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कोरोना: चीन को घेरने की यूएसए और यूरोपियन यूनियन की रणनीति

कोरोना वायरस के कारण पूरी दुनिया में हो रही चीन की बदनामी को अमेरिका अपने तरीके से भूनाने की कोशिश में है। अमेरिका आने वाले दिनों में कई बड़े फैसले ले सकता है। कई अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के प्रमुखों एवं शीर्ष अधिकारियों की छुट्टी तय मानी जा रही है, जिनकी चीनी सरकार से ज्यादा घनिष्ठता है या जो पर्दे के पीछे रहकर चीन के पे रोल पर काम कर रहे हैं।

कोरोना वायरस ग्लोबल इकोनॉमिक-मेडिकल क्राइसिस लेकर आया है और इसके लिए चीन को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। वैज्ञानिक, डॉक्टर इस बीमारी की मुख्य वजह अब तक जान पाने में असमर्थ हैं। लिहाजा इसकी वैक्सीन बनने में देरी हो रही है। यह मानव निर्मित वायरस है या प्रकृति से खिलवाड़ करने की कीमत मानव जाति को चुकानी पड़ रही है, इसपर अभी भी एक राय नहीं बन रही है। क्योंकि कोरोना वायरस को लेकर चीन अभी भी बहुत कुछ छिपा रहा है।

कोरोना वायरस का उदगम स्थल चीन के हुबेई प्रांत का बुहान शहर है, जो मीट बाजार के लिए प्रसिद्ध है। वहां 150 तरह के मांस की बिक्री होती है और वहां कई किलोमीटर में फैला मीट गार्बेज है। कहां जा रहा है कि कोरोना इसी गार्बेज से फैला है लेकिन केमिकल वायरस के रूप में लैब की थ्यौरी को भी नकार पाना मुश्किल है।

चीन ने अपने देश में कोरोना से हुए मौत के जो आंकड़े पेश किया है, उसपर विरोधाभास है। सरकारी आंकड़े कुछ कहते हैं, और वहां की जमीनी हकीकत कुछ और है। जबकि चीन में कोरोना से हुई वास्तविक छति का आकलन काफी भयावह हैं। चीन ने दुनिया से कोरोना की सच्चाई छिपाने का जो कुत्सित प्रयास किया है उसकी पोल धीरे-धीरे खुलने लगी है। विश्व में कोरोना से मरने वालों का आंकडा 1.5 लाख पार करने वाला है जबकि कोरोना पॉजिटिव का आंकड़ा 22.5 लाख के करीब है। ये आंकड़े लगातार बढ़ते जा रहे हैं।

कोरोना ने ब्रिटेन, स्पेन, दुबई, इटली, ईरान, सउदी अरब सहित कई देशों के राजनयिकों को अपने चपेट में ले लिया। विश्व की कई चर्चित हस्तियों की मौत होे जाने के बाद विश्व समुदाय की भौंहें चीन के प्रति तनी हुई हैं। जबकि कोरोना को हल्के में लेने वाले अमेरिका में इस संक्रमण से मरने वालों का आंकड़ा 25 हजार पार चुका है और साढ़े छह लाख लोग संक्रमित बताये जा रहे हैं।

अमेरिकी इतिहास में शायद यह पहली मेडिकल इमरजेंसी हैं, जहां की चिकित्सा व्यवस्था, शोध एवं तमाम भौतिक और अभौतिक संसाधन इसके सामने निष्फल साबित हो रहे हैं। कोरोना ने अमेरिका का गुरूर भी तोड़ दिया है जिससे व्यथित होकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प चीन को सबक सिखाने को ठान लिया है। ट्रम्प ने गुस्सा डब्लयूएचओ पर उतारकर चीन को साफ संकेत दे दिया है कि पूरी दुनिया को खतरे में डालने वाले को सबक सिखाना जरूरी है। अमेरिका ने डब्ल्यूएचओ का फंड रोक दिया। डब्यलूएचओ को अमेरिका से मिलने वाली फंड पूरी दुनिया से मिलने वाली फंड की 15 फीसदी है।

