सृष्टि के आरंभ में जब मानव इस धरती पर अवतरित हुआ तो उसने सर्वप्रथम सूर्य और अग्नि से प्रभावित हुआ, जो उसके जीवन के लिए अति महत्वपूर्ण साबित हुए। तब स्वभावतः उसने इन दोनों के प्रति जो अपनी आस्था प्रकट करना आरंभ की, वही पूजा व आराधना का रूप ली। चूँकि सूर्य उसके जीवन के हर क्षेत्र में विशेष सहायक दिखे, इस कारण वे सूर्य की पूजा को विशेष रूप से आरंभ किया। इसी कारण यह मान्यता है कि सूर्य पूजा उतनी ही पुरानी है, जितनी मानव का अवतरण।
‘छठव्रत’ यानी ‘सूर्य-पूजा’ विश्व की हर सभ्यता और संस्कृतियों में किसी न किसी रूप में पौराणिक लोक गाथाओं,ग्रथों व मान्यताओं में विद्यमान रही है। भारत में यों तो मुख्य रूप से 22 प्राचीन प्रसिद्ध सूर्य मंदिरों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है,परंतु ग्रामीण क्षेत्रों और पहाड़ियों की मंदिरों को जोड़ा जाय तो यह.संख्या सैकड़ों से ज्यादा होगी,जहां हजारों व लाखों की संख्या में भक्तगण अपनी श्रद्धा निवेदित करने आते हैं।
भारत के विभिन्न भागों में जो सूर्य मंदिरें हैं- उनमें सर्व प्रसिद्ध ओडिशा का कोणार्क सूर्य मंदिर, गुजरात का मोढ़ेरा सूर्य मंदिर, उत्तराखंड कुमाऊं का कटारमल सूर्य मंदिर, रकनपुर सूर्य मंदिर, सूर्य पहर सूर्य मंदिर, दक्षिणार्क सूर्य मंदिर, सूर्य मंदिर प्रतापगढ़, सूर्य मंदिर झालावाड़ राजस्थान, सूर्य मंदिर महोबा मध्य प्रदेश, सूर्य मंदिर रांची, सूर्य मंदिर जम्मू, मार्तंड मंदिर कश्मीर, सूर्य मंदिर कंदाहा, सूर्य मंदिर नीरथ हिमाचल प्रदेश, सूर्यनार कोविल मंदिर तमिलनाडु, सूर्यनारायण मंदिर कर्नाटक, सूर्य मंदिर उत्तराखंड, बालाजी सूर्य मंदिर मध्य प्रदेश के अलावा बिहार के औरंगाबाद जिले का प्रसिद्ध देव सूर्यमंदिर जो एक मात्र भारत के अन्य सभी सूर्य मंदिरों से भिन्न है और जो प्राचीन मंदिर नागर शैली में निर्मित है,वह पूर्वाभिमुख न होकर पश्चिमाभिमुख है।
इसके अलावा औंगारी का प्रसिद्ध सूर्य मंदिर,नालंदा के बड़गांव का बेलार्क सूर्य मंदिर,पटना का उलार्क सूर्य मंदिर, नवादा का हैंडार्क हड़िया सूर्य मंदिर,सूर्य मंदिर बांकेधाम, सूर्य मंदिर खनेटू एवं सुप्रसिद्ध प्राचीन सूर्य मंदिर ‘विष्णुपद गया’ आदि विशेष उल्लेखनीय है।
एक शोध के अनुसार यह यह पता चलता है की कभी सौर पूजा का केंद्र ईरान था,जहां से कुछ मेधा पुजारियों को समारोहों में भाग लेने के लिए विशेष रूप से भारत बुलाया जाता था। तमिलनाडु में कई ऐसे मंदिर निर्मित हैं,जहां वर्ष के कुछ निश्चित दिनों में सूर्य की किरणें गर्भ-गृह को रोशन करती हैं। मोढ़ेरा गांव गुजरात के मेहसाणा जिले का निर्मित सूर्य मंदिर जो 226 ईस्वी का है, यह मंदिर पुष्पावती नदी का दृश्य उपस्थित करती है, वहीं इसकी बाहरी नक्काशी उत्तकृष्टता को दर्शाती है। मोढ़ेरा नृत्य उत्सव के लिए मंच के रूप में कार्य करती है। यहां के सूर्य देवता में एक बेल्ट और जूते हैं,जो एक विशेषता को प्रकट करते हैं। यह मंदिर कोणार्क मंदिर से मिलती है। विषुव के समय सूर्य किरणें यहां सूर्य देवता की छवि पर पड़ती है, यह भी इसकी विशेषता है।
बिहार का “छठव्रत” एक महान् पर्व के रूप में विख्यात है,जो कार्तिक शुक्ल षष्ठी और चैत्र शुक्ल षष्ठी को देश और विदेशों के विभिन्न भागों में बड़ी श्रद्धा और भक्ति से इसे भक्तगण मनाते हैं। जहां-जहां हिंदू लोग विदेशों में बसे हैं वहां भी इसका प्रचलन अब तेजी से बढ़ा है। लोग यों तो पूरे भारत के प्रमुख शहरों व ग्रामों में छठ-व्रत को बड़ी श्रद्धा से लोग अपने घरों,नदी व तालाबों के किनारे छठ व्रत के अनुष्ठानों को पूर्ण भक्ति से पूर्ण करते हैं,वहीं ढेर सारे छठ-व्रती बिहार व देश के प्रसिद्ध सूर्य मंदिरों में जाकर इस अनुष्ठान को पूर्ण करते हैं।
मगध सूर्य-पूजा का आदि काल से ही मुख्य केंद्र के रूप में प्रसिद्ध रहा है। इसका एक कारण यह भी बताया जाता है कि ईसा पूर्व छठी शताब्दी से लेकर आठवीं शताब्दी के बीच इतने लंबे अंतरालों में कई बड़े-बड़े प्रतापी साम्राज्यों का यह केंद्र रहा है, जिनके कालों में भारतीय सभ्यता और संस्कृति बहुत ही विकसित अवस्था में थी। मगध का पावन क्षेत्र विस्तृत रूप से अतीत काल से ही प्राचीन सभ्यता एवं संस्कृतियों का मुख्य केंद्र रहा है,जो विश्व की सभ्यता को सदा प्रभावित करती रही है। आज विश्व की अधिकांश प्रमुख सभ्यताएं या तो मिट गई अथवा विलुप्त हो गई, परंतु भारत और मगध की सभ्यता और संस्कृति आज भी विश्व पटल पर अपना स्वर्णिम स्थान बनाए हुए है।