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आईटीआई मामला: रेल मंत्रालय ने युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने का मौका गवां दिया

नई दिल्ली। केन्द्रीय रेल मंत्री पीयूष गोयल ने रेलवे में ग्रुप ‘डी’ की बहाली के लिए आईटीआई की अनिवार्यता खत्म कर दी है। रेल मंत्री की इस घोषणा के बाद बिहार में अंदोलनरत छात्रों ने खुशी जाहिर की है वहीं बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी ने पीयूष गोयल को बधाई दी है। सुशील मोदी का कहना है कि रेल मंत्री ने बिहार सरकार के सुझावों को तरजीह देते हुए छात्रों के हित में फैसला वापस ले लिया।

लेकिन दसवीं पास छात्रों का ग्रुप ‘डी’ में आईटीआई की क्राइटेरिया के बहाने ही यांत्रिकी और तकनीकी प्रशिक्षण के प्रति झुकाव बढ़ता, उससे वह वंचित हो गये। केन्द्र सरकार ने वह मौका गवां दिया जिससे छात्रों को बुनियादी स्तर पर ही यांत्रिकी और तकनीकी प्रशिक्षण के प्रति जागरूक किया जा सके। केन्द्र सरकार कहती है कि सरकारी नौकरी की जगह देश के युवा निजी क्षेत्रों में अपना भविष्य तलाशें अथवा स्टार्ट अप का हिस्सा बनें। केन्द्र सरकार की स्टार्ट अप योजना का मुख्य उद्देश्य यही है कि युवाओं को आत्मनिर्भरता के लिए प्रेरित किया जाये।

कारपोरेट सेक्टर में आई मंदी की मार से इस क्षेत्र में नौकरी मिलने से ज्यादा छंटनी हो रही है। बहाली अगर 100 लोगों की है तो वहां लाखों आवेदन पहुच रहे हैं। ऐसे में स्वयं का कारोबार अथवा तकनीकी और यांत्रिकी सेक्टर ही बचा है जिससे आय के स्रोत सुनिश्चित की जा सके। व्यक्तिगत तौर पर मैं ऐसे कई लोगों को जानता हूं जो आईटीआई प्रशिक्षित होने के बल पर ही आज आर्थिक तौर पर आत्म निर्भर हैं। कहीं नौकरी नहीं मिलने पर उनलोगों ने खुद का कारोबार खड़ा किया है और आज वह अच्छे मुकाम पर हैं।

इसलिए देश के सामने बेरोजगारी की भयावह स्थिति को देखते हुए ऐसा लगता है कि रेलवे में ग्रुप ‘डी’ की बहाली में औद्योगिकी प्रशिक्षण की अनिवार्यता खत्म करके भारत सरकार ने ठीक नहीं किया है। रेलवे में हर युवा तो बहाल नहीं होगा। लेकिन जो युवा प्रशिक्षित होगा उसके सामने कॅरियर के और भी विकल्प हो सकते हैं। जब किसी बहाली में क्राइटेरिया अनिवार्य की जाती है तो छात्र उसे पूरा करेंगे ही करेंगे। इसके नतीजे कुछ साल बाद सामने आते। बहरहाल, रेलवे में आईटीआई की डिप्लोमा को दसवीं पास छात्रों के लिए अनिवार्य किया गया था जिसे रेल मंत्री ने वापस ले लिया है। यह पक्ष कैरियर के नजरिये से सही था, स्टार्ट अप के नजरिये से सही था।

इसका दूसरा पहलू यह है कि, देश में रेलवे का तेजी से विस्तार हो रहा है। जबकि, लाख तकनीकी सुविधाओं, संपूर्णताओं के बावजूद रेल दुर्घटनाओं में भी वृद्धि हुई है। ज्यादातर रेल दुर्घटनाओं की जांच में मैनुअल डिफॉल्ट की बात कही जाती है। लेकिन रेल कर्मचारियों की छोटी सी लापरवाही बड़ी दुर्घटना का गवाह बनती है। कई रेल दुर्घटनाओं में मेंटेनेंस पक्ष की खामियां रही है। इससे निपटने के लिए सरकार, रेलवे बोर्ड को सभी क्राइटेरिया में प्रशिक्षण प्राप्त आवेदकों को ही बहाल करने की रणनीति बनानी चाहिए।

बता दें कि ग्रुप ‘डी’ में बहाल कर्मचारियों को रेल पटरियों की देखरेख, मेंटेनेेंस, प्वाइंट मैन, हेल्पर, गेट मैन के रूप में ड्यूटी दी जाती है। हालांकि सरकार उन कर्मचारियों को उनकी ड्यूटी के संदर्भ में प्रशिक्षण देती है। लेकिन अगर प्रशिक्षित को ही चयन किया जायेगा तो उनका वर्क प्रजेंटेशन अलग होगा। सवाल यहां यह है कि रेलवे विभाग अन्य तकनीकी सेक्टर की तरह ग्रुप ‘डी’ में भी प्रशिक्षित युवाओं को ही बहाल करने पर कायम रहे तो इसमें क्या हर्ज है। लेकिन आश्चर्य है कि कुछ छात्र सड़कों पर क्या उतर गये, रेल मंत्री ने अपना फैसला ही बदल दिया।

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