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मूल मुद्दों से भटका किसान आंदोलन: अर्बन नक्सलियों और दंगाइयों को जेल से रिहा करने की मांग

किसान आंदोलन में दिल्ली दंगों के आरोपियों और जेल में बंद अर्बन नक्सलियों को रिहा करने की मांग उठ रही है। इतना तय मान लीजिए कि किसानों की बनाई पिच पर अगर कोई और बैटिंग करना चाह रहा है तो इससे किसानों का भला नहीं होने वाला है।

केन्द्र सरकार के द्वारा बनाये गये नये कृषि कानून के खिलाफ सड़कों पर उतरे किसानों की मांग पर अब सबको हैरानी हो रही है। नया किसान बिल रद्द करने के साथ-साथ जो मांगे रखी जा रही है उससे अब यह आंदोलन नया मोड़ लेता दिख रहा है।

नये कृषि कानून को रद्द करने साथ-साथ अब दिल्ली दंगों के आरोपी और जेल में बंद कई अर्बन नक्सलियों की रिहाई की मांग किसान कर रहे हैं। किसान आंदोलन में टिकरी बॉर्डर पर दिल्ली दंगों के आरोपी उमर खालिद, असम को देश से अलग करने की बात करने वाले शरजिल इमाम और सरकार की नजर में अर्बन नक्सल गौतम नवलखा, सुधा भारद्वाज, वरवरा समेत कई लोगों के पोस्टर इस आंदोलन में दिख रहे हैं।

सवाल उठ रहे हैं कि क्या किसान आंदोलन को अर्बन नक्सलियों और दिल्ली दंगों के समर्थकों ने हाइजैक कर लिया है।इस आंदोलन में उमर खालिद और शरजिल इमाम एवं जेल में बंद अर्बन नक्सलियों के पोस्टर लिये घूम रहे किसानों से यह जरूर पूछा जाना चाहिए कि आप एपीएमसी और एमएसपी को रद्द करते करते इनकी रिहाई का प्रदर्शन क्यों करने लगे।

केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने कहा है कि यह तो किसानों की मांग हो ही नहीं सकती। किसानों के कंधे पर बंदूक रखकर कोई और अपनी मंशा पूरी करने में जुटा है। किसानों को इसपर गंभीरता से विचार करना चाहिए कि वह इनके चंगूल में कैसे फंस गये।

सभी किसान संगठनों एवं उनके नेताओं को यह तय करना चाहिए कि सरकार के समक्ष वह जिन मुद्दों को रखने जा रहे हैं अथवा जिन मुद्दों पर सरकार विचार कर रही है उससे भटकाया नहीं जाये। इतना तय मान लीजिए कि किसानों की बनाई पिच पर अगर कोई और बैटिंग करना चाह रहा है तो इससे किसानों का भला नहीं होने वाला है।

कहा जा रहा है कि मानवाधिकार दिवस के अवसर पर कई मानवाधिकार संगठनों के कार्यकर्ता इस आंदोलन में शामिल हुए थे। उसके बाद किसान आंदोलन में इस तरह के पोस्टर देखने को मिल रहे हैं। कृषि मंत्री की मानें तो किसानों के हाथ में देशद्रोहियों के पोस्टर देखकर उन्हें हैरानी हो रही है। केन्द्र सरकार के साथ इनके जो भी मतभेद है, उन्हें दूर करने के प्रयास किये जा रहे हैं। किसानों से जुड़े मुद्दे एमएसपी और एपीएमसी से संबंधित हैं। लेकिन इस आंदोलन में देशद्रोहियों के पोस्टर अगर किसी की साजिश है तो यकीन मानिए यह आंदोलन खतरनाक मोड़ ले लिया है। अगर ऐसा ही है तो किसान पहले यह तय कर लें कि उन्हें सरकार के समक्ष किन मुद्दों पर बात करनी है।

सरकार और किसानों के बीच कई दौर की बैठकों के बाद भी अब तक कोई हल नहीं निकला है। केेन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह के दिये प्रस्ताव को भी किसान खारिज कर चुके हैं। अब तक कई केन्द्रीय मंत्रियों के साथ किसानों की बैठक हो चुकी है लेकिन किसानों की एक ही मांग है कि इस कानून को हर हाल में रद्द किया जाये। किसानों ने ऐलान कर दिया है कि वह केन्द्र सरकार के किसी भी प्रस्ताव के आगे झूकने वाले नहीं हैं।

अब किसानों की इस मांग पर देश में नयी बहस शुरू हो गई है। जेल में बंद दंगाइयों और अर्बन नक्सलियों को रिहा करने की मांग पर सियासत भी गरमाती दिख रही है। सरकार की ओर से सख्त लहजे में कहा गया है इस आंदोलन को हाइजैक कर अगर अराजकतावादी सरकार पर दवाब बनाने की कोशिश करते है तो सरकार भी उनसे अच्छी तरह निपटना जानती है। किसान आंदोलन को कई राजनीतिक संगठनों ने समर्थन दिया है।

विदित हो कि इस कानून को पिछले सत्र में ही लागू कर दिया गया था और इसे लेकर सड़क से लेकर संसद तक हंगामा हुआ था। उसी समय किसानों ने इस कानून के विरोध में सड़क पर उतरने का ऐलान कर दिया था। तब से केन्द्र सरकार को चौतरफा घेरने के लिए प्लानिंग की जा रही थी।

किसान पूरे दमखम के साथ सरकार के विरोध में सड़क पर उतरे हैं। सूत्र बताते हैं कि किसान सरकार से आर-पार के मूड में हैं। इसके लिए वह छह महीने का दाना-पानी की भी व्यवस्था कर लिए हैं। सरकार को झुकाने का किसानों का यह प्रयास क्या रंग दिखाता है और सरकार क्या कदम उठाती है इसके बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता। क्योंकि, किसान अपनी जिद पर अड़े हैं जबकि, केन्द्र सरकार इस कानून के कई फायदे गिना रही है।

कोई समाधान नहीं निकलता देख किसानों ने केन्द्र सरकार के खिलाफ लम्बी लड़ाई का ऐलान कर दिया है। सड़कों पर यह विरोध प्रदर्शन जितना लम्बा चलेगा सरकार के सामने परेशानी उतनी बढ़ेगी। किसानों का यह आंदोलन विपक्ष को संजीवनी देने का काम किया हैं। तिनका-तिनका बिखरा विपक्ष एकजुट होने के लिए सूत्रधार की तलाश कर रहा है। ताकि पुनः एक मंच पर आकर एनडीए सरकार के खिलाफ एकजुट होकर आगे की रणनीति बनायी जा सके।

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