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नृत्य के माध्यम से समझिये जीवन का मूल्य

रस भाव सामान्य जीवन में भी स्पष्ट दिखाई पड़ता है, परंतु नृत्य में इन्हें समझाना जरूरी होता है । भाव उत्पन्न करना एक जटिल प्रक्रिया है परंतु नर्तक कुशलता से मस्तिष्क का प्रयोग कर इसे अपने नृत्य का अंग बना लेता है। रौद्र से करुण, वीर से अद्भुत तथा वीभत्स से भयानक की उत्पत्ति हुई, शांत स्वयं उत्पन्न रस है। रसादी आठ वृत्तियाँ प्रकरती की आठ शक्तियाँ हैं अथवा शक्ति के आठ रूप हैं । हमें इन्हें अपने अन्तःकरण के विद्यमान शिव का अनुभावात्मक बोध समझना चाहिए। अगर इसे हम आसानी से स्पष्ट रूप में समझने की कोशिश करें तो रस सभी के अंदर विद्यमान है ।

नृत्य संस्कृति का आरंभ भारत में वैदिक युग में ही हो गया था। चारों वेद से उत्पन्न नृत्य के नाट्यवेद को नाट्य शास्त्र के रूप में हुआ। भारतीय शास्त्रीय नृत्य को हिंदु संस्कृति का अंश भी माना जाता है। भरतमुनी द्वारा रचित नाट्यशास्त्र पर आधारित नृत्य को सर्वप्रथम उनके सौ पुत्रों ने किया।

अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस की शुरुआत 29 अप्रैल 1982 में आधुनिक समाज के जनक कहे जाने वाले जॉर्ज नावेरे की जन्मतिथि से हुई। यूनेस्को की एक संस्था अंतर्राष्ट्रीय थियेटर इंस्टीट्यूट की कमेटी ने यह दिन निर्धारित कर इसे विश्व में स्थापित किया। आम लोगों को नृत्य के प्रति जागरूक करना तथा विश्व में लोगों व संस्थाओं को इसके प्रति जागरूक कर नृत्य अलख जगाना भी नृत्य दिवस का मुख्य उद्देश्य रहा है।

लगभग 2005 से नृत्य को विश्व स्तर पर विद्यालयों में प्राथमिक स्तर पर शिक्षा का स्त्रोत बनाया गया । विश्व में नृत्य दिवस को सभी महानगरों में मनाया जाता है। भारत में लोग इस दिवस के प्रति जागरूक हो रहे हैं। अनेक संस्थाएं इस अवसर पर अपनी नृत्य प्रस्तुतियाँ करती हैं।

संरचनात्मक शैली से जुड़ी संस्थाएं इस दिवस को अधिक महत्व प्रदान करती है। दिल्ली की आधुनिक संस्था प्रतिवर्ष आयोजन कर अपने गुरुओं को इस दिवस को समर्पित करती है। 21वीं शताब्दी में सभी शिक्षाएँ व क्षेत्र रोजगार से जुड़े हैं। नृत्य भी इस स्पर्धा में पीछे नहीं है। आज नृत्य शिक्षा में अनेक अनुसंधान हो रहे हैं। देश के सभी राज्यों के विश्वविद्यालयों में नृत्य शिक्षा में भी PHD की जा रही है। जिसके परिणाम स्वरूप, नृत्य एक ऐसा करियर बन गया है जहाँ रोजगार उपलब्ध है। सांस्कृतिक मंत्रालय के साथ साथ ऐसे पूर्ण स्वायता प्राप्त संस्थान हैं, जैसे संगीत नाटक अकादेमी , I.G.N.C.A , राज्य कला परिषद, जहाँ पर रोजगार केवल नर्तकों व कलाकारों के लिए ही है।

नृत्य में करियर

आज खेलों की भाँति ही विश्वविद्यालयों (राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर ) में नृत्य के लिए अलग से भी स्थान आरक्षित है।रेलवे के साथ साथ अन्य मंत्रालयों में भी नृत्य के क्षेत्र में रोजगार आरक्षित है। सभी विद्यालयों में नृत्य शिक्षा के लिए शिक्षक का प्रावधान है। आज यह क्षेत्र अत्यधिक विकसित क्षेत्र है ।

