Thursday, May 22, 2025
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“तांगजा लीला पखंगवा” : मणिपुर में मैतेई राजवंशों के शासन संचालन का केन्द्र

“कंगलापाइक महल” मणिपुर की वर्तमान राजधानी इंफाल में एक प्राचीन ‘कंगला फोर्ट’ नाम के महल से प्रसिद्ध है। यह महल इंफाल नदी के दोनों और फैला है, किंतु यह ऐतिहासिक महल अब खंडहर में तब्दील हो गया है। 15 वीं शताब्दी ईसापूर्व यानी 1445 ईसा पूर्व से 1359 ईसापूर्व में मैतेई राजा “तांगजा लीला पखंगवा” के निवास एवं शासनकाल से आरंभ माना जाता है। इस बीच कई राजवंशों के शासकों का राजकाज यहीं से संचालित होता रहा।

मणियों की भूमि “कांगलापाइक” कोई और नहीं,बल्कि प्राचीन काल में जंगलों से भरा सुरम्य, सुंदर वादियों से युक्त स्थल था,जो आज ‘मणिपुर’ कहलाता है। मणिपुर का नाम मणियों की भूमि होने के कारण बना है। यह स्थल पहले घोर घने जंगलों से भरा सुंदर,सुरम्य एवं आकर्षक वादी था। यहां बाघ तथा अन्य वन्य प्राणि स्वतंत्र होकर आबादी विहीन सुंदर सुशोभित वनों में विचरण करते थे। इस स्थल में साउथ ईस्ट एशिया का सबसे बड़ा विश्व प्रसिद्ध “लोकटक लेक” यानी फ्लोटिंग लेक, तैरता हुआ झील है, जिसे बर्मीज भाषा में इसे “झल्ले-फूम्बी”कहते हैं।

बोरिक रिवर, और इंफाल की घाटी इस वादी की नैसर्गिक शोभा बढ़ाती है। यहां की ‘रासलीला’ और ‘नट-संकीर्तन’ विश्व में प्रसिद्ध है। यह ऐतिहासिक ‘कांगलपाइक’ कई बार बर्मीज, चीनी तथा जापानी इन तीनों द्वारा किए जाने वाले दंगों से बचाया है। इस प्रकार मणिपुर भारत के लिए दीवार की तरह काम करता है।

कांगलपाइक की घाटी यानी “फ्रंट लाईन देश” ‘मणिपुर में वहां कब्जा जमाने की नियत से कुछ अंग्रेज सिपाही 12 मार्च 1891 को वहां के राजा से मिलने आया था। उस समय उन दिनों वहां राजा ने अपने महल के सामने “कांग्लाशा” नामक उजले रंग की बाघ के शक्ल की दो मूर्तियां एवं ड्रैगन को रक्षक के रूप में सुरक्षा प्रहरी के रूप में तैनात कर रखा था। इस बीच कुछ अंग्रेज सिपाहियों में से पांच अंग्रेज सिपाही जब राजा के पास मिलने पहुंचे तो राजा ने उन्हें पकड़वा कर बंदी बना लिया और उन पांचों बंदी सिपाहियों को राजा ने “कांग्लाशा” मूर्ति के नीचे मारकर नरबलि दे दी। इसे देख बचे अन्य सभी सिपाही भाग गए। फिर काफी गुस्से में आकर राजा पर अंग्रेजों ने तीन तरफ से हमला बोल दिया और राजा को बंदी बना लिया। वहां तैनात सेनापति को भी शूली पर लटका दिया। इतना पर भी जब उनका गुस्सा शांत नहीं हुआ तो वे तैनात ‘कांग्लाशा’ रक्षक जो दोनों शेर का स्वरूप शरीर लिए तैनात थे एवं ड्रैगन की मूर्ति जो वहां तैनात थी,उसे डायनामाईट लगाकर उड़ा दिया और वहां 5 साल के बच्चे को राजा बनाकर पूरे रियासत को अपने कब्जे में ले लिया।

