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विश्व शांति के लिए प्रार्थना सभा का आयोजन, दलाईलामा ने की शिरकत

इस अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में विभिन्न देशों के विशेषकर दक्षिण पूर्व एशिया के करीब 3000 से अधिक बौद्ध श्रद्धालुओं ने भाग लिया। उनमें भारत, बांग्लादेश, थाईलैंड, कंबोडिया, श्रीलंका, तिब्बत, नेपाल, भूटान, जापान, ताइवान, कोरिया, लाओस, रुस और मंगोलिया आदि के देश तथा अन्य धर्मों के भी विद्वान विश्व शांति एवं भाईचारा विश्व में कायम होने के लिए सम्मेलन में भाग लिया।

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अंतर्राष्ट्रीय स्थल बोधगया में अंतर्राष्ट्रीय संघ फोरम (आईएसएम) 2023 का चार दिवसीय सम्मेलन में सम्मेलन के अंतिम दिन समापन के अवसर पर विशेष प्रार्थना सभा आयोजित की गई। इस प्रार्थना सभा में बौद्धों के धर्म गुरु महामहिम दलाई लामा ने भाग लिया तथा दक्षिण पूर्व एशिया के लगभग 32 देशों से ज्यादा के धर्मगुरु, विशिष्ट भिक्षु, लामा, रेनपोचे एवं बड़ी संख्या में अन्य श्रद्धालुगण शामिल हुए।

महामहिम दलाई लामा ने महाबोधि मंदिर में बोधि वृक्ष के नीचे विश्व में शांति एवं भाईचारा कायम करने के लिए अपने-अपने देश की परंपरा के अनुसार प्रार्थनाएं की। प्रार्थना सभा की शुरुआत महामहिम दलाई लामा ने दीप प्रज्वलित कर किया। इस अवसर पर महामहिम दलाईलामा ने कहा कि “प्रतीत्यसमुत्पाद” ही बुद्ध की शिक्षा का मूल मंत्र है। बौद्ध सिद्धांत के अनुसार अविद्या, संस्कार, विज्ञान, नामरूप, षडायतन, स्पर्श, वेदना, तृष्णा, उपादान,भय,जाति और दुःख के ये 12 पदार्थ एक दूसरे से संबद्ध है। इससे मुक्ति के लिए शून्यता तथा बोद्धिचित्त का अभ्यास आवश्यक है।

इस अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में विभिन्न देशों के विशेषकर दक्षिण पूर्व एशिया के करीब 3000 से अधिक बौद्ध श्रद्धालुओं ने भाग लिया। उनमें भारत, बांग्लादेश, थाईलैंड, कंबोडिया, श्रीलंका, तिब्बत, नेपाल, भूटान, जापान, ताइवान, कोरिया, लाओस, रुस और मंगोलिया आदि के देश तथा अन्य धर्मों के भी विद्वान विश्व शांति एवं भाईचारा विश्व में कायम होने के लिए सम्मेलन में भाग लिया।

धर्मगुरु दलाई लामा ने सभी धर्मों को सम्मानीय बताते हुए कहा कि सभी धर्मों का उद्देश्य लोगों के जीवन में लाभ पहुंचाना ही है। उन्होंने विश्व के इस पवित्रम स्थल बोधगया में प्रार्थना करके अपने को धन्य एवं भाग्यशाली माना,क्योंकि यहीं महात्मा बुद्ध (सिद्धार्थ गौतम) को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और वे “बुद्ध” बने थे। धर्मगुरु ने आगे कहा कि तथागत बुद्ध ने स्वयं भी कहा था कि मैं अपने आप को मुक्ति नहीं दिला सकता अथवा अपने हाथों से तुम्हारे पापों को भी नहीं धो सकता। मैं तुम्हें सिर्फ धर्म का मार्गदर्शन करूंगा, संदेश दूंगा। उसी का पालन करने से तुम्हें आवागमन से मुक्ति मिलेगी और तुम निर्वाण की प्राप्ति कर पाओगे। सदमार्ग पर चलकर तथा उसे पालन कर ही मानव का श्रेष्ठ जीवन सफल हो पायेगा।

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