सन 2020 की बात की जाए तो यह एक ऐसा वर्ष साबित हुआ है जिसने विश्व में तहलका मचा दिया | वैश्विक महामारी, जिसका अबतक कोई इलाज नहीं, युद्ध की संभावनाएं, विश्व में उद्योग और आर्थिक दशा का भयंकर नुक्सान, व्यापारिक मंदी , भूकंप और तबाही के संकट उभर कर आ रहे हैं | सभी को यह शंका उत्पन्न होने लगी है कि मानव जीवन का अंत क्या करीब है ? ऐसी दशा में विश्व में नृत्य और संस्कृति पर भी बड़े संकट का समय आ गया है | विश्व के नर्तक अथवा अपना सम्बन्ध संस्कृति से रखने वाले, उनके सहयोगी, सभी अपने स्वस्थ्य और आर्थिक दशा को बचाने में निरंतर अग्रसर हैं | अगर यही परिस्थितियां रहीं तो नृत्य जगत का भविष्य अंधकारमय हो जायेगा | खासकर सामूहिक नृत्य शैली तो असंभव .. क्योंकि उसका स्वस्थ्य प्रत्यक्ष रूप में ही संभव है | जब दो गज कि दूरी की बात है, तो नृत्य में सामूहिकता की संभावनाएं न के बराबर रह जाती हैं | प्रश्न उभरते हैं, क्या नृत्य जगत की वह रौनक वापस आएगी ? क्या सरकारी संस्थाएं छोटे छोटे कलाकारों को कठिन समय में अनुदान देने के लिए आगे आएगी ? क्या नर्तक इस व्यवसाय को छोड़कर सृष्टि में विलुप्त प्राणी (शैली) हो जायेंगे ?
कार्यशैली में बदलाव :
कलाकार व नर्तक के लिए ऐसी परिस्थिति अनुभव हीनता को दर्शाती है | सबसे पहली परिस्थिति साधनों की है कि नर्तक के पास ऐसे फ़ोन और लैपटॉप होने चाहिए जिनके समक्ष नृत्य कर वह अपनी भावनाएं, अपने दर्शक श्रोताओं तक पहुंचा सके, तथा ऐसे सॉफ्टवेयर भी होने चाहिए जिनका प्रयोग कर वह उस माध्यम को सफल बना सके | नृत्य सिखाते समय ऐसी बहुत सी बातें सामने आती हैं | आपकी हस्त मुद्राएं, आपके चेहरे का भाव , आपका चलन क्या है , यह सब चीज़ें आप भली भाँती ग्रहण कर रहे हैं या नहीं ? मैं समझता हूँ की बारीकियों से नृत्य को सिखाना या प्रस्तुत करना यह एक छोटे मोबाइल पर केवल पूर्ति करना ही हो सकता है, वह सम्पूर्णता नहीं हो सकती | समय का अभाव, गुरु-शिष्य का सम्बन्ध तथा कार्यशैली में निपूर्णता यह सब ऑनलाइन क्लास में कठिन है, क्योंकि इन विषय परिस्थितियों में सीखने वाले शिष्यों में इन कलाओं के भविष्य के प्रति अनेक प्रश्न हैं कि, क्या जो वह सीख रहे हैं वह उनके काम आएगा ? इत्यादि
संबंधित व्ययसाय :
नृत्य कला की शिक्षा के साथ बहुत ऐसे व्यापार हैं जो उसके सहायक हैं , उन पर भी आर्थिक परिस्थितियों की मार पड़ी है | संगीत के उपकरण, वेशभूषा , रूपसज्जा तथा सभागार | नृत्य के प्रस्तुतीकरण के लिए जो भी उपकरण चाहिए वह बाज़ार में उपलब्ध नहीं है | अगर कहीं हैं तो उनका खरीदार कोई नहीं | बहुत से ऐसे लोग हैं जो वेशभूषाओं को सिलने और उनको किराए पर देकर अपना कारोबार चलाते हैं | उनका व्यवसाय पिछले 4 महीनों से बिल्कुल बंद है | जहाँ न तो नयी वेशभूषाएं तैयार हो रही हैं और ना ही पुरानी का प्रयोग हो रहा है | सभागारों का भी ऐसा ही हाल है क्योंकि वहां सामूहिक रूप से श्रोता तथा दर्शकों की