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सियासत के रंग में रंगने लगा है जेएनयू का छात्र आंदोलन

राजनीति से इतर आम लोगों की प्रतिक्रियाओं को देखा जाये तो कई लोग इस विरोध- प्रदर्शन को जायज नहीं ठहरा रहे हैं। लोगों का कहना है कि केन्द्र सरकार के खिलाफ मुखालफत करना ही जेएनयू के छात्रों की मनोवृति बनती जा रही है। वह अपनी मांगों को विश्वविद्यालय प्रशासन और सरकार के समक्ष सही तरीके से भी रख सकते थे। लोगों का यहां तक कहना है कि महंगे कपड़े, ब्रांडेड जूते और महंगे स्मार्टफोन इस्तेमाल करने और छात्र जीवन के दौरान ही समृद्ध स्तर की जीवन शैली अपनाने वाले इन छात्रों को गरीब कैसे कहा जा सकता है। लोगों की प्रतिक्रियाओं में दम है और इसपर राष्ट्रीय बहस होनी चाहिए। देश में गरीबी के तय मानकों पर फिर से विचार करने की जरूरत है, क्योंकि शिक्षा ही नहीं देश की कई कल्याणकारी योजनाओं की विफलता की सबसे बड़ी वजह गरीबी के नाम पर खुले आम लूट-खसोट है।

कभी जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की चर्चा देश दुनिया में विशेष उपलब्धियों के लिए होती थी। लेकिन आज उस विद्यालय की प्रतिष्ठा पर वहां के कुछ छात्र ही पलीता लगा रहे हैं। पिछले कुछ वर्षो से यह विश्वविद्यालय कुछ ज्यादा ही नकारात्मक सुर्खियों बटोर रहा है।

संसद हमले के आरोपी अफजल गुरू की फांसी की बरसी मनाने, भारत तेरे टुकड़े होंगे… जैसे देशद्रोह से जुड़े भाषण और बयान देने, कश्मीर की धारा 370 हटाये जाने का विरोध, नक्सलियों द्वारा भारतीय जवानों के मारे जाने पर खुशी जाहिर करना, इसके अलावा जेएनयू के छात्रों के कई ऐसे कार्य है जिसे सही नहीं ठहराया जा सकता है। ये सब अगर किसी शैक्षणिक संस्थान में हो रहा है तो आप अंदाजा लगा सकते हैं वहां के शैक्षणिक परिवेश में कितना जहर घुल रहा है और सत्ता-शासन के प्रति उनमें कितनी नफरत है। सरकार की नजर में यह संस्थान देशविरोधी लोगों का अड्डा बनते जा रहा है। इसलिए केन्द्र सरकार इसपर नकेल कसने की तैयारी में है।

मार्क्सवाद विचारधारा को खाद-पानी देने वाले यहां के छात्र अपने अधिकारों की दुहाई देते हुए वामपंथी छात्र यह भूल जाते हैं कि भारतीय संविधान ने उन्हें कुछ ज्यादा ही अधिकार दे दिया है। अन्यथा शैक्षणिक संस्थानों में देश विरोधी हरकतों को कौन स्वीकार करेगा। जेएनयू को सियासत का अड्डा बनाने में कुुछ नेताओं की बड़ी भूमिका है और यहां के छात्रों को सियासी मोहरा की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। ताजा मामला फीस वृद्धि एवं कुछ नियमों को लेकर है। जिसमे एक नियम यह भी है कि हॉस्टल का गेट 11 बजे बंद किया जाना है जो छात्रों को नागवार गुजरा है।

जेएनयू में 10 रूपया एक महीने का हॉस्टल का किराया है। जेएनयू के एक छात्र को एक बेड लिए के लिए दस रूपये चुकाने होते हैं। सरकार ने 10 रूपये की फीस 300 रूपये कर दी है। जेएनयू के छात्र इसे इस तरह प्रचारित कर रहे हैं जैसे सरकार ने उनके उपर पूरे देश का बोझ लाद दिया।

केंद्र सरकार ने ऑडिट के बाद जेएनयू में फीस वृद्धि का फैसला किया एवं नियमावली जारी कर दी है। जेएनयू के छात्रों को ना फीस वृद्धि मंजूर है और ना ही 11 बजे तक हॉस्टल में आना। जेएनयू के छात्र रात भर खुली आजादी चाहते हैं। कुछ भी करने की आजादी चाहते हैं। वहां के छात्रों की बेतूकी हरकतें, अश्लीलता, लम्पटता सहित कई करतूतें धीरे-धीरे सामने आने लगी है। उन्हें आजाद रहना पसंद है। पढ़ाई के नाम पर अब वहां जो हो रहा है उसे पूरा देश देख रहा है।

