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मुस्लिम देशों में अल्पसंख्यक धार्मिक उत्पीड़न के शिकार हैं ?

यूएन सहित कई अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों की रिपोर्ट की मानें तो पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के अल्पसंख्यक समुदाय बौद्ध, इसाई, हिन्दू, सिख और जैन धार्मिक उत्पीडन के शिकार हैं। उनकी धार्मिक और संवैधानिक आजादी बहुत सीमित है। इन तीनों देशों में गैर मुस्लिमों के धर्मांतरण का एक लम्बा दौर चला है और आज भी जारी है। पाकिस्तान तो गैर मुस्लिमों के साथ धार्मिक उत्पीड़न के लिए दुनिया भर में बदनाम है। जबकि, अफगानिस्तान में पाकिस्तान प्रायोजित तालिबान की सरकार बनने के बाद वहां अल्पसंख्यकों के लिए सबसे बुरा दौर आया। वहां गैर मुस्लिमों को बंदूक की नोक पर बड़े पैमाने पर धर्मांतरण कराया गया, जबकि धर्म नहीं बदलने वाले को भयानक मौत दी जाती थी। कई अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों की रिपोर्ट बताते हैं कि भारत-पाकिस्तान बंटवारे के समय पाकिस्तान में 22 फीसदी अल्पसंख्यकों की आबादी थी जो आज मात्र 3 फीसदी रह गई है। जबकि, बांग्लादेश वजूद में आने के बाद वहां की तीस फीसदी अल्पसंख्यकों की आबादी आज मात्र सात फीसदी रह गई है। ये आंकड़े इस बात के गवाह है कि इन देशों में एक षडयंत्र के तहत अल्पसंख्यकों का धर्मांतरण कराया जा रहा है।

भारत सरकार द्वारा संशोधित नागरिकता विधेयक को कानूनी जामा पहनाने के बाद देश में अब यह विरोध हिन्दू बनाम मुस्लिम के रूप में देखा जा रहा है। विपक्ष तो सरकार से टकराने के लिए हर मोर्चे पर तैयारी कर रही है। जबकि इस मुद्दे पर देश के बुद्धिजीवी दो भागों में बंटते नजर आ रहे हैं। सभी के अपने-अपने तर्क हैं। कोई सरकार के इस फैसले को सही ठहरा रहे हैं तो कोई गलत। विरोध का आलम यह है कि दिल्ली में जामिया सहित कई कॉलेजों के छात्र सड़क पर आंदोलन कर रहे हैं और इस कानून को निरस्त करने की मांग कर रहे हैं। विरोध करने वाले प्रदर्शनकारियों का यहां तक कहना है कि अगर विदेशियों को विशेषकर पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के लोगों को नागारिकता देने का आधार धार्मिक प्रताड़ना ही है तो मुसलमान को इससे क्यों अलग रखा गया है। प्रदर्शनकारियों के साथ-साथ विपक्ष के नेता भी इस बात को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं कि इन देशों में अल्पसंख्यकों को धार्मिक प्रताड़ना सहनी पड़ती है।

जबकि, कई अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों की रिपोर्ट बताते हैं कि भारत-पाकिस्तान बंटवारे के समय में पाकिस्तान में 22 फीसदी अल्पसंख्यकों की आबादी थी जो आज मात्र 3 फीसदी रह गई है। जबकि बांग्लादेश वजूद में आने के बाद  वहां की तीस फीसदी अल्पसंख्यकों की आबादी आज मात्र सात फीसदी रह गई है। ये आंकड़े इस बात के गवाह है कि इन देशों में एक षडयंत्र के तहत अल्पसंख्यकों का धर्मांतरण कराया जा रहा है।

बांग्लादेश जब अस्तित्व मे आया तो वहां बांग्लादेशी कहलाने वाले बंगाली हिन्दुओें ने अपनी संस्कृति और परम्परा को बचाये रखने की भरपूर कोशिश की। लेकिन वहां तेजी से कट्टरपंथ का उद्भव हुआ और उसका परिणाम यह हुआ कि कट्टरपंथियों ने सबसे पहले बंगाली हिन्दुओं को अपना निशाना बनाया और उनकी आस्था, परम्परा और धार्मिक प्रतीकों को मिटाना शुरू कर दिया। विरोध करने वाले को गोलियों से भूनने में जरा भी देर नहीं लगती थी। राह चलती बंगाली लड़कियों को अपहरण कर लेना, फिर जबरन धर्मांतरण और निकाह…, यह सारा खेल खुले तौर पर होने लगा।

ऐसा नहीं है कि यह सारा खेल एक दिन में हुआ है और इस खबर से भारत सरकार अनभिज्ञ रही। लेकिन धर्मनिरपेक्षता का चोला ओढ़कर विदेश नीति बनाने वाली भारत की पूर्ववर्ती सरकारें इन देशों में अल्पसंख्यकों के धार्मिक उत्पीड़न पर मरहम लगाना भी उचित नहीं समझती थी। लिहाजा इन देशों में अल्पसंख्यकों पर जुल्म होते गये और वे सभी इसे अपनी तकदीर मानकर बर्दाश्त करते गये।