“कंगलापाइक महल” मणिपुर की वर्तमान राजधानी इंफाल में एक प्राचीन ‘कंगला फोर्ट’ नाम के महल से प्रसिद्ध है। यह महल इंफाल नदी के दोनों और फैला है, किंतु यह ऐतिहासिक महल अब खंडहर में तब्दील हो गया है। 15 वीं शताब्दी ईसापूर्व यानी 1445 ईसा पूर्व से 1359 ईसापूर्व में मैतेई राजा “तांगजा लीला पखंगवा” के निवास एवं शासनकाल से आरंभ माना जाता है। इस बीच कई राजवंशों के शासकों का राजकाज यहीं से संचालित होता रहा।

प्राचीन ऐतिहासिक ग्रथों के अनुसार इसका महत्वपूर्ण एवं उन्नत विकास बाद में 33 ई. से 153 ई. के बीच हुआ माना जाता है। यहां के पहाड़ी और मैदानों की स्वदेशी जातियों का प्राचीन धर्म “सनमाही” धर्म था। सम्राट “पम्हैवा गरीब निवास” 1709 ई. से 1748 ई. के बीच शासन किया था। इस दौरान उन्होंने इसका नाम “कांगलपाइक” रखा था,वही बदलकर आज मणिपुर कहलाता है और इस दौरान ‘मैतेई धर्म’ भी बदलकर ‘हिंदू धर्म’ में परिवर्तित हो गया। यहां का प्राचीन धर्म आरंभ से ही दैवीय थी।

प्राचीन शासक राजाओं ने दैवीय अधिकार को आधार मानकर शासन चलाते थे। प्राचीन कांगलपाइक में एक प्रणाली बहु प्रचलित थी, जो “लाल-लूप-प्रणाली” कही जाती थी। यहां की भाषा में ‘लाल’ का अर्थ युद्ध से है और ‘लूप’का अर्थ यानी संगठन से। इसमें 16 वर्ष से अधिक आयु वर्ग वाले सभी पुरुष इसके सदस्य होते थे। “कंगला फोर्ट” मणिपुर वासियों के लिए आज भी एक पूजनीय स्थल है, जो उन्हें उनकी आजादी के दिनों को याद दिलाती है।

वर्ष 2009 में “कंगला फोर्ट- बोर्ड” द्वारा उसमें औषधीय पौधे लगाने की योजना बनाई गई है। इसमें वर्तमान में अभी लगभग ‘हर्बल गार्डन’ में 131 विभिन्न पौधे तथा 20 औषधीय पौधों की प्रजातियां लगायी गयी है। “कंगलाशा” ‘सिंह देवता’ “नोंगशाबा” को समर्पित उजला शेर और ड्रैगन शक्ल का रक्षक हैं, जिसे अंग्रेजों ने डायनामाइट से पूरा ध्वस्त कर दिया था। यहां पर “पुरातत्व संग्रहालय” भी है, जहां ‘निंगथौजा राजवंश’ के पाषाण युग के औजारों और ऐतिहासिक पत्थरों के शिलालेख, सिक्के और अन्य कलाकृतियां सुरक्षित हैं।

मैतेई लोगों को समर्पित एक “हेरिटेज पार्क” है। “पाखंगवा” का मंदिर कांगला में अति पूजित है। कांगला में राजा “मेइदिंगु नारा सिंह” की ‘मणिपुरी टट्टू’ पर सवार एक आकर्षक भव्य कांस्य की मूर्ति और कांगला के अंदर एक किलेबंद भव्य शाही निवास “संगगाई युम्फम”है,जो पर्यटकों को दूर से ही आकर्षित करते हैं। “निंगथौजा” राजवंश के मैतेई शासकों से जुड़े सांस्कृतिक विरासत का “कांगला संग्रहालय”भी है। आधुनिक काल में पश्चिमी ओर से कांगला का भव्य ‘शाही प्रवेश द्वार’ यानी कांगला का “सुनहरा दरवाजा” है ,जो काफी आकर्षक है। ‘कांगला’ का शाब्दिक अर्थ मणिपुरी भाषा में शुष्क भूमि से मानी गई है।

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