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बौद्ध महोत्सव पर सेमिनार : ‘माइंडफूलनेस- द वे ऑफ कनफ्लिक्ट रेजोल्यूशन’ का आयोजन

बौद्ध महोत्सव के अंतिम दिन श्रीलंका, सिक्किम और थाईलैंड के कलाकारों ने अपनी-अपनी भाषा और शैलियों में नृत्य-गीत प्रस्तुत किये, वहीं म्यांमार और लॉओस के कलाकारों ने पारंपरिक नृत्य और संगीत की प्रस्तुति देकर दर्शकों को मोहे रखा।

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तीन दिवसीय बौद्ध महोत्सव अंतरराष्ट्रीय स्थल बोधगया में संपन्न हो गया। महोत्सव का शुभारंभ सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री सह गया जिला प्रभारी मंत्री मोहम्मद इसराइल मंसूरी और कृषि मंत्री कुमार सर्वजीत ने दीप प्रज्वलित कर बोधगया स्थित कालचक्र मैदान में भव्य मंच पर किया था।

इस समारोह में देश-विदेश से हजारों श्रद्धालुओं ने भाग लिया। साथ ही इस अवसर पर “तथागत” नामक स्मारिका एवं “तेल की खेती” पत्रिका का विमोचन किया गया। इस मौके पर गया सांसद विजय कुमार मांझी, गुरुआ विधायक विनय कुमार,जदयू जिला अध्यक्ष अभय कुशवाहा, जिला परिषद अध्यक्ष नैना कुमारी, उपाध्यक्ष डॉ शीतल प्रसाद यादव, गया जिला अधिकारी डॉक्टर त्याग राजन एसएम एवं डीडीसी विनोद दूहन आदि अधिकारीगण उपस्थित थे।

इस मौके पर देश-विदेश से महोत्सव में भाग लेने आए कलाकारों ने अपनी-अपनी रंग-बिरंगी पोशाकों में सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुतियां दीं जो लोगों को काफी भाया। बौद्ध परंपरा से जुड़े और अलग विधिओं तथा विभिन्न शैलियों में कलाकारों ने प्रस्तुतियां देकर लोगों को मुग्ध कर दिया।

महोत्सव के दूसरे दिन महाबोधि सांस्कृतिक केंद्र, बोधगया में “माइंडफूलनेसः द वे आफ कनफ्लिक्ट रेजोल्यूशन” विषय पर बौद्धिक ‘सेमिनार’ आयोजित किया गया, जिसे उपस्थित विद्वतजन को संबोधित करते हुए मगध प्रमंडल आयुक्त मयंक वरबड़े ने बताया कि ‘माइंडफूलनेस’ स्मृति से उत्पन्न होती है, जो बौद्ध परंपराओं का एक महत्वपूर्ण तत्व है। यह जेन, विपश्यना और तिब्बती ध्यान के तकनीक पर आधारित है। महात्मा बुद्ध ने हमारे चित् को राग-द्वेष, क्लेश आदि से आवृत्त माना है। हमारी आंतरिक पवित्रता, करुणा और स्नेह ही दूसरे को दिखलायी पड़ती है। इस कारण वे इसे अनुकरण भी करते हैं।

समारोह में मगध विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर एस. पी. शाही, बीटीएमसी सचिव डॉक्टर महाश्वेता महारथी, आईबीसी अध्यक्ष नवरंग दोरजी सहित बड़ी संख्या में भिक्षु और शोधार्थी उपस्थित थे। सेमिनार में लॉओस के भिक्षु सायसाना बोधवोंग, वट-पा के डॉक्टर रत्नेश्वर चकमा, बीटीएमसी के डॉक्टर धर्मशिर, बी.पी .मंडल विश्वविद्यालय के सुधांशु शेखर, नव नालंदा महाविहार के प्रोफेसर सुशिम दुबे, हरिप्रसाद गौर विश्वविद्यालय, सागर, मध्य प्रदेश के प्रोफेसर अंबिका दत्त शर्मा, न्गवांग थुबतेन चोलिंग शब्बद्रुंग मठ बोधगया के सचिव लामा सोनम दोरजे तथा पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय के प्रोफेसर शैलेश सिंह सहित अन्य विद्वानों ने अपने शोध- पत्र को प्रस्तुत किये।

बौद्ध महोत्सव के अंतिम दिन श्रीलंका, सिक्किम और थाईलैंड के कलाकारों ने संगीत-गीत के माध्यम से अपनी- अपनी भाषा और शैलियों में नृत्य-गीत प्रस्तुत किये, वहीं म्यांमार और लॉओस के कलाकारों ने पारंपरिक नृत्य और संगीत की प्रस्तुति देकर दर्शकों को मोहे रखा।

हॉलीवुड की नीरज श्रीधर ने अपनी मधुर आवाज से सर्द रात्रि में भी देर रात तक महफिल को जमाये रखने में भरपूर कामयाब रही, दर्शक खूब झूमते रहे और थिरकते रहे। बिहार के पटना की प्राची पल्लवी शाहू ने आकर्षक कथक नृत्य तथा गायकी से लोगों के दिल को जीता।

स्थानीय गया घराने के प्रसिद्ध ठुमरी गायक राजन सिजुआर ने अपनी प्रस्तुति देकर शमा को बांध डाला। नालंदा संगीत कला संस्थान के कलाकारों के नृत्य की प्रस्तुति और पटना के स्वरांगन सांस्कृतिक कल्याण सेवा समिति के कलाकारों के लोक नृत्य और गीत ने माहौल को संगीतमय बनाये रखा. और महोत्सव की समाप्ति की गई।

 

 

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