देश के सम्पन्न घराने के लोग इस क्षेत्र को अपना करियर चुनकर स्वयं को प्रतिष्ठित श्रेणी में पाते हैं। कलाकार का एक मान-सम्मान है । सरकार की तरफ से अनेकों ऐसी योजनाएं भी हैं, जो नृत्य नर्तक आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन देती हैं। स्कौलरशिप , फेलोशिप तथा कई समारोह आयोजन के लिए अनुदान भी सरकार द्वारा ही दिया जा रहा है। बड़े बड़े गुरुओं को सैलरी ग्रांट भी दी जा रही है। जिससे वह अपने शिष्यों को शिक्षा के साथ आर्थिक सहायता देकर इस क्षेत्र को समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त कर सके और उनके शिष्य उनकी कला को सीख कर समाज में आगे प्रसारित करे।

आज स्टार्ट अप के युग में नृत्य शैलियों ने कुछ कदम आगे बढ़ाए हैं । शिष्य स्वयं ही अपने स्टूडियो खोल कर नृत्य का प्रचार प्रसार कर रहे हैं। आज अच्छे नर्तकों को, जो राष्ट्रीय लोक शैलियों तथा शास्त्रीय नृत्यों से जुड़े हैं उन्हे पद्म पुरस्कारों के साथ साथ, राज्य और अन्य राष्ट्रीय पुरस्कारों से भी नवाजा जाता है। अपने संबंध दूसरे देशों से बनाए रखने के लिए नृत्य कलाकारों को एकल व सामूहिक रूप से विदेशों में भी भेजा जाता है।

आज नृत्य एक पूर्ण रोजगार की श्रेणी में सक्षम है । राष्ट्रीय, राजकीय तथा स्वयं रोजगार के क्षेत्र में नर्तक पूर्ण सक्षम है । नृत्य शिक्षा प्राप्त व्यक्ति समाज में एक प्रतिष्ठित व्यवसाय कर सकता है। आज नृत्य में करियर कि बात कि जाये तो नृत्य अन्य विषयों कि भाँति प्रतिस्पर्धा में है। जिस प्रकार बड़े-बड़े कोचिंग सेंटर विज्ञान तथा मैथ (गणित) कि कक्षाएं चला रहे हैं उसी प्रकार नृत्य के भी सेंटर सभी शहरों में खुले हुए हैं, जहाँ पर प्रति कक्षा के हिसाब से पैसे वसूले जा रहे हैं। परंतु नृत्य कि शैलियाँ भिन्न होने के कारण इनके माप दंड अलग-अलग हैं।

हाल ही में CBSE ने सभी स्कूलों में नृत्य कला को 11वीं तथा 12वीं कक्षा में भी शामिल करने के निर्देश दिये हैं । नृत्य प्राचीनतम विषय है, जिसका जन्म उद्बम देवताओं ने किया था, परंतु मानव ने इसे बीच में ही छोड़ दिया था । लेकिन अब यह पुनः उद्बम हो रहा है। इसलिए यह कहना अतिशोयक्ति नहीं होगी कि सुबह का भूला शाम को घर आए तो भूला नहीं कहलाता।

नृत्य व स्वास्थ्य

यह पूर्ण सत्य है कि नर्तक हमेशा स्वस्थ व्यक्ति होता है । अस्वस्थ व्यक्ति नृत्य कर ही नहीं सकता। नृत्य शिक्षा एक अपने में पूर्ण शारीरिक व्यायाम है , जिसमे शरीर के सभी अंगों का प्रयोग होता है तथा एक नर्तक बनने के लिए प्रतिदिन कई घंटे अभ्यास करना पड़ता है। शरीर से पसीना बह जाने से , शरीर के अनेकों रोग दूर हो जाते हैं । शरीर के सभी अंगों का पूर्ण विकास होता है । बौधिक व शारीरिक समता से परिपूर्ण शरीर नृत्य के अभ्यास से प्राप्त होता है।

