित होेने लगे। मैतेई जाति के लोग जो इसाई बन गये उनके लिए कुछ राह आसान हो गई लेकिन जो धर्मांतरित नहीं हुए उन्हें जुल्म सहना पड़ा। तेजी से धर्मांतरण से मैतेई की आबादी कम हो गई और अब वह केन्द्र के पैमाने के अनुसार माइनरिटी कैटेगरी में शामिल हो गये।

मैतेई जाति के लोग राज्य में एसटी का दर्जा पाने के लिए मणिपुर उच्च न्यायायलय में अपील दर्ज की। उच्च न्यायालय ने मैतेई के लिए सरकार को इसकी नियमावली तय करने का आदेश दिया।

मणिपुर उच्च न्यायालय के आदेश के बाद राज्य के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने अपने बयान में कहा था कि अब मैतेई जनजाति को एसटी का स्टेटस मिलेगा और वह मणिपुर में कहीं भी, किसी भी भूभाग पर बस सकते हैं, जमीन खरीद सकते हैं। एन बीरेन सिंह ने यह भी कहा था कि मणिपुर में बसे अवैध लोगों की पहचान की जायेगी। ताकि राज्य की संपतियों का यहां के निवासी लाभ उठा सकें।

यहां मानकर चलिए कि पूर्वाेत्तर में अगर अवैध लोगों की शिनाख्त की जाती है तो सबसे ज्यादा बांग्लादेशी और म्यांमार के रोंहिंग्या पकड़े जायेंगे। ये लोग यहां बडे स्तर अफीम की तस्करी में लिप्त होने के साथ-साथ कई अवैध धंधों में लिप्त हैं। मणिपुर में अवैध तरीके से प्रवास करने वाले राष्ट्र की सुरक्षा के लिए भी खतरा बने हुए हैं।

मैतेई को एसटी का दर्जा दिये जाने और अवैध लोगों की शिनाख्ती के बारे में मुख्यमंत्री एन.वीरेन्द्र सिंह के बयान से कूकी और नगा जनजति खफा हो गये। सड़कों पर विद्रोह शुरू हो गये। संरकारी संपतियों को नुकसान पहुंचाने लगे। मैतेई जाति के लोंगो पर कूकी और नगा जनजाति अत्याचार करने लगे। उनके घरों को को लूटने लगे, आग के हवाले करने लगे। मैतेई महिलाओं के साथ अभद्र तरीके से व्यवहार करने लगे। मौत के डर से बड़ी संख्या में मैतेई जाति के लोग पलायन कर गये हैं। कुछ लोगों को सरकारी सुरक्षा में राहत शिविरों में रखा गया है।

लेकिन इतना तय है कि कूकी, नगा और मैतेई की यह लड़ाई यहीं पर खत्म नहीं होेने वाली है। विद्रोह करने वाले लोग एक तरफ मणिपुर से मैतेई को भगाने की रणनीति पर काम कर रहे हैें तो दूसरी ओर राज्य सरकार पर भी दबाव बनाये हुए हैं।

यह मानकर चलिए कि कुछ मामले ही मीडिया के सामने आने पर देश भर में बवाल है। जबकि जमीनी स्तर पर तो मैतेई के खिलाफ हिंसा चरम पर है। यहीं कारण तो लोग वहां से भागकर कहीं और ठिकाना बनाने लगे हैं।

कूकी और नगा समुदाय के लोग यहीं चाहते भी कि मैतेई खुद यहां से भाग जाये। इसलिए नगा और कूकी ने इनके खिलाफ हिंसात्मक गतिविधियो को तेज कर दिया।

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