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जस्टिस सुधीर अग्रवाल के नाम विशेष कीर्तिमान

 सबसे अधिक मुकदमों पर फैसला सुनाकर बनाया विश्व रिकॉर्ड

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जहां एक ओर देश की विभिन्न अदालतों में लंबित मामलों की लंबी फेहरिस्त है। वहीं दूसरी ओर इलाहाबाद हाईकोर्ट के वरिष्ठ न्यायमूर्ति जस्टिस सुधीर अग्रवाल ने अपने नाम एक विशेष उपलब्धि हासिल की है। उन्होंने अपने न्यायिक सेवा के दौरान सबसे अधिक मुकदमों पर फैसला सुनाने का कीर्तिमान स्थापित किया है। उन्होंने न्यायिक सेवा कार्यकाल में एक लाख चालीस हजार साठ मुकदमों पर फैसला सुनाया है। एशिया महादेश में किसी भी जस्टिस के नाम यह रिकॉर्ड नहीं है। यह भी कहा जा सकता है कि एशिया महादेश में जितने भी देश हैं उनमें इतने मामलों पर आज तक सुनवाई ही नहीं की गई है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट में राम जन्म भूमि बनाम बाबरी मस्जिद की सुनवाई के दौरान जस्टिस सुधीर अग्रवाल विशेष रूप से चर्चा में आये। राम जन्मभूमि मामले की सुनवाई के लिए बनायी गयी तीन जजों की बेंच में जस्टिस सुधीर अग्रवाल भी शामिल थे। इनके अलावा जस्टिस डी वी शर्मा और जस्टिस एसयू खान न्यायिक पीठ के जज थे।

कहा जाता है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में राम जन्मभूमि मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस सुधीर अग्रवाल ने ही कहा था कि इसके कोई प्रमाणिक दस्तावेज नहीं हैं कि मौजूदा विवादित स्थल पर मस्जिद का निर्माण बाबर ने कराया था। जबकि कई पुरातात्विक साक्ष्यों से पता चलता है कि विवादित स्थल के गर्भ गृह में मंदिर एवं हिन्दू धार्मिक प्रतीकों के अवशेष हैं।

यहीं से राम जन्मभूमि बनाम बाबरी मस्जिद के मालिकाना हक पर मुस्लिम पक्षकार का दावा कमजोर पड़ने लगा। मुस्लिम पक्षकार यह साक्ष्य ही नही जुटा पाये कि यह कथित मस्जिद बाबर ने बनायी है। जबकि एएसआई की रिपोर्ट में यह दावा किया गया कि कुछ धार्मिक प्रतीक चिन्ह हिन्दू धर्म से जुड़े हैं।

जस्टिस सुधीर अग्रवाल के बयान पर बेंच में शामिल अन्य दो जजों ने भी सहमति व्यक्त की थी। वही मुस्लिम पक्षकार की दलीलों और साक्ष्यों में अंतर आ गये और यह मामला हिन्दू पक्षकारों के फेवर में चला गया। राम जन्मभूमि मामले पर इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला इस देश में नजीर बनने का काम किया। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले पर सुनवाई के दौरान अन्य साक्ष्यों, गवाहों, दस्तावेजों के अलावा इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को भी आधार बनाया। क्योंकि राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद की शूट फाइल दो धर्म के पक्षकारों में मालिकाना हक को लेकर हुई थी। यह धार्मिक मामला होते हुए इस पर जजों द्वारा भावनात्मक अपील की जगह तथ्यात्मक साक्ष्यों को तरजीह दी गई। इसमें जस्टिस सुधीर अग्रवाल का तर्क, बयान इस मामले को मुकम्मल निर्णय तक पहुचाया।

सितम्बर 2008 से सितम्बर 2010 तक इस फैसले पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई चली थी। बेंच में शामिल तीनों जजों ने इस मामले पर अलग-अलग जजमेंट लिखी थी। लेकिन जस्टिस सुधीर अग्रवाल की जजमेंट को विशेष प्रमुखता दी गई। क्योंकि उन्होंने छोटी-छोटी बारीकियों, साक्ष्यों, गवाहों, पुरातात्विक प्रतीकों को फैसले का आधार बनाया। 5280 पेज में जस्टिस सुधीर का अग्रवाल का जजमेंट है। शोध अध्ययन के लिए उसे कई वॉल्यूम में किताब का रूप दिया गया है। जस्टिस सुधीर अग्रवाल खुद मानते हैं कि इससे लम्बा फैसला अब तक विश्व के किसी देश में नहीं आया है।

जस्टिस सुधीर अग्रवाल 05 अक्टूबर 2005 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त हुए थे और 23 अप्रैल 2020 को उन्होंने न्यायिक सेवा से अवकाश लिया। इनका जन्म 24 अप्रैल 1959 को शिकोहाबाद में हुआ था। अपने परिवार में पहले वकील और जज बनने वाले जस्टिस सुधीर अग्रवाल फैसला सुनाने मेें जितना सख्त हैं वही व्यवहारिक स्तर पर बहुत ही नरम स्वभाव के हैं।

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