संयुक्त राष्ट्र ने भी माना कि इन देशों में अल्पसंख्यकों पर जुल्म हो रहे हैं। यूएन सहित कई अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों की रिपोर्ट की मानें तो इन इस्लामिक देशों में वहां के अल्पसंख्यक समुदाय बौद्ध, इसाई, हिन्दू, सिख और जैन धार्मिक उत्पीडन के शिकार हैं। उनकी धार्मिक और संवैधानिक आजादी बहुत सीमित है। इन तीनों देशों में गैर मुस्लिमों के धर्मांतरण का एक लम्बा दौर चला है और आज भी जारी है। पाकिस्तान तो गैर मुस्लिमों के साथ धार्मिक उत्पीड़न के लिए दुनिया भर में बदनाम हैं। जबकि, अफगानिस्तान में पाकिस्तान प्रायोजित तालिबान की सरकार बनने के बाद वहां अल्पसंख्यकों के लिए सबसे बुरा दौर आया। वहां गैर मुस्लिमों कों बंदूक की नोक पर बड़े पैमाने पर धर्मांतरण कराया गया, जबकि धर्म नहीं बदलने वाले को भयानक मौत दी जाती थी।

अफगानिस्तान में तालिबानी शासन के दौर में कट्टरपंथ काफी फला-फूला। बामियान में गौतम बुद्ध की दुनिया की सबसे उंची मूर्ति को तालिबानियों नें टैंक से ध्वस्त कर दिया। गैर मुस्लिमों को लेकर पाकिस्तान का एजेंडा अफगानिस्तान में काफी सफल रहा, लेकिन बांग्लादेश में इस्लामिक एजेंडा पूरा करना पाकिस्तान के लिए आसान नहीं रहा। क्योंकि दोनों देशों के रिश्ते कभी सामान्य नहीं रहे। लिहाजा पाकिस्तान के कट्टरपंथियों ने दीन के विस्तार के नाम पर बांग्लादेश के उलेमाओं से संपर्क साधा और पैसे का लालच देकर अपने मंशूबों को पूरा करने का अब तक प्रयास कर रहा है। इतना ही नहीं बांग्लादेश के युवा वर्ग को इस्लाम के नाम पर कट्टरपंथ का चोला ओढ़ाने में पाकिस्तान ने आंशिक सफलता पा ली है। उसी रणनीति के तहत बांग्लादेश में अल्पसंख्यक लड़कियों को अगवा करना, जबरन धर्म परिवर्तन और फिर शादी की घटनाएं आम होती गई। अभिभावक चाहकर भी कुछ नहीं कर पाते क्योंकि वहां उनकी सुनने वाला कोई नहीं है। जब विवाद बहुत ज्यादा बढ़ता है या प्रशासन पर उपर से दबाव आता है तो वह घटना फाइल में दर्ज होती है। अन्यथा अल्पसंख्यकों के मानवाधिकरों का हनन इस्लामिक देशो में बहुत छोटी बात है। यही कारण है बांग्लादेश में भी अल्पसंख्यकों की आबादी में तेजी से गिरावट आई है। क्योंकि चरमपंथी गिरोह में कुछ ऐसे लोग शामिल होते हैं जो सत्ता के बहुत करीब होते हैं या सत्ता में रहते हुए भी अप्रत्यक्ष रूप से इस तरह का एजेंडा चलाते हैं। इन देशों में अल्पसंख्यकों की आबादी में तेजी से गिरावट की वजह क्या हैं, इस सवाल पर वहां की सरकारें निरूत्तर हो जाती है और तर्कहीन दलील देकर इस सवाल से मुंह मोड़ने लगती है।

बांग्लादेश की सरकार इस बात को मानने को कतई तैयार नहीं है कि उनके देश में धार्मिक कट्टरपंथ है और गैर मुस्लिमों को धार्मिक प्रताड़ना सहनी पड़ती है। लेकिन पिछले साल बांग्लादेश में एक आतंकी हमले में जब कई रसूखदारों के बच्चों की संलिप्तता सामने आई तब आनन-फानन में वहां की सरकार ने सघन जांच बैठा दी। इस जांच में कई मदरसों, मौलवी और उलेमाओं की अंतर्राष्ट्रीय गिरोह के साथ संलिप्तता सामने आई, जो पाकिस्तान से संचालित होता है। करीब 90 के दशक से ही वहां के काजी और मौलवी चरमपंथ और धर्मांतरण का खेल खेल रहे थे। लेकिन मजबूत खुफिया नेटवर्क नहीं होने के कारण बांग्लादेश की सरकार यह पता लगाने में असमर्थ रही कि उनके देश में मदरसों, मस्जिदों, काजी और मौलवियों के सहारे विदेशों से संचालित चरमपंथी संगठन अपना एजेंडा पूरा करने में जूटा है।

बांग्लादेश में कई बार ऐसे हालात सामने आये जब अल्पसंख्यकों और यहां तक कि मुस्लिम महिलाओं के साथ उत्पीड़न को रोकने में वहां की सरकार असहाय दिखी। इसका विरोध करने पर बांग्लादेश की लेखिका तसलीमा नसरीन को दर बदर कर दिया गया, क्योंकि वह कलम के सहारे मेें बांग्लादेश में कट्टरपंथ का विरोध करती थी। उनकी लिखी कई किताबों, उपन्यासों से यह स्पष्ट होता कि कट्टरपंथ ने न सिर्फ अल्पसंख्यकों का ही नुकसान पहुचाया बल्कि मुस्लिम महिलाओं के अधिकार को भी सीमित कर दिया। एक मुस्लिम होने के बावजूद तसलीमा नसरीन ने बांग्लादेश में कट्टरपंथी दंश को झेला है और अपनी जान बचाने के लिए भारत में शरण ले ली। उन्होंने अपने उपर हुए मानसिक, शारीरिक अत्याचारों को शब्दों में पिरोया है। उनका मानना है कि कट्टरपंथ और धार्मिक उन्माद मुस्लिम देशों में अल्पसंख्यकों के लिए ही नहीं बल्कि इस्लामी कॉम के लिए भी खतरा है।

 

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