‘दस हजारी स्कीम’ में एक राष्ट्रीय संदेश छिपा है। यह प्रयोग सफल रहा तो भविष्य में केंद्र सरकार महिला कल्याण के बड़े मॉडल के रूप में इसे प्रचारित कर सकती है। इससे एनडीए को न केवल बिहार बल्कि अन्य राज्यों में भी महिला सशक्तिकरण की छवि को मजबूत करने में मदद मिलेगी।
बिहार के चुनाव में जाति फैक्टर भी काम करता है लेकिन इस बार जातिगत राजनीति पर भारी पड़ती दिख रही है चुनावी घोषणाओं की राजनीति। ऐसा पहली बार देखा जा रहा है कि बिहार में चुनाव को लेकर टीवी चैनलोें में जो डिबेट हो रहे हें उसके केन्द्र बिन्दू में राजनीतिक दलों की घोषणाएं हैं।
इस बार बिहार में विधानसभा चुनाव दो चरण में सम्पन्न होंगे। 6 नवम्बर और 11 नवम्बर को मतदान होना है और 14 नवम्बर 2025 को यह तय हो जायेगा कि बिहार में सत्ता की कमान किसके हाथ में रहेगी। दो चरण में चुनाव होने के कारण नेताओं को बिहार में रैलियों के माध्यम से भीड़ इकट्ठा करने का मौका ज्यादा नहीं मिला है।
इसलिए बिहार के मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए हर राजनीतिक दलों की तरफ से बड़ी-बड़ी घोषणाएं की जा रही है। सत्ता पक्ष हो या विपक्ष या फिर नयी नवेली पार्टी, चुनावी समीकरण में एक दूसरे को मात देने के लिए बड़े-बड़े वायदे कर रहे हैं। ये अलग बात है कि चुनाव जीतने के बाद ये राजनीतिक दल अपने वायदोें पर कितना खरा उतर पायेंगे ?
भारतीय राजनीति में जनता को सीधे लाभ पहुंचाने वाली योजनाओं का प्रभाव हमेशा चुनावी नतीजों में दिखाई देता रहा है। चाहे वह मनरेगा हो, जनधन योजना या उज्ज्वला गैस कनेक्शन, हर योजना ने एक बड़ा वोट बैंक तैयार किया। जिस सरकार ने लाभार्थी वर्ग तक सीधा लाभ पहुंचाया वह सत्ता में लौटी है। इसका उदाहरण जनधन, उज्ज्वला और लाडली बहना योजना हैं।
इसी पथ पर आगे बढ़ते हुए बिहार की एनडीए सरकार ने महिलाओं के खाते में 10,000 रुपये की सीधी सहायता देने की ‘दस हजारी स्कीम’ शुरू की है। इस योजना ने न केवल महिला वर्ग में उत्साह जगाया है, बल्कि आने वाले विधानसभा चुनावों से पहले एनडीए के लिए एक संभावित ‘बूस्टर डोज़’ का काम किया है।
‘दस हजारी स्कीम’ के तहत राज्य सरकार महिलाओं के खाते में सीधे 10,000 रुपये भेज रही है। दावा है कि यह राशि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए दी जा रही है। परंतु राजनीतिक समीक्षकों की मानें तो नीतीश सरकार का यह कदम डायरेक्ट वोट बैंक क्रिएशन स्ट्रैटेजी है।
बिहार की कुल मतदाता संख्या में लगभग 49 फीसदी महिलाएं हैं। यानी आधा चुनाव इन्हीं के मूड पर निर्भर करता है। नीतीश कुमार पहले भी ‘मुख्यमंत्री कन्या उत्थान योजना’, मुख्समंत्री साइकिल योजना, ‘जल-जीवन-हरियाली अभियान’ जीविका दीदी योजना, जैसे कार्यक्रमों के ज़रिए महिलाओं में अपनी अलग पकड़ बना चुके हैं।
पिछले कुछ चुनावों के आंकड़े बताते हैं कि बिहार में महिलाओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों से अधिक रहा है। 2020 विधानसभा चुनाव में महिलाओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों से लगभग 3 फीसदी अधिक था। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि महिलाओं ने बिहार की राजनीति का चेहरा बदल दिया है। पहले जो वोट जाति समीकरणों पर निर्भर होते थे, अब वे लाभार्थी समीकरणों के इर्द-गिर्द घूमते हैं। नीतीश सरकार द्वारा चलाई गई दस हजारी स्कीम इसी लाभार्थी राजनीति का ताजा उदाहरण है।
