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समाजवाद की नई पीढ़ियों की विलासितापूर्ण राजनीति

लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह यादव अपनी राजनीतिक विरासत को नई पीढ़ी को सौंपने में सफल रहे।

जेपी और लोहिया को आदर्श मानने वाले कई नेताओं ने अपने-अपने तरीके से समाजवाद की परिभाषा गढ़कर देश में राजनीति शुरू की और उनमें से कुछ नेता अब राजनीतिक अस्ताचल पर हैं। लेकिन उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन को इस सांचे में ढाला की उनकी पीढ़ियां राजनीतिक जीवन का निर्वहन करते हुए तमाम ऐशो आराम की जिंदगी जी सकें, जो जेपी और लोहिया की राजनीतिक सिद्धांतो के ठीक उलट हैं। गरीबों और पिछड़ों के नाम पर विशेषकर उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव और बिहार में लालू प्रसाद यादव ने राजनीति की लम्बी पारी खेली है। जेपी आंदोलन से निकले और भी नेताओं ने भारतीय राजनीति में अच्छी पहचान बनायी है लेकिन छद्म समाजवाद का चोला ओढ़कर लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह यादव अपनी राजनीतिक विरासत को नई पीढ़ी को सौंपने में सफल रहे।

राजद अध्यक्ष लालू यादव के पुत्र और उनकी राजनीतिक विरासत को संभाल रहे पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, जो वर्तमान में पटना के सरकारी आवास को लेकर चर्चा में बने हुए हैं। तेजस्वी यादव को पटना के 5 देशरत्न मार्ग पर बिहार के उपमुख्यमंत्री रहते आवास आवंटित किया गया था। जदयू और राजद गठबंधन टूटने के बाद तेजस्वी यादव को उपमुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा था, लेकिन उन्होंने सरकारी आवास न छोड़ने के लिए हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक दौड़ लगा दी। पहले पटना हाईकोर्ट ने उन्हें आवास खाली करने का आदेश दिया, लेकिन आवास खाली नहीं करने को लेकर तेजस्वी यादव ने सुप्रीम कोर्ट में अपील कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने भी तेजस्वी यादव को फटकार लगाते हुए आवास खाली करने का आदेश दिया। तेजस्वी यादव ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हुए सरकारी आवास खाली कर दिया।

अब उस आवास को बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी को आवंटित किया गया है। जब सुशील मोदी अपने सरकारी आवास में प्रवेश किये तो उसकी साज सज्जा को देखकर वह भौचक हो उठे। जो भी उस आवास को देखने जा रहे हैं वह उसकी डिकोरेशन को देखकर हैरान हैं।

आवास की इंटरियर डेकोरशन पर बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा है कि उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में इस तरह के सरकारी आवास नहीं देखे हैं। राष्ट्रपति भवन और प्रधानमंत्री आवास भी इसकी चमक के आगे फीके पड़ जायेंगे। उन्होंने कहा है कि यह सरकारी आवास कम सेवन स्टार होटल ज्यादा लगता है, क्योंकि इस आवास की साज सज्जा सेवन स्टार होटल की तरह है। जदयू के प्रवक्ता संजय सिंह ने कहा है कि तेजस्वी यादव ने सरकारी आवास को निजी संपत्ति मानकर इसमें बेतहाशा खर्च किया है और अगर यह सरकारी कोष से किया गया तो उसपर कार्रवाई की जायेगी। फिलहाल यह जांच का विषय है कि इसकी साज-सज्जा में सरकारी कोष से कितना धन खर्च हुआ है।

बिहार सरकार की ओर से आवास पर खर्च के लिए मात्र तीन लाख रूपये दिये जाते हैं लेकिन इस आवास में तेजस्वी यादव करोड़ों रूपये खर्च किये होंगे। बेडरूम, डाइनिंग रूम, किचेन, बिलियर्ड्स कोर्ट, वाथरूम सहित अन्य महत्वपूर्ण जगहों पर इटैलियन टाइल्स और मार्बल्स लगे हैं, जिसकी कीमत करोड़ों में बतायी जा रही है। मतलब राजनीति का जामा पहनकर इस आवास में विलासितापूर्ण जीवन जीने के लिए तमाम सुविधाएं उपलब्ध की गई।

तेजस्वी यादव जिस कमरे मे मीटिंग करते थे उसे देखकर ऐसा लग रहा है जैसे यह सरकारी आवास नहीं बल्कि भव्य कॉरपोरेट ऑफिस हो। कमरे में तीन-तीन एसी लगी है, कई फर्नीचर में एसी फिट की गई है। कुल मिलाकर उस आवास में छत्तीस एसी लगी हुई है। मीडिया और आईटी सेल को एक वार रूम की तरह तकनीकी संपन्न बनाया गया है।

ठीक इसी तरह सरकारी आवास को लेकर समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव के पुत्र और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी बदनाम हो चुके हैं। मुख्यमंत्री रहते उन्होंने अपने लिए खुद एक सरकारी आवास आवंटित किया था और पद से हटने के बाद वह भी अपने आवास को छोड़ने के मूड में नहीं थे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अखिलेश यादव को सरकारी आवास छोड़ना पड़ा था। जब उन्होंने सरकारी बंगले चाबी योगी सरकार को सौंपी तो वह बंगला छतिग्रस्त था। उस सरकारी बंगले में काफी तोड़-फोड़ की गई थी। उस समय इस पर खूब राजनीति हुई। योगी सरकार ने कहा था कि बंगले की शान शौकात को छिपाने के लिए अखिलेश यादव ने उसे तहस-नहस कर दिया। योगी सरकार का यह भी कहना था कि अखिलेश यादव इस भ्रम में थे कि वह कभी इस सरकारी बंगले को नहीं छोड़ेंगे। लिहाजा वह अपने तरीके से इसे डिकोरेट करवाया और उसपर करोड़ो रूपये खर्च किये। जब बंगला छोड़ने की नौबत आई तो समाजवादियों ने बंगले को तहस-नहस कर दिया। लेकिन अखिलेश यादव का कहना था कि समाजवादी पार्टी को बदनाम करने के लिए योगी सरकार ने ऐसा किया।

बहरहाल, सरकारी आवास को अपनी जागीर समझने वाले उन नेताओं के लिए एक सबक है, जिन्हें यह लगता है कि सत्ता चिरकालीन उन्हीं के हाथ में रहेगी और सरकारी संपत्तियों पर उनका हक बना रहेगा। इससे पहले भी सरकारी आवास नहीं छोड़ने को लेकर कई नेता बदनाम हो चुके हैं। गरीबों और पिछड़ों के नाम पर ये नेता किस तरह की राजनीति कर रहे हैं और इनकी राजनीति से किसका भला हो रहा है, यह राष्ट्रीय बहस का विषय है।

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