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लॉकडाउन में कलाकारों की दयनीय स्थिति

सरकार ने गरीबों का आकलन करने में उन कलाकारों को अलग कर दिया, जिन्हें न्यूनतम वेतन से भी कम पैसा मिलता है।  उनकी गिनती न गरीबों में, न मज़दूरों में और ना ही प्रवासियों में है।  अगर दिल्ली जैसे क्षेत्र को देखा जाए तो ऐसे कलाकारों की संख्या कई हज़ारों में है।  कोई कलाकार कहाँ है, किस हाल में है, किसी को कोई खबर नही।  यहाँ तक की राष्ट्रीय एजेंसियां जो कलाकारों के लिए कार्य करती हैं, जिनका कार्य केवल कला को प्रोत्साहन देना है, ऐसे समय में वह भी आगे नहीं आयी।

वैश्विक महामारी कोरोना की यात्रा चीन से शुरू होकर, पूरे विश्व में तांडव करते हुए भारत पहुंची।  जबकि भारत से पूर्व अमेरिका, स्पेन, इटली में तो इसका विकसित रूप देखने को मिला। भारत में इसने दस्तक काफी बाद में ही दी। सरकार ने इसके विकल्प कई चुन रखे थे। जनता कर्फ्यू लगा, फिर शुरू हुआ लॉकडाउन अर्थात काम बंद। सभी तरफ सन्नाटा छा गया, लोग बीमारी से मरने लगे, एक दुसरे के संपर्क में आने से बचते रहे।
पहले लॉकडाउन में सभी को आशा थी कि 21 दिन में सब ठीक हो जायेगा, परन्तु दूसरा लॉकडाउन होते ही अफरा-तफरी मच गयी और महानगरों को छोड़ मज़दूर अपने-अपने राज्यों में भागने लगे।  सरकार चाहे केन्द्र की हो या राज्य की, सभी अपने-अपने आर्थिक पैकेज बांटने लगी, गरीबों को… मज़दूरों को । हालात नियंत्रण में नहीं आने पर लॉकडाउन तीन की घोषणा की गई । फिर चार और अब देश में पांचवां लॉकडाउन चल रहा है।
सभी का ध्यान गरीब मज़दूरों की तरफ ही लगा रहा लेकिन ऐसे में एक ऐसा समूह जो कलाकारों व् नर्तकों का था, नृत्य जगत से जुड़ा था। जो रोज़मर्रा की प्रस्तुतियां कर, नृत्य पाठशाला चलाकर अथवा अथवा ऐसी संस्थाओं के साथ कार्यरत था, जहाँ उसे 6 हज़ार रूपए मासिक वेतन प्राप्त होता था, उसकी तरफ किसी का ध्यान नहीं गया।  कुछ कलाकार 15000 से 20000 पाते थे। गरीबों और मज़दूरों को सरकार ने पैसे बाँट दिए, परन्तु कलाकार और वो भी छोटे छोटे नर्तक जो रोज़ कुआं खोद कर पानी पीते थे, उन पर किसी का ध्यान नहीं गया।  उनकी अपनी पाठशाला बंद हुई, सरकारी अनुदान अभी तक जिन संस्थाओं को मिलते थे वह भी नहीं मिले।
सरकार ने गरीबों का आकलन करने में उन कलाकारों को अलग कर दिया, जिन्हे न्यूनतम वेतन से भी कम पैसा मिलता है।  उनकी गिनती न गरीबों में, न मज़दूरों में और न ही प्रवासियों में।  अगर दिल्ली जैसे क्षेत्र को देखा जाए तो ऐसे कलाकारों की संख्या कई हज़ारों में है।  कोई कलाकार कहाँ है, किस हाल में है, किसी को कोई खबर नही।  यहाँ तक की राष्ट्रीय एजेंसियां जो कलाकारों के लिए कार्य करती हैं, जिनका कार्य केवल कला को प्रोत्साहन देना है, ऐसे समय में वह भी आगे नहीं आयी।
संगीत नाटक अकादमी हो या साहित्य कला परिषद् या बड़े बड़े कलाकार जो नृत्य जगत में लाखों की कमाई कर बड़े बड़े सम्मान प्राप्त करते हैं , लेकिन मुश्किल में फसे कलाकारों कि मदद करने को कोई सामने नहीं आया ।