वेदों में भी नृत्य को स्वास्थ्य के साथ परिभाषित किया गया है। योगाभ्यास के अनेकों आसन, नृत्य का भी अंग है । नृत्य क्षमता को बढ़ाने के लिए हमें ऐंद्रिय शक्तियों श्वास पर नियंत्रण पाने के लिए योग आसनों का सहारा भी लिया जाता है। ऋषि पतंजलि ने योगा का आविष्कार कर वेदों को स्वास्थ्य से जोड़ा परंतु आज योग आसनों को नृत्य के साथ जोड़कर उसका महत्व और अधिक प्रभावी बन गया है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आज भारत की अन्य रक्षक कलाएँ नृत्य का रूप ले रही हैं। इनमे छाऊ, कलरीपाइटयु, थंगटा तथा गतका शामिल है । यह सभी स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यंत लाभकारी हैं ।

खास बात यह है कि कई सम्मेलनों में यह निष्कर्ष निकाला गया है की अगर मनुष्य निरंतर नृत्य का अभ्यास करे तो वह तनाव मुक्त रहेगा । क्योंकि तनाव के कारण शरीर में मधुमेह, रख्त्चाप आदि जैसे रोग उत्पन्न होते हैं। नृत्य से मानसी व बौधी शक्ति बनाए रखने के साथ साथ स्मरण शक्ति, सहन शक्ति ( स्टैमिना) भी बढ़ता है।

मानव शरीर में मस्तिष्क ही पूरे शरीर को नियंत्रित करता है, यही भाव लेकर जब शिव ने नटराज रूप में तांडव किया, तब सभी देवता यह सोचने पर मजबूर होगाए की यह क्या है। सभी के मन में अनेकों भाव उत्पन्न हुए जिन्हे नव रस कहा जाने लगा। अर्थात जब मानव स्वस्थ रूप से अपने मन में भाव लेकर नृत्य करता , करती है तो उसके मस्तिष्क में एक रासायनिक क्रिया होती है जिनमें ऐसे रसों को नृत्य की शैली में नव रस कहा गया है।

अर्थात जैसी मनुष्य की सोच होती है वैसा ही भाव उसके मुख पर आवतरित होता है । तथा उसके समक्ष व्यक्ति यह जान जाता है की अब आमुख व्यक्ति बिना कहे क्या कहने वाला है। नृत्य में नाट्यशास्त्र इन वाक्यों की पुष्टि करता है । जबकि नृत्य में इन रसों की उत्पत्ति काल्पनिक होती है । परतू नर्तक इन भावों में इतना लीन होता है की वह भाव उसके मुख पर झलकता है ।

यही रस भाव सामान्य जीवन में भी स्पष्ट दिखाई पड़ता है, परंतु नृत्य में इन्हें समझाना जरूरी होता है । भाव उत्पन्न करना एक जटिल प्रक्रिया है परंतु नर्तक कुशलता से मस्तिष्क का प्रयोग कर इसे अपने नृत्य का अंग बना लेता है। रौद्र से करुण , वीर से अद्भुत तथा वीभत्स से भयानक की उत्पत्ति हुई, शांत स्वयं उत्पन्न रस है। रसादी आठ वृत्तियाँ प्रकरती की आठ शक्तियाँ हैं अथवा शक्ति के आठ रूप हैं । हमें इन्हें अपने अन्तः करण के विद्यमान शिव का अनुभावात्मक बोध समझना चाहिए। अगर इसे हम आसानी से स्पष्ट रूप में समझने की कोशिश करें तो रस सभी के अंदर विद्यमान है ।

हम किसी के भाव देखकर समझ जाते हैं कि इस व्यक्ति के मन में क्या चल रहा है। वह क्रोधित है, शांत है ? परंतु नर्तक और नट को यह भाव अपने चेहरे पर उमड़ाने पड़ते हैं। आत्मलीन होने पर ही उसके चेहरे पर यह नव प्रकार के रस झलकते हैं। नृत्य सामान्य जीवन और व्यवहार एक साथ एक दूसरे के पूरक हैं।

आज नृत्य पूर्ण रूप से व्यावसायिक है , चाहे उसका रूप भक्ति भाव हो , काल्पनिक हो या शिक्षात्मक , सभी रूप पूर्णतः व्यावसायिक हैं। नर्तक अथवा नृत्य एक साँचे में ढले होने चाहिए तभी इस प्रतिस्पर्धा में नृत्य अन्य व्यवसायों कि भाँति उभरेगा।

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