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बीजेपी के लिए बेअसर साबित हो रहे हिन्दुत्व और विकास के मुद्दे

उपचुनावों में लगातार हार से एनडीए खेमे में बेचैनी

केन्द्र में मोदी सरकार के 4 साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान केन्द्र सरकार को खट्टे-मीठे अनुभवों से गुजरना पड़ा है। सरकार के मंत्री विकास के बड़े-बड़े दावे कर रहे हैं। खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी विकास कार्यो का बखान करने में पीछे नहीं दिखते। केन्द्र सरकार के विकास कार्याे को प्रचारस्वरूप गांव कस्वों तक पहुचाने के लिए भारतीय जनता पार्टी योजना बना रही है। बीजेपी की कोशिश है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर जनता के पास जाने से पहले फूलप्रुफ योजना बना ली जाये। क्योंकि विपक्ष इस बार मोदी सरकार को तगड़ी चुनौती देने की योजना बना रहा है। इन चार सालों के दौरान केन्द्र सरकार की कुछ खासियतें भी रही हैं तो कुछ नकारात्मक पहलू भी जुड़े हैं।

केन्द्र सरकार भी इस बात को मान रही है कि इस देश को न्यू इकोनॉमी मॉडल देने के चक्कर में देश की जनता को कुछ परेशानियां अब तक झेलनी पड़ रही है। हालांकि केन्द्र सरकार का यह भी मानना है कि आने वाले दिनों में देश की स्थिति सही हो जायेगी। लेकिन विपक्ष के साथ-साथ आम जनता का भी इसपर अलग नजरिया है। विपक्षी दल तो मोदी सरकार की नाकामियों को चुनावी हथियार के रूप में इस्तेमाल करने के पूरी तैयारी कर चुके है। मतलब, हर मोर्चे पर मोदी सरकार को विपक्ष का सामना का करना पड़ेगा।

बहरहाल, मोदी सरकार के चार साल पूरे होने पर उनके विकास कार्याें का लेखा-जोखा मीडिया सहित विपक्षी दल भी अपने-अपने तरीके से देश की जनता के सामने पेश कर रहे हैं। पिछले 4 सालों के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने पूरब से लेकर पश्चिम और उत्तर से लेकर दक्षिण तक विस्तार किया है। जिससे नरेन्द्र मोदी अपराजेय लग रहे थे। लेकिन उपचुनाव में लगातार हार के बाद बीजेपी की चिंता बढ़ गई है। विशेषकर उत्तर प्रदेश के उप चुनावों में राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का सियासी गढ़ छिन जाने के बाद बीजेपी के नेत्त्व पर सवाल उठने लगे है और निशाने पर प्रधानमंत्री की कार्यशैलियां हैं। उत्तर प्रदेश के बाद कर्नाटक और उसके बाद कैराना सहित अन्य जगहों पर हुए उपचुनाव में बीजेपी को निराशा हाथ लगी है। हालांकि कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में बीजेपी बड़ी पार्टी बनकर उभरी। लेकिन बहुमत से दूर रहने के कारण वहां काग्रेस ने जद (एस ) को समर्थन देर बीजेपी का खेल बिगाड़ दिया।

जबकि, उपचुनावों में लगातार हार मिलने से अब एनडीए में शामिल दलों का भरोसा डगमगाने लगा है। क्योंकि 2019 में बीजेपी को अग्नि परीक्षा से गुजरना होगा और उसकी कीमत सहयोगी दलों को भी चुकानी पड़ेगी। इसी कारण एनडीए के कुछ सहयोगी दल अभी से ही पाला बदलने की फिराक में दिखने लगे हैं। स्थितियां इतनी बिगड़ गई है कि एनडीए में शामिल दलों के नेता ही अब मोदी को घेरने लगे हैं। घटक दलों के नेताओ के जिस तरह के बयान सामने आ रहे हैं उससे यह प्रतीत होता है कि वह लोकसभा चुनाव के मद्देनजर पाला बदलने के मूड में हैं और सही वक्त का इंतजार कर रहे हैं।
2019 की चुनावी सरगर्मियां धीरे-धीरे दस्तक देने लगी है।

आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर विपक्षी दलों में जहां उल्लास दिख रहा है। मोदी विरोधियों को एक मंच पर लाने की कवायद अब जोर पकड़ने लगी है। वहीं बीजेपी नेतृत्व इस बार असमंजस में है। और बीजेपी के अंदरखाते में भूचाल जैसी स्थिति है। उसकी वजह भी है। अब मोदी लहर कम होती दिख रही है। अगले आम चुनाव में भी हिन्दुत्व और विकास का मुद्दा जोर-शोर से उछाला जायेगा। लेकिन इन दोनों मुद्दों पर बीजेपी घिरती दिख रही है।

अगर हिन्दुत्व का मुद्दा बीजेपी का साथ देता तो योगी आदित्यनाथ के मजबूत सियासी किले में विपक्ष सेंध नहीं लगाता। अन्य जगहों को छोड़ दें तो विशेषकर फूलपुर, गोरखपुर, नूरपुर, और कैराना में मिली हार ने बीजेपी को आत्ममंथन करने पर मजबूर कर दिया है। इसी सप्ताह आये 11 विधानसभा और चार लोकसभा उपचुनाव के परिणामों से बीजेपी में हताशा बढ़ी है। इसमें 1 लोकसभा और एक विधानसभा उपचुनाव को जीतकर बीजेपी ने अपनी इज्ज्त बचा ली है। लेकिन इन चुनाव परिणामों से बीजेपी को आने वाले खतरे की आहट सुनाई देने लगी है।

अब बीजेपी को अगले आम चुनाव के लिए नीतियां बदलनी होगी रणनीतियां बदलनी होंगी। हो सके तो चेहरे और मुद्दे भी बदलने पड़ सकते हैं। क्योंकि देश के वर्तमान सियासी हालात और देश की जनता का मूड बीजेपी को आगाह कर रहे हैं कि ‘सबका साथ और सबका विकास’ वास्तव में कितना हुआ इसपर बीजेपी को आत्ममंथन करने की जरूरत है।

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