व्यभिचार कानून पर और सख्ती बरतने की बजाये सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया। शब्दों से ही समझ लीजिए कि आचार के विपरित शब्द हैं व्यभिचार। इसका मतलब होता है परस्त्रीगमन। सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं की निजता, सम्मान और स्वच्छंदता का ख्याल रखते हुए आईपीसी की धारा 497 को समाप्त कर एक तरह से व्यभिचार पर मुहर लगा दी हैै। अब विवाहित स्त्री अपने पति के अलावा किसी गैर मर्द के साथ यौन संबंध बनाने के लिए स्वच्छंद है और विवाहेत्तर पुरूष किसी गैर स्त्री से। पहले व्याभिचार कानून के तहत पांच साल की सजा का प्रावधान था। लेकिन कोर्ट ने इस कानून को ही रद्द कर दिया।
विदित हो कि आईपीसी की धारा 497 के तहत मुकदमा होने पर सजा पुरूष को दी जाती थी। जब किसी विवाहित स्त्री के संबंध किसी गैर मर्द के साथ होने पर उसका पति जब उसके (गैर मर्द) खिलाफ थाने में रिपोर्ट दायर करता था तो उसे सजा हो जाती थी। कोर्ट का कहना है कि अगर विवाहित महिला-पुरूष के बीच यौन संबंध सहमति से हैं तो इसमें पुरूष अपराधी कैसे हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने 158 साल पुराने कानून के अंतर्गत आईपीसी की धारा 497 को रद्द करते हुए कहा है कि पति अपनी पत्नी को महज एक वस्तु के रूप में न देखे। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच जजों की खंडपीठ ने आईपीसी की धारा 497 को रद्द कर दिया।मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा अक्टूबर में रिटायर हो रहे हैं। इसलिए वह जाते-जाते कुछ अहम मामले जो अदालत में लंबित हैं उनपर फैसला सुनाकर जाना चाहते हैं। कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को रद्द कर दिया। आईपीसी की धारा 377 अप्राकृतिक सेक्स के खिलाफ दंडनीय अपराध था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस धारा को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि मानवीय हित को ध्यान में रखते हुए जो जिस रूप में है हमें उसी रूप में स्वीकार करना होगा। समलैंगिकों को जीने की आजादी मिलनी चाहिए।
विदित हो कि, आईपीसी की धारा 497 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। केरल के एक अनिवासी भारतीय जोसेफ शाइनी ने धारा 497 के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। याचिका में तर्क यह था कि विवाहेत्तर संबंधों के साथ किसी पुरूष को सम्मान के साथ जीने का अधिकार है या नहीं। इस कानून को लिंगभेद के नजरिये से भी देखा जाता है क्योंकि किसी विवाहित स्त्री के साथ यौन संबंधों के खिलाफ सजा सिर्फ पुरूष को ही दी जाती थी। गत साल दिसम्बर में इस याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने सुरक्षित रख लिया था।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब किसी विवाहित महिला का किसी पुरूष के साथ यौन संबंध बनाना अपराध नहीं है। लेकिन इस फैसले के बाद कई सवाल खड़े हो रहे हैं। क्योंकि पारिवारिक व्यवस्था कानूनी मानदण्डों और नियमों से कहीं ज्यादा पति-पत्नी के बीच आत्मीय संबंध और भावनाओं पर टिकी होती है, जिससे पति और पत्नी का एक दूसरे के प्रति भरोसा कायम रहता है। कोर्ट ने इस मसले पर सिर्फ कानूनी पक्ष रखकर फैसला सुनाया है जबकि सामाजिक और पारिवारिक नजरिये से भी इस मसले पर गौर करने की जरूरत थी। जब कानून का डर होता तो इंसान के व्यवहार एक दायरे में ही होता है। लेकिन जब कानून का डर खत्म हो जाता है तो इंसानी फितरतें भी बदल जाती है। लिहाजा इस कानून का गलत इस्तेमाल भी किया जायेगा। जिसका एकमात्र मकसद होगा किसी भी हद तक जाकर दैहिक आनंद की पूर्ति करना, इसके लिए क्यों ना पवित्र रिश्तों की भी तिलांजलि दी जाये।
इस फैसले के बाद महिला आयोग ने खुशी जाहिर की है लेकिन कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने मैरिटल क्राइम में बढ़ोत्तरी की अंदेशा जाहिर की है। जाने माने लेखक एवं सामाजिक शोधकर्ता डॉ. श़त्रुघ्न डांगी का कहना है कि अगर आप उच्चतर सोसाइटी और सेलेब्रिटी वर्ग को छोड़ दें तो समाज में एक्सट्रा मैरिटल के मामले चोरी छिपे ही थे और कभी-कभी खुलकर सामने आते थे। इतना जरूर है कि आईपीसी की धारा 497 रद्द किये जाने के बाद अब महिलाओ में वह डर खत्म हो गया जो कल तक समाज और परिवार को लेकर था। इस कानून को आप सामाजिक स्तर पर बांटकर नहीं देख सकते हैं। इसका असर समाज के हर वर्ग पर पड़ेगा। उनका यह भी मानना है कि इस कानून के रद्द होने के बाद समाज में व्यभिचार बढ़ेगा और बलात्कार जैसी घटनाओं में भी वृद्धि होगी।
बहरहाल, इस फैसले के बाद हम कह सकते हैं कि भारत में वेस्टर्न कंट्री की (एडल्ट्री) सेक्स फ्री कल्चर को अपनाने की मंजूरी मिल गई, जहां रिश्तों की कोई मर्यादा नहीं है। विदेशों में पति-पत्नी के बीच एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर सामान्य सी बात है। लेकिन भारत में पति-पत्नी के बीच ‘वो’ की एंट्री से रिश्तों में कड़वाहट आ जाती है और शादी टूटने की एक वजह भी बन जाती है। फिल्मों से लेकर सामाजिक परिवेश में भी कई ऐसे उदाहरण मिल जायेंगे।
दूसरी ओर भारतीय संस्कृति में पति को परमेश्वर की तरह पूजा भी की जाती है। करवा चौथ और तीज सहित कई ऐसे त्यौहार हैं जिसमें पत्नी अपने पति की लम्बी उम्र की कामना करती है। यह पति और पत्नी के बीच भावनात्मक संबंधों को दर्शाता है। शायद भारत के सिवाय किसी भी देश में पति को पूजने की प्रथा नहीं है। यह प्रथा भावनाओं पर केन्द्रीत है इसके लिए पत्नी पर किसी तरह का दबाव नहीं है। जबकि पति और पत्नी के बीच रिश्तों में नोक-झोक होना स्वाभाविक है और इस मामले में कोई कानून भी कुछ नहीं कर पायेगा। जबकि मेट्रो सिटीज में सिंगल परिवार में एक्सट्रा मैरिटल अफेयर की भी खबरें सामने आती रहती हैं। लेकिन इन अपवादों के साथ एक व्यक्तिगत दृष्टिाकोण से जुड़ी याचिका के आधार पर सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भविष्य में पति-पत्नी के बीच अविश्वास का भाव बढ़ाने काम करेगा। जबकि पेज-3 पार्टियों का हिस्सा बनने वाली और पति के होते हुए गैर मर्दो के साथ संबंध रखने वाली महिलाओं के लिए सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला किसी हसीन सपने को पूरा होने जैसा है। अंततः दोनों के बीच तलाक ही एक मात्र विकल्प बचेगा।