Thursday, May 22, 2025
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तीन प्राचीन सभ्यताओं में से एक कांस्य युगीन सिंधु घाटी सभ्यता

सिंधु घाटी सभ्यता कांस्य युगीन सभ्यता थी, क्योंकि इस सभ्यता के लोगों ने धातु विज्ञान में नई तकनीक की खोज प्राचीन जमाने में ही कर ली थी। उसमें- तांबा, कांस्य ,सीसा और टीन के साथ काम करने का प्रयोग शामिल हैं। यह सभ्यता तीन प्राचीन सभ्यताओं में एक मानी गई है।

ये सभ्यताएं हैं- मेसोपोटामिया की सभ्यता, नील नदी घाटी की मिस्र सभ्यता और सिंधु घाटी सभ्यता। सिंधु घाटी सभ्यता के क्षेत्र में मुख्य रूप से चीन, कश्मीर, तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र, भारत प्रशासित लद्दाख, पाकिस्तान प्रशासित गिलगित, बालटिस्तान, खैबर, पंजाब और सिंध प्रांत के क्षेत्र आते हैं। इस सभ्यता के किनारे लेह,कारगिल,स्कर्दू,दासू,वेशम,थाकोट, स्वाबी, डेरा इस्माइल खान, मियांवाली,भक्कर,सुककुर,पाक का हैदराबाद और करांची शहर शामिल हैं।

सिंधु घाटी का निर्माण नंगा पर्वत के चारों ओर मुड़ने के बाद होती है। सिंधु नदी की सहायक नदियों में मुख्यतः व्यास , चिनाव, गिलगित,गार,गोमल,हुनजा और झेलम नदी। इसके अलावा कुनार नदी, कुर्रम, पानजनाद, रावि और श्योक, शून नदी, शुरू, सतलुज, स्वात,जांस्कर और झाब नदी आते हैं। सिंधु नदी एशिया की सबसे लंबी नदियों में से एक है। यह नदी चीन भारत और पाकिस्तान के क्षेत्र से होकर सागर में मिलती है।

इसका उद्गम स्थल तिब्बत का मानसरोवर के पास “सिन- का- बाबा” नामक जल धारा माना जाता है। सिंधु नदी 3600 किलोमीटर की दूरी तय कर अरब सागर में बड़ी मुहाने के साथ मिलती है। इस प्रकार यह नदी तिब्बत और कश्मीर से होती हुई नंगा पर्वत के उत्तरी भाग से घूमते हुए दक्षिण पश्चिम में पाकिस्तान के बीच से गुजरती है। पाकिस्तान की यह “राष्ट्रीय नदी” है। साथ ही पाकिस्तान कि यह सबसे लंबी नदी भी है।

‘तिब्बत का पठार’ मध्य एशिया का एक ऊंचाई वाला विश्व स्तरीय विशाल पठार के रूप में जाना जाता है। यह दक्षिण में हिमालय पर्वत श्रृंखला से लेकर उत्तर में “टकलामकान” रेगिस्तान तक फैला है। इसमें चीन द्वारा नियंत्रित ‘बोड’ स्वायत्त क्षेत्र,चिंग-हई, पश्चिमी सीश्वान, दक्षिण पश्चिम में गांसू और उत्तरी यून्नान के साथ-साथ भारत का लद्दाख क्षेत्र आता है। तिब्बत के पठार को “दुनिया की छत”भी कहा जाता है।

सिंधु घाटी सभ्यता अपने कंक्रीट शहरों के साथ-साथ सड़क और बहु मंजिला इमारत के लिए प्रसिद्ध है। इसकी खोज सन 1920 में पुरातत्वविद् जॉन मार्शल, अर्नेस्ट मैके और हेरोल्ड हरग्रेब्स ने की थी। इसकी खुदाई में हड़प्पा की खुदाई शामिल हैं,जिसमें उन्हें एक प्राचीन सभ्यता के साक्ष्य यहां मिले।

