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सऊदी अरब को इस्लामिक मुल्कों के वजीर नहीं प्यादा पसंद हैं

इस्लामिक देशों के प्रमुख संगठन ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक को-ऑपरेशन (ओआईसी) को दो भागों में विभाजित कर पाकिस्तान में एक सम्मेलन कराने के बयान हाल ही में इमरान खान सरकार की ओर से दिये गये थे। इस आधिकारिक बयान के बाद इमरान खान सऊदी प्रिंस को खटक गये और अब उन्हें हटाने की तैयारी चल रही है। ओआईसी को तोड़ने की बात करना मतलब सीधे-सीधे सऊदी सरकार को चुनौती देना है। खबर है कि सऊदी प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान पाकिस्तान के पूर्व सेना प्रमुख राहिल शरीफ को पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनाने पर विचार कर रहा है। पाकिस्तान के शीर्ष पदों पर जो भी बैठता है उसमें सऊदी की आंशिक सहमति होती है और वह पदासीन होने के बाद सबसे पहले सऊदी सरकार के दरबार में हाजिरी देने जाता है।

दुनिया में 57 इस्लामिक मुल्क हैं जिनमें ज्यादातर सऊदी अरब के टूकड़ों पर पलने वाले हैं। लिहाजा इन मुल्कों पर सऊदी का अघोषित वर्चस्व कई दशकों से है। सऊदी प्रिंस जियारत के पैसे गरीब मुस्लिम देशों पर लूटाता रहा है। ऐसा करने के पीछे सऊदी शासक के स्वार्थ हित भी हैं। सऊदी शासकों में इस्लामिक मुल्कोें की नीतियों में दखल देने की प्रवृति शुरू से ही रही है और कई देशों में हुए तख्तापलट में भी वहां के तात्कालिन शासक की बड़ी भूमिका रही है। इस्लामिक मुल्कों के तानाशाह/प्रधानमंत्री/सुल्तान में एक चीज जो सामान्य दिखती है वह है सऊदी के प्रति राजनतिक गुलामी और धार्मिक निष्ठा। सऊदी के खिलाफ जाने वाले मुल्कोें के शासकों को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है। जिस मुल्क के शासक ने सऊदी प्रिस के खिलाफ मुंह खोला है अथवा साजिश एवं षडयंत्र में शामिल रहा है उस देश में तख्तापलट अथवा सत्ता परिवर्तन होना तय मान लिया जाता है। कुछ ऐसे ही हालात पाकिस्तान में बनते दिख रहे हैं। पाक के  प्रधानमंत्री इमरान खान को हटाने की रणनीति सऊदी अरब में बन रही है। पाक की सत्ता पर इमरान खान की जगह पूर्व सेना प्रमुख राहिल शरीफ को बैठाने की तैयारी चल रही है। आखिर सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान को पाक पीएम इमरान खान से इतनी चिढ़ क्यों है? इमरान खान और सऊदी प्रिंस को क्यों खटक रहे हैं?

दरअसल, पाक पीएम इमरान खान ने कश्मीर मुद्दे पर इस्लामिक देशों के संगठन (ओआईसी) से भारत के खिलाफ सहयोग मांगा था। इसके लिए सऊदी प्रिंस पर भी दबाव बनाया गया था। पाक सेना प्रमुख की ओर से बयान जारी किये गये थे, जिसमें धमकी भरे लहजे में ओआईसी प्रमुख को भी चेेतावनी दी गई थीं कि अगर कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का साथ नहीं दिया गया तो ओआईसी को दो भागो में विभाजित कर दिये जायेंगे।

