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धराशायी होती देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने की कवायद

अब अलार्मिंग मोड में आ गई है इंडिया की इकोनॉमी 

अब तो आर्थिक समीक्षक और वित्तीय अधिकारी भी कह रहे हैं कि नोटबंदी और जीएसटी ने भारतीय अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी है। सरकार के नजरिये से यह दोनों उपाय भारतीय अर्थव्यवस्था की बेहतरी के लिए किये गये लेकिन इसके परिणाम सुखद नहीं हैं। सरकार अपनी दलीलों से भले ही नोटबंदी और जीएसटी को देशहित में बताये लेकिन तेजी से बंद होते औद्योगिक सेक्टर को देखकर कहा जा सकता है कि यह नोटबंदी और जीएसटी का निगेटिव इम्पैक्ट है।

औंधे मुंह गिरते रूपया, जीडीपी रेटिंग में गिरावट, लगातार खुदरा व्यापार का सिमटना, शेयर बाजार का लगातार गिरना, ऑटो एवं आईटी सेक्टर में बड़े पैमाने पर कर्मचारियों की छंटनी, रियल एस्टेट सेक्टर में व्यापक मंदी, कताई उद्योग …. ये सारे सेक्टर आज बदहाली के दौर से गुजर रहे हैं। शुरूआती दौर में तो इसे हल्के में लिया गया लेकिन अब इनकी बदहाली सेे भारतीय अर्थव्यवस्था चरमराने लगी है।

मूडीज की रेटिंग से भारत सरकार के नीति निर्माता चिंतित दिख रहे हैं। एसएंडपी की रेटिंग भी भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा नहीं कहा जायेगा। इसके साथ की कई रेटिंग एजेंसियों ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर भारत सरकार को आगाह कर दिया है कि इसे संभालने के लिए फौरी तौर पर बड़े कदम उठाने होंगे। अन्यथा मंदी की चपेट में आने के बाद संभालना मुश्किल हो जायेगा। कुछ सख्त सरकारी नीतियों और नये नियमो के कारण ऑटोमोबाइल सेक्टर में पिछले नौ महीने से छायी मंदी ने सरकार की नींद उड़ा दी है। आनन-फानन में केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कुछ नियमों में तब्दीली का एलान किया है। जिसमें जीएसटी में राहत, ऑटो सेक्टर की कंपनियों को फौरी तौर पर लोन की सुविधा बीएस-4 वाहन के पंजीयन की वैधता को अगली समीक्षा के लिए टाल दिया गया है।

केन्द्र सरकार की वित्तीय घोषणाओं से बाजार में पुनः रौनक आने की उम्मीद जगी है। इंफ्रास्ट्रक्चर एवं सकल घरेलू उत्पाद में 50 फीसदी की हिस्सेदारी वाली कंपनियां जो मंदी के दौर से गुजर रही है, उनपर विशेष ध्यान देते हुए वित्त मंत्री ने कई राहत भरी घोषणाएं की हैं। विशेषकर, अप्रैल 2020 से नये वाहन कानून के तहत बीएस-6 लागू हो जाने के मद्देनजर लाखों की संख्या में बीएस-4 वाहन निर्माण कर चुकी कंपनियों को बहुत बड़ी राहत दी गई है। बता दें कि बीस-4 वाहन के रजिस्ट्रेशन की वैधता 31 मार्च 2020 को समाप्त की जा रही थी, जिसपर फैसला अब अगली समीक्षा तक टाल दिया गया है। मतलब बीएस-4 वाहन निर्माण कंपनियों को थोड़ी राहत दी गई है। लेकिन बीएस-4 वाहन पूर्ण पंजीयन की वैधता कब तक रहेगी इसपर ऑटो सेक्टर में उलझन की स्थिति है। बीएस-6 को लेकर सरकार की घोषणाओं के बाद पिछले 9 महीने से ऑटो सेक्टर मं

दी के दौर से गुजर रहा है। क्योंकि वाहनों की बिक्री में लगातार गिरावट पायी गई। ऑटो कंपनियों में हालात इतने प्र्रतिकूल हो गये कि तेजी से कर्मचारियों की छंटनी शुरू कर दी गई। कंपनियों ने खर्च में कटौती की प्राथमिकता दी। ऑटो सेक्टर से अब तक लाखों लोग बेरोजगार हो चुके हैं। आर्थिक बदहाली के कारण कई ऑटो कंपनियां बंदी के कगार पर आ चुकी है, जबकि कई बंद हो चुकी हैं। लिहाजा केन्द्र सरकार ने ऑटो सेक्टर को बचाने के लिए कई राहत भरे फैसले लिए हैं, जिससे मंदी से उबरने की आस जगी है।

ऑटो सेक्टर की तरह ही कई सेक्टर मंदी की मार से उबर नहीं पा रहे हैं, जिनमंें रियल एस्टेट सेक्टर अब अंतिम सांस ले रहा है। सरकार के नये नियम ने इस सेक्टर को हिलाकर रख दिया है। आंकड़ें बताते हैं कि देश के तीस बड़े शहरो मे 13 लाख मकान बनकर तैयार हैं, जबकि दस बड़े शहरों में करीब छह लाख आधुनिक सुविधाओं से पूर्ण महंगे फ्लैट को कोई खरीदने को तैयार नहीं है। इस आधार पर देखा जाये तो भारत में रियल एस्टेट सेक्टर में कई लाख करोड़ की आधार पूजीं फंसी हुई है। सबसे बड़ी बात है कि अब इस सेक्टर को बैंक लोन देने को तैयार नहीं है। इस सेक्टर की कई कंपनियां बैंकों से पहले ही भारी-भरकम कर्ज ले चुकी है। कर्ज नहीं देने के कारण अब तक कई बड़ी रियल एस्टेट कंपनियां दिवालिया हो चुकी है। इस तरह हर सेक्टर में मंदी की आहट से कारोबारी और कर्मचारी परेशान दिख रहे हैं।

आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि भारत में आई आर्थिक मंदी के लिए सरकारी नीतियां जिम्मेदार है साथ ही आर्थिक आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया, जिससे सरकार वास्ताविक स्थितियों से अवगत नहीं हो पायी। उनके मुताबिक नोटबंदी और जीएसटी को केन्द्र सरकार के अति महत्वपूर्ण कदम के रूप में पेश किये गये। लिहाजा इसके नकारात्मक पक्ष पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। जबकि हालात उसी समय से बिगड़ने लगे थे। छोटे एवं मंझोले स्तर के कारोबारियों ने नोटबंदी और जीएसटी से उपजी आर्थिक समस्याओं से निपटने में नाकाम रहने पर अपने कारोबार को समेटना उचित समझा। छोटे स्तर एवं खुदरा कारोबार सिमट जाने से बड़े पैमाने पर लोग बेरोजगार हो गये। जबकि बड़ी कंपनियों ने उन चुनौतियों से निपटने के लिए कुछ समय का इंतजार किया। लेकिन मांग में गिरावट आने के बाद कंपनियां आर्थिक तौर पर चरमराने लगी। नतीजा आज देश की अर्थव्यवस्था का बदहाल स्वरूप बड़ी आर्थिक आपदा का संकेत दे रही है। फिर भी उम्मीद है कि सरकार आने वाले दिनो में देश की आर्थिक ग्रोथ को गति देने के लिए कोई ठोस कदम उठायेगी।

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