ग्रामीण इलाकों से दस हजारी स्कीम पर सकारात्मक प्रतिक्रिया मिल रही है। महिलाओं में इस योजना को लेकर गहरी उत्सुकता और खुशी है। कई महिलाओं ने कहा कि यह पैसा उन्हें संकट के समय सहारा देता है। राजनीतिक दृष्टि से यह भावनात्मक जुड़ाव सबसे बड़ा लाभ है। जिस वर्ग को सीधे आर्थिक मदद मिलती है, वह स्वाभाविक रूप से उसी दल की ओर झुकता है जिसने मदद दी। यही कारण है कि लाभार्थी वर्ग का वोट प्रतिशत लगभग 65-70 फीसदी तक स्थायी माना जाता है।
दस हजारी स्कीम में एक राष्ट्रीय संदेश छिपा है। यह प्रयोग सफल रहा तो ‘दस हजारी स्कीम’ को भविष्य में केंद्र सरकार महिला कल्याण के बड़े मॉडल के रूप में प्रचारित कर सकती है। इससे एनडीए को न केवल बिहार बल्कि अन्य राज्यों में भी महिला सशक्तिकरण की छवि को मजबूत करने में मदद मिलेगी। भारत जैसे देश में राजनीति केवल नीतियों पर नहीं, बल्कि भावनाओं और भरोसे पर चलती है। जब सरकार सीधे जनता के खाते में पैसा भेजती है, तो वह सरकारी व्यवस्था नहीं बल्कि संवेदनशील नेतृत्व का प्रतीक बन जाती है।
राजनीति में वक्त, संदेश और भरोसा, तीनों का सही संतुलन ही सफलता की गारंटी है। एनडीए ने सही वक्त पर एक सही योजना को प्रचारित किया है। जिसका लाभ 60-70 फीसदी के अनुपात में एनडीए को बिहार विधान सभा चुनाव में मिलता दिख रहा है। हाल ही में किये गये एक सर्वे के अनुसार, दस हजारी स्कीम के बाद बिहार की 63 फीसदी महिलाओं का झुकाव एनडीए की तरफ है। जबकि 58 फीसदी महिलाओं ने कहा है कि वह एनडीए को ही वोट करेंगी।
महागठबंधन ने इस योजना को ‘चुनावी रिश्वत’ बताया है। राजद-कांग्रेंस का तर्क है कि यह कदम सिर्फ वोट पाने के लिए उठाया गया है। परंतु जनता के बीच यह तर्क कमजोर पड़ रहा है। क्योंकि महिलाएं इसे लाभ नहीं, सहारा मान रही हैं। विश्लेषकों के अनुसार, यदि राज्य की 1 करोड़ महिलाओं को यह राशि मिलती है, तो 10,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त वित्तीय भार पड़ेगा। परंतु सरकार का तर्क है कि यह राजकोषीय खर्च नहीं, सामाजिक निवेश है।
बिहार में विपक्ष की सबसे बड़ी चुनौती है कि अब जातीय समीकरणों के ऊपर लाभार्थी समीकरण हावी हो चुके हैं। महागठबंधन इस योजना की काट ढूंढ रहा है। इस योजना के बाद महिलाओं का एनडीए की तरफ बढ़ते झुकाव को देखकर महागठबंधन के सीएम उम्मीदवार तेजस्वी यादव ने कहा कि वह हर घर से एक परिवार को नौकरी देंगे।
इस घोषणा के बाद वह विवादों में घिर गये कि बिहार में 2 करोड़ 75 लाख नौकरी कहां से लायेंगे। नौकरी दिये जाने के बाद लगभग 12 लाख करोड़ सिर्फ सेलरी भुगतान में खर्च होगा। जबकि पौने तीन लाख करोड़ तो बिहार का बजट है। आर्थिक-राजनीतिक समीक्षक टीवी डिबेट में तेजस्वी यादव के इस बयान पर उनकी योग्यता और उनकी राजनीतिक परिपक्वता पर भी सवाल खड़ा करने लगे। इस बयान के बाद एनडीए के नेता भी उन्हें घेरने लगे। बिहार की सामाजिक-आर्थिक संरचना ऐसी है कि यह संभव ही नहीं है कि हर परिवार में एक सरकारी नौकरी दी जा सके।
तेजस्वी यादव का यह बयान उनके लिए इतना भारी पड़ने लगा कि उन्हें फायदा से ज्यादा नुकसान दिखने लगा। तब उन्होंने एक बयान दिया कि महागठंधन की सरकार बनते ही महिलाओें के खाते में 30 हजार रूपये भेजे जायेंगे। इस घोषणा से महागठबंधन को कितना लाभ मिल पाता है इसके लिए 14 नवम्बर का इंतजार करना होगा।
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बिहार में कुल मतदाता – 7.42 करोेड़
बिहार में कुल महिला मतदाता – लगभग 3.8 करोड़
महिला मतदाता का प्रतिशत – 49 फीसदी
2020 में महिला मतदान दर – 59.7 फीसदी
2020 में पुरुष मतदान दर – 54.6 फीसदी
2020 में एनडीए को महिला वोट समर्थन – 58 फीसदी