छोटी संस्थाओं के मालिक, जो स्वयं ऐसी संस्थाएं चलाते हैं जहाँ पर मात्र 6 हज़ार रुपये मासिक प्रति कलाकार सहायता मिलती है, उन सभी कलाकारों का मानना था कि ऐसी महामारी में सरकार से कुछ अतिरिक्त सहायता प्राप्त होगी।  वह तो नहीं हुआ लेकिन जो मिलता था, उसे भी रोक दिया गया।  क्या ऐसा कलाकार सरकार पर बोझ है या समाज पर अभिशाप ? ऐसे कई प्रश्न ऐसे समय में सामने आते हैं।
सुना था कला का जन्म, नृत्य का जन्म, देवताओं ने किया या उनके द्वारा हुआ।  तब तो यही बात उभर कर आती है कि कलाकारों कि सहायता तो केवल और केवल भगवान् ही कर सकते हैं।  मनुष्य द्वारा बनाये गए मंत्री तो केवल मज़दूर, किसान की ही सुनते हैं।  उनके सामने कलाकार तो एक ऐसा प्राणी है, अगर लुप्त भी हो गया तो किसी पर क्या फर्क पड़ेगाा ?
जब भी कोई नृत्य कला की प्रस्तुति होती है तो उनमे नर्तक नर्तकियों के साथ साथ प्रकाश सज्जा, संगीतकार, रूप सज्जा से जुड़े हुए अनेकों कलाकार शामिल होते हैं, जो आज सभी बेरोज़गार हैं।  कहीं कोई प्रस्तुति नहीं है  न ही वे घर घर जाकर किसी के बच्चे को शिक्षा दे सकते हैं।  क्या ऐसे में सरकार में बैठे उन पदाधिकारियों का ध्यान इनकी तरफ नहीं गया ? क्या वे मौन रहकर, आखों पर काला चश्मा चढ़ाकर दुनिया को देखते हैं ?
शर्म, शर्म और फिर शर्म, यह भी कौन करे, अधिकारियों को तो है नहीं फिर कलाकारों को ही आज शर्म आ रही है कि उसने यह कार्य क्षेत्र क्यों चुना।
क्या कलाकार वैश्विक महामारी से भी बुरा है ? क्योंकि सरकार का ध्यान उसकी तरफ गया ही नहीं सरकार ने बड़े कलाकारों के लिए तो नेट पर webinar बना कर उनको मोटी रकम के साथ शो आयोजित करवाये । परन्तु छोटा कलाकार अब भी भूखा मर रहा है।  न पक्ष न प्रतिपक्ष कोई भी उनकी बात नहीं कर रहा। ऐसे में छोटे कलाकारों ने Whatsapp पर ग्रुप बना कर अपनी बात रखी है, मगर समाचार वाले भी यह नहीं दिखाते कि whatsapp पर भी ऐसे मैसेज वायरल हो रहे हैं कि कलाकार को बचाओ !! कलाकार को बचाओ !!
कलाकारों के लिए कोई चिकित्सा सम्बन्धी सुविधा नहीं है।  अगर ऐसे में उसके ऊपर कोई विपदा आती है तो वह सरकारी अस्पतालों में फिरता है।  लॉकडाउन में तो डॉक्टर भी ऐसे मरीज़ों को वहां आने से मना करते हैं।  कोई सामाजिक सुरक्षा भी कलाकारों के लिए उपलब्ध नहीं है।  इस समय जब पूरे देश में यह आपदा है, तो सभी अपनी ज़रुरत के लिए मांग कर रहे हैं, तो फिर नर्तक और अन्य कलाकार क्यों पीछे हटें ?
कलाकार वर्ग किसी विशेष सहायता की मांग नहीं कर रहा, वह तो केवल ऐसे समय में अपनी आर्थिक दशा का बखान कर रहा है।  मगर सुन कौन रहा है ? विपदा बड़ी है , केवल आत्मरक्षा ही उपाय है। इसलिए सरकार से निवेदन है कि कलाकारों, जिनकी संख्या लाखों में है, उनका व्यवसाय पूर्ण रूप से बंद है। सरकार उनके लिए कोई व्यवस्था करे तथा मज़दूर समझ कर ही उनकी सहायता करे।

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