पाक के इस धमकी भरे बयान को सऊदी प्रिंस ने दिल पर ले लिया और इमरान खान भविष्य में खतरा के रूप में दिखाई देने लगे। हाल के दिनों में इमरान खान एवं पाक की ओर से दिये गये आधिकारिक बयान से सउदी अरब को अहसास हो गया है कि पाकिस्तान का पीएम इमरान खान इस्लामिक देशों की एकजुटता के साथ-साथ मैत्री देशों के बीच संबंधो में दरार पैदा कर सकता है। कश्मीर से धारा 370 हटाये जाने के बाद सऊदी ने भारत के खिलाफ कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी जबकि, अमेरिका और यूरोप के कई देशों के प्रमुखों ने भी इसे भारत का निजी मामला बताया था। मुस्लिम देशों में मलेशिया और टर्की को छोड़कर पाकिस्तान के पक्ष में कोई भी खड़ा नहीं दिखा।

कश्मीर से धारा 370 हटाये जाने के मसले पर पाकिस्तान के बहकावे में आकर मलेशिया ने भारत से रिश्ते खराब कर लिये। दोनों देशों के बीच व्यापारिक रिश्ते खत्म हो चुके हैं। भारत ने मलेशिया से पाम आयल खरीदना बंद कर दिया है। भारत के इस फैसले के बाद मलेशिया घुटनों पर आ गया। विरोधियों के निशाने पर आये महातिर मोहम्मद को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। भारत से रिश्ते खराब होने पर मलेशिया की नई सरकार पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराती है और भारत के साथ पुनः व्यापारिक रिश्ते बहाल करने पर विचार कर रही है। कश्मीर मसले पर मलेशिया ने पाकिस्तान को खरी-खरी सुना दी है कि जो करना है खुद करो, हमें इस मामले में मत घसीटो।

मलेशिया से नाउम्मीदी मिलने के बाद पाकिस्तान तुर्की की झोली में जा गिरा है। तुर्की का राष्ट्रपति चेचप एर्दोगन इस्लामिक चरमपंथ का समर्थक है और पाकिस्तान को ऐसे ही देश की जरूरत है जो कश्मीर मसले पर उसका साथ दे। एर्दाेगन पर ये भी आरोप है कि उसने कट्टर आतंकी संगठन आईएसआईएस को फंडिग एवं सैन्य सहयोग भी दिया है। चरमपंथ के हिमायती बनने के कारण ही एर्दोगन को लेकर सऊदी प्रिंस की भौहें तनी हुई हैं। इस्लामिक देश होने के बावजूद सऊदी अरब तुर्की को कोई भाव नहीं देता। जबकि एर्दाेगन का कहना है कि इस्लाम को सबसे बड़ा खतरा सऊदी से ही है। एर्दाेगन का मानना है कि गैर इस्लामिक देशों के साथ सउदी के व्यापारिक एवं मैत्री संबंध इस्लाम के विस्तार में बाधक बन रहे हैं।

चरमपंथी तेवर दिखाकर तुर्की का राष्ट्रपति इस्लामिक देशों पर रौब जमाना चाह रहा है। ओआईसी को तोड़ने की साजिश के पीछे तुर्की की चाल है और पाकिस्तान उसके झांसे में आ गया है। ओआईसी के सदस्य देशों को एर्दोगन इस्लामिक चरमपंथ का पाठ पढ़ाकर सऊदी से दूर करना चाह रहा है। तुर्की और पाकिस्तान छोटे-छोटे इस्लामिक मुल्कों को अपनी सैन्य शक्ति का अहसास करना चाहते हैं। एटमी शक्ति हासिल करने वाला पाकिस्तान पहला इस्लामिक मुल्क है। इसी के बल पर पाकिस्तान इस्लामिक मुल्कों से गैरजरूरी मांगे भी पूरी कर लेता है। भले ही सामरिक दृष्टि से विश्व के हित में हो या ना हो।

कश्मीर मसले पर भारत सरकार के खिलाफ पाकिस्तान को इस्लामिक मुल्कों से समर्थन नहीं मिलने पर बौखलाई इमरान सरकार ने ओआईसी को तोड़ने की बात कही थी। ओआईसी को दो भागों में विभाजित कर पाकिस्तान में एक सम्मेलन कराने के बयान हाल ही में इमरान खान सरकार की ओर से दिये गये थे। और यही से इमरान खान सऊदी प्रिंस को खटक गये और अब उन्हें हटाने की तैयारी चल रही है। ओआईसी को तोड़ने की बात करना मतलब सीधे-सीधे सऊदी सरकार को चुनौती देना है। पाकिस्तान के शीर्ष पदों पर जो भी बैठता है उसमें सऊदी की आंशिक सहमति होती है और वह पदासीन होने के बाद सबसे पहले सऊदी सरकार के दरबार में हाजिरी देने जाता है।