उपस्थिति रहती है , परन्तु इस महामारी के चलते यह संभव नहीं है कि सभागारों का प्रयोग हो और नृत्य को प्रस्तुत किया जा सके | छाया चित्र, रूप सज्जा के कलाकारों को भी अपने भविष्य की चिंता सता रही है | प्रस्तुतियां न होने से मेकअप कलाकार तो बिलकुल ही आर्थिक परिस्थितियों के नीचे दबे हैं | महामारी के इस काल में नृत्य जगत तो बिलकुल ही सिकुड़ गया है | अनुकूल परिस्थितियों में व्यक्ति तनाव मुक्त होने के लिए नृत्य संस्कृति का सहारा लेता है, परन्तु इन विपरीत परिस्थितियों में जब मानव पूर्णतः तनाव ग्रस्त है और नृत्य संस्कृति पर पाबंदी लगी हुई है, ऐसे में वह क्या करे ? कहाँ जाए ? प्रभु की शरण भी नहीं जा सकता, केवल उसका स्मरण कर सकता है |
आर्थिक स्वरुप :
नृत्य मनोरंजन, विलासता का प्रतीक है और विलासता के लिए आर्थिक स्थिति का मज़बूत होना आवश्यक है | परन्तु महामारी के समय सभी कार्य प्रणालियों, उद्योगों में भी मंदी का प्रभाव नज़र आ रहा है | बहुत से संस्थान बंद हो चुके हैं तथा कुछ होने की कागार पर हैं | ऐसे में लोगों को अपने भविष्य की चिंता अधिक है और वह विलासता पर ध्यान नहीं दे रहे | बहुत सी या लगभग सभी नृत्य संस्थाएं बंद हैं | उनको बीमारी से कम व् भूख से ज़्यादा डर लग रहा है | वह केवल शून्य की भाँति दरवाज़ों को देखते हैं कि कब कोई आएगा, कब वह पहले की भाँति नृत्य करने लगेंगे और सिखाने लगेंगे | घर-घर नृत्य की ट्यूशन करने वालों को कोई अपने घर नहीं आने देना चाहता | हाथ पैर मारने का कोई फायदा नहीं | दूसरों का मनोरंजन करने वाले आज अपने चेहरे पर हंसी की तलाश में हैं | क्या किसी ने सोचा था ऐसा भी समय आएगा ?
राष्ट्रीय परिवेश :
वैश्विक महामारी के बीच युद्ध के हालात और आतंकवाद से घिरा हमारा देश अनेकों परिस्थितियों का अनुभव कर रहा है | नृत्य की परिस्थितियों पर ध्यान देने की परिस्थिति नहीं है | सरकार की विदेश नीति तो बंद है साथ ही देश के नीतियां भी बंद बस्ते में हैं | कलाकारों का भविष्य भी अधर में लटका हुआ है | मज़दूरों की भाँति कलाकारों के लिए सरकार के पास मनरेगा जैसा कार्यक्रम नहीं है | सभी कलाकार फ़िल्मी नहीं हैं जिनकी आर्थिक स्थिति कुछ अच्छी हो | छोटे नर्तक व् गुरु दोनों ही अब टूट चुके हैं | कुछ के सर से कलाकारी का भूत उतर चुका है और वह दिहाड़ी की भाँति दुसरे व्यवसाय में लग चुके हैं |
निष्कर्ष :
इन परिस्थितियों में भगवान् के बाद सरकार ही अब ऐसा माध्यम है जहाँ कलाकार, नृत्य से सम्बंधित अधिकारी आगे आकर, इन परिस्थितियों को समझने और इस शैली को बचाने हेतु इसका संरक्षण, आर्थिक तौर पर करके कुछ ऐसा समाधान करे कि इन कलाकारों को कुछ मिलने लगे | ऐसे कलाकारों की संख्या सूची सभी मंत्रालयों में उपलब्ध है | देश की इन सांस्कृतिक धरोहर को बचाने का प्रयास भी सरकार को करना चाहिए | न जाने अब कितनी बाधाएं व् समय बाकी है इस कठिन घडी की जो कलाकारों (नर्तकों ) को अपनी डगर पर पुनः लाएगी |