जेएनयू में फीस वृद्धि के बहाने भगवा बनाम लाल की वैचारिक जंग भी दिखने लगी है। वहां के कुछ छात्रों  ने स्वामी विवेकानंद की मूर्ति का अपमान कर सीधे-सीधे बीजेपी को चुनौती दिया है। जेएनयू में यह वैचारिक जंग सियासत का अखाड़ा बनता दिख रहा है। छात्रों का यह विरोध विश्वविद्यालय के प्रांगण से निकलकर संसद तक पहुच गया हैं।  कहा जा रहा है कि इस छात्र आंदोलन को वाम घटकों का सहयोग मिल रहा है।

राजनैतिक समर्थन मिलने के बाद जेएनयू का धरना प्रदर्शन अब आंदोलन का रूप ले चुका है। जेएनयू के वीसी छात्रों से धरना खत्म कर पढ़ाई पर ध्यान देने की अपील कर रहे है। लेकिन उनकी अपील का इन आंदोलनरत छात्रों पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। यहां तक की फीस वृद्धि से नाराज छात्रों ने वीसी के साथ दुर्व्यवहार किया और एक प्राध्यापक को 10 घंटे तक कमरे में बंद कर दिया। छात्रों के विरोध का यह तरीका कोई भी जायज नहीं ठहरा रहा है। इतना ही नहीं छात्रों ने चालू लोकसभा सत्र के दौरान सरकार का ध्यान खीचने के लिए संसद मार्च का फैसला किया। पुलिस की तमाम सुरक्षा व्यवस्था के बावजूद छात्रों ने सड़क पर उतरकर जमकर बवाल काटा। छात्रों ने कई बैरिकेड्स तोड़ दिये जिसपर खीझकर पुलिस ने उनपर लाठी चार्ज कर दी। लाठी चार्ज के बाद यह आंदोलन सियासत के रंग में रंगने लगा है। विपक्षी दलों के नेताओं को यह आंदोलन बीजेपी सरकार पर हमलावर होने का मौका दे दिया है।

माकपा नेता सीताराम येचुरी ने कहा है कि सरकार देश की शैक्षणिक व्यवस्था को बरबाद करना चाह रह है। छात्रों को सड़क पर उतरने से रोकने के लिए जितनी पुलिस व्यवस्था की है उतनी तो इमरजेंसी के दौरान भी नहीं थी।
आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने वर्तमान की केन्द्र सरकार की तुलना हिटलरशाही और जनरल डायर से की है। कांग्रेस के नेता और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा है कि बीजेपी सरकार जवाहर लाल नेहरू से जुड़ी तमाम संस्थानों को मिटाने पर तुली है।

जबकि, बीजेपी सरकार का कहना है कि यह वामपंथी दलों का प्रायोजित आंदोलन है। वामपंथी दल छात्रों को सड़क पर उतारकर सियासी रोटियां सेकना चाह रहे हैं। बहरहाल, अब जेएनयू की फीस वृद्धि का मामला सियासत की चक्की में पिसने लगा है। सरकार जहां फीस वृद्धि को जायज ठहरा रही है।वहीं विपक्षी दलों और छात्रों का कहना है कि सरकार जेएनयू में गरीब छात्रों को पढ़ने से रोकना चाह रही है।  हालांकि छात्रों के विरोध प्रदर्शन और आंदोलन को कुछ लोग जायज ठहरा रहे हैं जबकि देश के असंख्य लोग इसे नकारात्मक रूप में देख रहे हैं।

इसपर राजनीति से इतर आम लोगों की प्रतिक्रियाओं को देखा जाये तो कई लोग इस विरोध-प्रदर्शन को जायज नहीं ठहरा रहे हैं। लोगों का कहना है कि केन्द्र सरकार के खिलाफ मुखालफत करना ही जेएनयू के छात्रों की मनोवृति बनती जा रही है। वह अपनी मांगों को विश्वविद्यालय प्रशासन और सरकार के समक्ष सही तरीके से भी रख सकते थे। लोगों का यहां तक कहना है कि महंगे कपड़े, ब्रांडेड जूते और महंगे स्मार्टफोन इस्तेमाल करने और छात्र जीवन के दौरान ही समृद्ध स्तर की जीवन शैली अपनाने वाले इन छात्रों को गरीब कैसे कहा जा सकता है। लोगों की प्रतिक्रियाओं में दम है और इसपर राष्ट्रीय बहस होनी चाहिए। देश में गरीबी के तय मानकों पर फिर से विचार करने की जरूरत है, क्योंकि शिक्षा ही नहीं देश की कई कल्याणकारी योजनाओं की विफलता की सबसे बड़ी वजह गरीबी के नाम पर खुले आम लूट-खसोट है।

 

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