इतना ही नहीं पहले देखी गई किसी भी चीज से यहां बहुत ज्यादा उन्नत थे और ऐसा माना जाता है कि सिंधु घाटी की सभ्यता सभी प्रारंभिक सभ्यताओं में सबसे अधिक तकनीकी रूप से उन्नत थी। सिंधु घाटी की सभ्यता के लोगों ने धातु विज्ञान में नई तकनीक की खोज कर ली थी।

इस सभ्यता के पहले स्थलों की खुदाई पुराविद् दयाराम सहनी ने 1920 -21 में की थी और उन्होंने इस सभ्यता को “हड़प्पा” नाम दिया। इसी सभ्यता का एक और स्थल पुराविद् आ.डी. बनर्जी ने खोज निकाली जो “मोहन-जो-दड़ो” सभ्यता कहलाती है। हड़प्पा सभ्यता के लोग हस्तशिल्प की कला जानते थे और मुहर लगाने के लिए उपयोग किए जाने वालु मुहर के निचले चेहरे पर पैटर्न काटना आदि भी चीज जानते थे। सिंधु सभ्यता की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि इस सभ्यता में शहरी नियोजन, पक्की ईंटों के घर, पक्की विस्तृत जल निकासी प्रणाली, जल आपूर्ति प्रणाली और बड़े-बड़े गैर आवासीय भवनों के समूह शामिल थे।

माना जाता है कि सिंधु नदी सभ्यता 26 00 ईसा पूर्व से 1900 ईसा पूर्व तक पूर्ण अस्तित्व में बनी रही। सिंधु घाटी सभ्यता की पहचान करने में उल्लेखनीय श्रेय जॉन मार्शल का है,जो 1924 में एएसआई के महानिदेशक थे। इस सभ्यता का विस्तार उत्तर पश्चिम भारत और उत्तर पूर्व पाकिस्तान से लेकर पश्चिमी तिब्बत तक 3300 ईसा पूर्व से 1300 ईसा पूर्व तक फैली हुई मानी जाती है, जिसमें माना जाता है कि इस सभ्यता में लगभग 10 लाख से ज्यादा की आबादी रही होगी।

अब तक लगभग 1400 से अधिक स्थलों की खोज इस सभ्यता की की गई है जिसमें 925 भारत में और 475 पाकिस्तान में है मोहनजोदड़ो आधुनिक सिंध प्रांत में स्थित है जबकि हड़प्पा सभ्यता पश्चिमी पंजाब में स्थित है 80% स्थल लगभग 1100 गंगा और सिंधु नदियों के बीच के मैदाने में है और 90% से अधिक वस्तुएं और मोहरे पाकिस्तान के सिंधु नदी के किनारे प्राचीन शहर के केदो में पाई गई है राखी घड़ी जेनेटिक परीक्षण वाला पहला स्थान माना जाता है।

मोहनजोदड़ो हड़प्पा फरमाना कालीबंगा लोथल धोलावीरा मेहरगढ़ बनवाली आलमगीरपुर और चंदू हेलो सहित करीब 50 से अधिक स्थल दफन हो चुके हैं। धोलावीरा स्थल की खास विशेषता यह थी कि यहां की उन्नत जल प्रबंधन प्रणाली जिसमें वर्षा के जल को इकट्ठा करने और संग्रहित करने के लिए परस्पर एक दूसरे से जुड़े जलाशय और चैनल थे।

बहु मंजिला इमारतें, विशाल सार्वजनिक क्षेत्रों का उपयोग शहरी परिष्कार के उच्च स्तर को प्रदर्शित करता है। धोलावीरा में हड़प्पा सभ्यता की वास्तु कला की विशेषताओं में बड़े पत्थर के ब्लॉकों का उपयोग शहर के चारों ओर तथा शहर के चारों ओर किलेबंद दीवारों की उपस्थिति इसके सामारिक महत्व और सुरक्षा को प्रदर्शित करता है। भारत के गुजरात स्थित इस प्राचीन “धोलावीरा” शहर को वर्ष 2021 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर की सूची में इसे शामिल किया है।

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