विश्व प्रसिद्ध एवं ‘विश्व-विरासत’ में सम्मिलित बोधगया का अति पावन “महाबोधि-महाविहार” परिसर में पवित्र “बोधि-वृक्ष” के नीचे बौद्ध धर्म ग्रंथ की “त्रिपिटक” पूजा समारोह “इंटरनेशनल त्रिपिटक-चांटिंग सेरेमनी” के रूप में संचालित है। यह पवित्र आयोजन विगत 2 दिसंबर 2025 से आरंभ होकर आगामी 10 दिनों तक यानी 12 दिसंबर को संपन्न होगी। इस वृहत आयोजन में विश्व भर के लगभग 27 देशों के करीब 20 हजार से अधिक बौद्ध-श्रद्धालु, भिक्षु-भिक्षुणियां एवं उपासक और उपासिकाएं भाग ले रही हैं।
“त्रिपिटक-चांटिंग समारोह महाबोधि मंदिर के पीछे विशाल “कालचक्र मैदान” में संचालित है,जिसकी मेजबानी पहली बार इस वर्ष भारत कर रहा है। बौद्ध नियमानुसार इस आयोजन को आगामी दो सालों तक भारत को ही करना होगा। भारत में आयोजित इस त्रिपिटक-पूजा सेरेमनी आयोजन का स्वागत प्रभार अंतर्राष्ट्रीय संस्था ‘ओमेश-अमेरिका’ ने संभाली है।
समारोह का शुभारंभ भारत सरकार के केंद्रीय पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने दीप प्रज्वलित कर किया। श्री शेखावत सर्वप्रथम महाबोधि मंदिर के गर्भ गृह में जाकर वहां स्थापित स्वर्णिम आभा से आलोकित भगवान बुद्ध की आकर्षक एवं भव्य प्रतिमा का दर्शन किया और पूजा-अर्चना की। उसके बाद वे बोधगया के विशाल कालचक्र मैदान में आकर आयोजित विशाल समारोह को संबोधित किया। उन्होंने बौद्ध धर्म में इस आयोजन की महत्ता पर विशेष रूप से प्रकाश डाला।
केंद्रीय पर्यटन मंत्री के साथ अरुणाचल प्रदेश के उप मुख्यमंत्री,थाईलैंड के संघराजा,टेंपल मैनेजमेंट कमेटी के सचिव तथा अन्य देशों के विशिष्ट बौद्ध अतिथिगण मंच पर विराजमान थे। समारोह में अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध विहारों के भिक्षु प्रभारीगण, उनमें श्री लंका, म्यांमार, थाईलैंड, भूटान, कंबोडिया, लाओस, वियतनाम,, नेपाल, कोरिया, मंगोलिया और तिब्बत के साथ-साथ भारत के विभिन्न प्रांतों से आए भन्तेगण जो विभिन्न रंगों में केसरिया, पीला,भूरा और गहरे मैरुन रंग के चीवर धारण किए हुए शोभायमान हो रहे थे।
प्रारंभ में जैसे ही घंटा बजा तो एक साथ हजारों कंठों से त्रिपिटक-पूजा का पारंपरिक पाली पाठ शुरू हुआ।
मुख्य अतिथि श्री शेखावत ने इस ऐतिहासिक आयोजन में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा उनके भेजे गए संदेशों को भी उपस्थित विशाल समारोह के बीच पढ़कर सुनाया।समारोह की शुरुआत 2 दिसंबर 2025 को प्रातः 80 फुट ऊंची बुद्ध-प्रतिमा परिसर से आरंभ होकर एक विशाल भव्य “धम्म-पदयात्रा” से की गई।
यह ऐतिहासिक धम्म ‘पद-यात्रा’ जापानी यूनिवर्सिटी, थाई मॉनेस्ट्री तथा जय प्रकाश उद्यान होते हुए महाबोधि मंदिर पहुंची। धम्म-यात्रा में पंचशीलध्वज, गाजे-बाजे और पारंपरिक रथ के साथ हजारों बौद्ध-भिक्षु एवं श्रद्धालुगण– बुद्धम् शरणम् गच्छामि, धम्म् शरणम् गच्छामि और संघम् शरणम् गच्छामि के उद्घोष के साथ संपूर्ण वातावरण को बुद्धमय और भक्तिमय बना दिया।
समारोह को बौद्ध भिक्षु “रत्न थेरी” ने इस ऐतिहासिक त्रिपिटक-पूजा की प्राचीन परंपरा के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि गौतम सिद्धार्थ को जब ईसापूर्व छठी शताब्दी में इस पवित्र बोधि वृक्ष के नीचे बोधगया में “ज्ञान” की प्राप्ति हुई थी, जिससे वे सिद्धार्थ गौतम से “बुद्ध” बने और यह पीपल (अश्वथ) वृक्ष “बोधि वृक्ष'” कहलाया तथा यह पवित्र स्थान “बोधगया” नाम से विश्व प्रसिद्ध हुआ। ज्ञान प्राप्ति के बाद वे अपने पंच-वर्गीय भिक्षुओं की खोज में,जो उन्हें उरूवेला में सुजाता द्वारा अर्पित खीर को ग्रहण करने से उन्हें तप भ्रष्ट समझ कर इमामगंज की बुद्ध पहाड़ी होते हुए तथागत बुद्ध ऋषिपतण “सारनाथ” पहुंचे और वहां उन्होंने वर्षवास किया।
इस दौरान उनके साथ के पंचवर्गीय भिक्षुगण,जो उन्हें छोड़कर पहले से सारनाथ में वास कर रहे थे, वहां भगवान बुद्ध ने सर्वप्रथम अपने पंच वर्गीय भिक्षुओं– कौण्डिन्य,वप्पिय,महानाम,भद्दिय और अस्सजी को अपना पहला उपदेश दिया, जो “धर्म-चक्र-प्रवर्तन” कहलाता है। उन प्रथम पंचवर्गीय भिक्षुगण को जिन्हें वे अपने प्रथम वर्षावास के समय उपदेशों को संग्रह करने को कहा ,वही संग्रहित महात्मा बुद्ध की वाणी “त्रिपिटक सूत्र” कहलाता है। उसीके बाद से त्रिपिटक-पूजा की परंपरा प्रारंभ हुई,जो आज तक चल रही है।
त्रिपिटक पूजा में चांटिंग-पूजा का कार्य बारी-बारी से विभिन्न देशों के आए भिक्षुगण करते हैं। इसके अलावा इस अवसर पर “विनयपिटक” की भी, जो बौद्ध धर्म का एक पवित्र ग्रंथ है ,उसकी भी चांटिंग का कार्य लगातार किया जाता है। इस “त्रिपिटक पूजा” का आयोजन विश्व भर में समस्त प्राणियों के कल्याण हेतु किया जाता है।