खबर है कि डब्यलूएचओ के महानिदेशक टेड्रोस एडहॉनाम जल्द हटाये जा सकते हैं। उनपर आरोप है कि उन्होंने इस बीमारी का सच छिपाने में चीन का साथ दिया है। डोनाल्ड ट्रम्प ने टेड्रोस से दो टूक में पूछा कि जब ताइवान ने डब्ल्यूएचओ को इस बीमारी से बचाव एवं इसके प्रसार को रोकने के लिए नवम्बर 2019 में ही कुछ सुझाव दिया था और दुनिया को जागरूक करने की अपील की थी तो उसे अनसुना क्यों किया गया। ताइवान चीन का पड़ोसी देश है इसलिए वास्तविक तथ्यों को दुनिया के सामने रखना चाहता था, लेकिन डब्ल्यूएचओ ने शायद चीन के दबाव में आकर ताइवान की अपीलों को अनसुना किया है।

सत्ता एवं प्रभुत्व के बल पर अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों को चीन अपनी मर्जी से हांकना चाहता है। यूनाइटेड नेशन, विश्व व्यापार संगठन, विश्व स्वास्थ्य संगठन, आईएमएफ, एफएटीएफ सहित कई अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को अपनी जेब में रखने का चीन भरपूर प्रयास करता है और अपने मित्र देशों को इन संस्थानों से भरपूर फंड और सहयोग दिलाता है। चीन अपने दुश्मन देशों को इन संगठनों के सहारे हमेशा घेरता रहा है और नीचा दिखाता रहा है।

अमेरिका का साफ तौर पर कहना है कि चीन कोरोना को लेकर शुरू से ही झुठ बोलता आ रहा है इसलिए दुनिया इस बीमारी के प्रति जागरूक नहीं हो सकी। हाल ही में डोनाल्ड ट्रम्प ने चीन को मौत के आंकड़े पर घेरा तो चीन ने बुहान में हुए मौत के आंकड़ों की लिस्ट दोबारा जारी की, जिससे संदेह और बढ़ गया है। नये और पुराने आंकड़े में 54 फीसदी का अंतर है। नये आंकड़े को जारी करने के बाद चीन अपने ही जाल में फंस गया है। कई देश अब चीन पर सवाल उठाने लगे हैं।

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन, जो कोरोना पॉजिटिव पाये जाने के बाद काफी समय तक आइसोलेशन में रहे और हालात बिगड़ने के बाद उन्हें आईसीयू में भी भर्ती करना पड़ा था। उन्होंने हाल ही में चीन को सख्त चेतावनी दी है कि अगर इस वायरस के पीछे चीनी सरकार का षडयंत्र है तो इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है।

यूएसए और यूरोपियन संघ के बाद अब जापान भी चीन को बड़ा झटका देने की तैयारी में है। जापान सरकार ने अपने देश के उद्योगपतियों और निवेशकों से चीन जल्द से जल्द छोड़ने का आदेश दिया है। जापान सरकार ने उनसे अपील की है कि वह अपने वतन लौट आयें। जापान सरकार उन व्यवसाइयों, उद्योगपतियों और निवेशकों के लिए स्पेशल लोन एंड लैंड प्रोजेक्ट लॉंच करने जा रही है। इतना ही नहीं सरकारी स्तर पर उन्हें हर संभव सुविधायें प्रदान की जायेंगी।

मानवता, आजादी और जनता के अधिकारों को दूसरे दर्जे पर रखने वाला चीन अब विकसित देशों को चुभने लगा है। कारोबारी साझेदार देशों के साथ भरोसे पर चीन कभी खरा नहीं उतरा है। चीन की विश्वसनीयता हमेशा संदिग्ध रही है। कोरोना के बहाने ही यूएसए और यूरोपियन यूनियन सहित कई देश चीन के खिलाफ एकमत होते दिख रहे हैं, जिनका किसी न किसी स्तर पर ड्रैगन के साथ गतिरोध हैं। वे सभी देश अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में चीन के बढ़तेे वर्चस्व को रोकना चाहते हैं।

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