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इजरायल को लम्बे समय तक युद्ध में उलझाये रखने की इस्लामिक देशों की रणनीति

* युद्ध में अकेले पड़ा इजरायल *

जिस तरह रूस और युक्रेन युद्ध का कोई निष्कर्ष नहीं निकला ठीक उसी तरह इजरायल और हमास के बीच युद्ध का भी कोई निष्कर्ष अब तक नहीं निकला है। लेकिन इस युद्ध में हुई बर्बादी और कराहती मानवता पर विश्व समुदाय की चुप्पी से कई सवाल खड़े होते हैं।

हमास और इजरायल के बीच युद्ध को वैचारिक और धार्मिक स्तर पर विश्वव्यापी समर्थन और विरोध देखने को मिल रहे है। हमास द्वारा इजरायल पर 5000 से भी ज्यादा मिसाइल हमले को जायज ठहराने वाले देश गाजा में हुई बर्बादी के लिए इजरायल को गुनाहगार मान रहे हैं।

इजरायल को चौतरफा घेरने के लिए एक बड़ा गुट बनता दिख रहा है और इसमें खाड़ी के कई देश मुख्य भूमिका निभा रहे हैं। हर कोई नफा नुकसान देखकर कदम उठा रहा है। लेकिन युद्ध रोकने के लिए वैचारिक स्तर पर कदम नहीं उठाये जा रहे है।

इस्लामिक देशों के संगठन ओआईसी इस बार इजरायल को युद्ध में लम्बे समय तक उलझाये रखने की रणनीति पर काम कर रहा है।

इजरायल से युद्ध के लिए कुछ खाड़ी देशों में फंडिंग की जा रही है। ईरान को कई देशों से वित्तीय सहायता और हथियार मिल रहे हैं। ईरान ने इजरायल के खिलाफ मोर्चा संभाल लिया है।

फिलीस्तीन और हमास के बीच अब इतनी शक्ति नहंी बची है वह इजरायल से टकराये। हालांकि हमास अभी भी गुरिल्ला युद्ध की रणनीति अपनाकर इजरायल को भारी नुकसान पहुंचा रहा है।

ईरान और इजरायल के बीच जंग में विकसित देश ताल ठोक रहे हैं। यूनाइटेड नेशन द्वारा कभी ईरान को हड़काया जा रहा है तो अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा इजरायल को युद्ध रोकने की नसीहत दी जा रही है।

इजरायल अब इस युद्ध में अकेले पड़ता दिख रहा है। इजरायल की आयरन डोम की कमजोरी ने दुश्मन देशों के हौसलों में उड़ान भर दी है। आयरन डोम की वजह से इजरायल को अभेद्य किला माना जाता रहा है। किसी ने इजरायल के खिलाफ लड़ने की हिम्मत नहीं जुटायी।

हमास ने जिस तरह 5000 मिसाइलों से इजरायल पर हमला किया और आयरन डोम उन मिसाइलों को रोक पाने में नाकाम रही, यह दुश्मन देशो के लिए इजरायल के खिलाफ एक संजीवनी मंत्र का काम किया है। कुल मिलाकर कहंें तो अब मुस्लिम देशों द्वारा इजरायल को पूरी तरह निपटाने की रणनीति बनायी जा रही है। इजरायल को अब युद्ध मेें लम्बे समय तक उलझाये रखना है।

आश्चर्य की बात है कि अमेरिका भी अब इजरायल को साथ देने से पहले खाड़ी देशों के साथ दोस्ती और अपने नफा नुकसान के बारे में सोच रहा है। इजरायल द्वारा गाजा पर कब्जे की रणनीति का सबसे पहले विरोध अमेरिका ने ही किया था। अमेरिका अब इजरायल के साथ डबल गेम खेल रहा है। वह इजरायल के साथ मित्रता को निभाना भी चाहता है और इस्लामिक देशो के साथ अपने कारोबारी रिश्ते को खराब नहीं करना चाहता है।

अरब सहित कई इस्लामिक देशों में अमेरिका सैन्य सेवा प्रदान करता है। बदले में अमरिका को इस्लामिक देशों से मोटी कमाई होती है। अमीर इस्लामिक देशों का अमेरिका में भारी निवेश है। यही कारण है कि खाड़ी देशों के साथ अमेरिका अपने रिश्तों को खराब नहीं करना चाह रहा है।

कुल मिलाकर कहंें तो इजरायल अपने अस्तित्व के सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। मित्र देशों के साथ-साथ वैश्विक संगठनों द्वारा भी इजरायल को युद्ध रोकने की नसीहत दी जा रही है।

जबकि बदहाली के दौर से गुजरता और कर्ज के लिए बार-बार आईएमएफ के समक्ष गिड़गिड़ाने वाला पाकिस्तान भी इजरायल के खिलाफ युद्ध में अपनी सेना भेजने को तैयार है। पाकिस्तान ने इजरायल को कभी भी देश के रूप में मान्यता नहीं दी है। पाकिस्तान के पासपोर्ट से इजरायल की यात्रा नहीं की जा सकती।

टर्की, ईरान और पाकिस्तान के अलावा कई देशों की हाल ही मेें एक बैठक हुई है। बैठक का मुख्य मुद्दा था इस बार इजरायल का नामोनिशान मिटाना है। इसी रणनीति के तहत ईरान बार-बार इजरायल पर हमला कर रहा है। बदले में इजरायल द्वारा भी कारवाई की जा रही है, जिसमें ईरान को भी भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। लेकिन इस युद्ध में इजरायल की सैन्य आयुध क्षमता कम होती जा रही है। हथियारों की तेजी से खपत हो रही है।

कभी हमास, कभी हिजबुल्ला, कभी हुती, द्वारा एक रणनीति के तहत इजरायल पर हमला किया जा रहा है। इजरायल की सैन्य शक्ति पूरी तरह कमजोर करने की प्लानिंग है।

अब जो परिदृश्य बन रहा है जिसमें इराजयल के समर्थन में कुछ ही देश खड़े हैं। जबकि सैन्य शक्ति से भरपूर विश्व के दो बड़े देश रूस और चीन का समर्थन इजरायल को नहंी मिल रहा है।

इजरायल की अमेरिका से नजदीकी के कारण रूस इन मामलों से दूरी बनाकर चल रहा है। जबकि चीन खांटी कारोबारी देश है और वह अभी तेल और तेल की धार देख रहा है। युद्ध का परिणाम चाहे जो निकले लेकिन इस बर्बादी की दास्तान में उनका भी नाम जुड़ेगा जिन्होंने इजरायल पर हमास के हमलों को जायज करार दिया है।

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