लेकिन, इमरान खान तो सीधे-सीधे सऊदी सरकार को चुनौती दे रहे हैं कि उनकी बात नहीं मानी गई तो इस्लामिक मुल्क के संगठन ओआईसी को तोडकर आधे सदस्य देश को अपने पाले में कर लेंगे। सऊदी अरब को इसका संदेश पहुंचने के लिए बकायदा पाक की ओर से आधिकारिक बयान दिये गये हैं। इसके बाद सउदी सरकार ने पाकिस्तान को औकात में रहने की नसीहत दे दी।

तुर्की की शह पर अनाप-शनाप बयानबाजी के बाद इमरान खान को कुर्सी का डर सता रहा है। इसके बाद पाकिस्तान की ओर से विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी, पाक सेना प्रमुख जनरल बाजवा सहित कई आला नेताओं एवं अधिकारियों ने इस्लाम का वास्ता देकर सऊदी के दरबार में माफी मांगनी चाही। लेकिन सऊदी प्रिंस ने किसी से भी मिलने से साफ तौर पर मना कर दिया।

पाक की सारी कवायदें धरी की धरी रह गई और थक हारकर वह सभी पाकिस्तान लौट चुके हैं। इमरान सरकार की ओर से की गई बयानबाजी की कीमत पाकिस्तान को बहुत भारी पड़ने वाली है। सऊदी प्रिंस ने पाकिस्तान को सारा कर्ज चुकता करने का भी अल्टीमेटम दे दिया है और तेल उधारी पर भी लगाम लगा दिया है। पूरी दुनिया को पता है कि सऊदी अरब इस्लामिक देशों के आंतरिक मामलों में भी दखल देता है और अघोषित तौर पर नेतृत्व भी कर रहा है। लेकिन कुछ देश जो थोड़े सम्पन्न हो गये है वह सऊदी सरकार को भाव नहीं देते। उनमें तुर्की के राष्ट्रपति चेचप अर्दाेगन का नाम सबसे उपर है। उन्हेें लगता है कि सऊदी सरकार इस्लामिक देशों पर अपनी मनमर्जी थोपकर सिर्फ अपना हित साधता है और इसका विरोध किया जाना चाहिए। हर देश की अपनी संप्रभूता है लेकिन आर्थिक तौर पर कमजोर छोटे-छोटे इस्लामिक देश अपनी सार्वभौमिकता को सऊदी सरकार के पास गिरवी रख चुके हैं।

यही कारण है कि सऊदी सरकार अपनी बादशाहत कायम रखने के लिए विरोध करने वाले देशों को उसकी हैसियत का अहसास कराकर मुंह बंद करा देता है। जबकि, ओआईसी के कुछ सदस्य देश तुर्की की बात से सहमत हैं। सऊदी प्रिंस को पहली बार अहसास हो रहा है कि उनके टूकड़ों पर पलने वाले देश अब मुखर हो रहे हैं। अगर उन्हें कोई और खाद-पानी देने लगे तो सऊदी वंशबेल की खिलाफत करने में जरा भी नहीं हिचकेंगे।

इसलिए तुर्की का साथ देेने वाले देशों पर सऊदी कड़ी नजर रख रहा है। पाकिस्तान और तुर्की की दोस्ती से सऊदी अरब चिंतित है। दोनों देशों के बीच दोस्ती को खत्म करने के लिए सऊदी प्रिंस पाक पीएम इमरान खान को सत्ता से हटाने और उनकी जगह अपने खास राहिल शरीफ को पीएम पद पर बैठाने पर विचार कर रहा है।

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