Tuesday, November 4, 2025
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पिंजरे में बंद मुक्ति की बाट जोह रही ‘अहिल्याबाई होल्कर’ की प्रतिमा

 

हाल ही में गया में राज्य सरकार की ओर से “पितृपक्ष मेला महासंगम”- 2024 (17 सितंबर 2024 से 2 अक्टूबर 2024 तक) भव्य समारोह के बीच संपन्न किया गया है, जिसमें देश-विदेश से लाखों पिंडदानी तथा श्रद्धालुओं ने महारानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा अठारहवीं सदी में निर्माण कराई गई “विष्णु पद मंदिर” में पूजा-अर्चना की तथा पिंडदान का विधान संपन्न कर अपने पूर्वजों को आवागमन से मुक्ति दिलाई। किंतु,आश्चर्य तो यह है कि ‘विष्णु पद मंदिर’ स्थित इंदौर की महारानी “अहिल्याबाई होल्कर’ की प्रतिमा, जो ‘शिवराम डालमिया’ के सौजन्य से वर्ष- 2003 में स्थापित की गई थी और जिसका उद्घाटन तत्कालीन मगध आयुक्त ‘हेमचंद्र सिरोही एवं अध्यक्षता जिला पदाधिकारी ‘ब्रजेश मेहरोत्रा’ द्वारा किया गया था, वह प्रतिमा अभी एक पिंजरे में कैद है।

 

‘अहिल्याबाई होल्कर’ का जन्म 31 मई 1724 को महाराष्ट्र के अहमद नगर के “छौड़ी” नामक गांव में एक साधारण परिवार के बीच हुआ था। इनके पिता का नाम मणकोजी राव शिंदे था, जो अपने गांव के प्रधान व पटेल थे। उनकी मां सुशीला बाई थी। अहिल्याबाई अति दयालु, धार्मिक, ईमानदार,साहसिक तथा दूरदर्शी महिला थी।

भारत की आजादी के समय स्वतंत्रता संग्राम में उसने अपने साहसिक भूमिका का परिचय दिया था। वह अपने नाना फंडवीस से मिलकर भारत साम्राज्य की रक्षा की थी। वह ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ सदा तत्पर रही। उसने 1757 ईस्वी में होलकर राज्य की बागडोर संभाली। वह अपने ससुर मल्हार राव से प्राप्त नैतिक कर्तव्य,संस्कार तथा मार्गदर्शनों का पालन करती रही। उसने हमेशा उसे ध्यान में रखते हुए एक कुशल सर्वगुण संपन्न शासक बनकर प्रजा के हित में अनेक कार्य किये। इस कारण वह “लोकमाता” भी कहलायी। वह अपने प्रजा को कभी भी अभावग्रस्त तथा भूखे रहने नहीं दी। वह अपने धार्मिक भावना को साथ रखकर शासन को कुशलता पूर्वक चलायी। वह सादगी जीवन व्यतीत करती तथा तपस्वी महिला थी, साथ ही वह शिव का अनन्य भक्त थी।

‘अहिल्याबाई होल्कर’ ने गया स्थित विश्व प्रसिद्ध “विष्णुपद मंदिर” को 18 वीं शताब्दी में जयपुर से कलाकारों को बुलवाकर निर्माण करवाई,जो अष्टकोणीय सूचीबद्ध भव्य आकर्षक रूप में देश-विदेश के पर्यटकों,श्रद्धालुओं व पिंडदानियों को आकर्षित करता है। इसके अलावा उसने देश में अनेक मंदिर, घाट तथा जलाशयों का भी निर्माण करवाई। उसने गुजरात के प्रसिद्ध भव्य “सोमनाथ मंदिर” और काशी के विशाल “विश्वनाथ मंदिर” का भी निर्माण करवाई।” मालवा साम्राज्य की मराठा होल्कर महारानी “अहिल्याबाई” सामरिक साहस की प्रतिमूर्ति थी। इस कारण वह भारत की सबसे दूरदर्शी महिला शासको में एक मानी गई है।

मध्य प्रदेश शासन ने आदिवासी, लोक एवं पारंपरिक कलाओं के क्षेत्र में महिला कलाकारों की सृजनात्मक को सम्मानित करने के लिए वर्ष 1996-97 से “देवी अहिल्याबाई होलकर पुरस्कार” आरंभ की है,जो “राष्ट्रीय देवी अहिल्या सम्मान” कहलाती है। इस प्रकार वह ‘महिला शक्ति’ की प्रतीक तथा समस्त स्त्री जाति का “गौरव” मानी गई है। “अहिल्याबाई होल्कर” की वर्तमान में 300 वीं जयंती 12 दिसंबर 2024 को ‘महाबोधि सांस्कृतिक केंद्र’ बोधगया के सभागार में “अहिल्याबाई होल्कर विचार मंच” के तत्वाधान में आयोजित की गई है, जिसका उद्घाटन बिहार के राज्यपाल महामहिम “राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर” करेंगे।

हाल ही में  गया में राज्य सरकार की ओर से “पितृपक्ष मेला महासंगम”- 2024 (17 सितंबर 2024 से 2 अक्टूबर 2024 तक) भव्य समारोह के बीच संपन्न किया गया है, जिसमें देश-विदेश से लाखों पिंडदानी तथा श्रद्धालुओं ने महारानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा अठारहवीं सदी में निर्माण कराई गई “विष्णु पद मंदिर” में पूजा-अर्चना की तथा पिंडदान का विधान संपन्न कर अपने पूर्वजों को आवागमन से मुक्ति दिलाई। किंतु,आश्चर्य तो यह है कि ‘विष्णु पद मंदिर’ स्थित इंदौर की महारानी “अहिल्याबाई होल्कर’ की प्रतिमा, जो ‘शिवराम डालमिया’ के सौजन्य से वर्ष- 2003 में स्थापित की गई थी और जिसका उद्घाटन तत्कालीन मगध आयुक्त ‘हेमचंद्र सिरोही एवं अध्यक्षता जिला पदाधिकारी ‘ब्रजेश मेहरोत्रा’ द्वारा किया गया था, वह प्रतिमा अभी एक पिंजरे में कैद है।

इसकी सुधि न तो राज्य सरकार, न तो जिला प्रशासन और नहीं तो स्थानीय पंडा समाज ने ही लिया है, जबकि इसी महारानी द्वारा जयपुर से कारीगरों को बुलवाकर महारानी ने भव्य आकर्षक विष्णुपद मंदिर का निर्माण करवाई थी। पितृपक्ष महासंगम के नाम पर बिहार राज्य पर्यटन विभाग, जिला प्रशासन तथा गया नगर निगम आदि द्वारा करोड़ों रुपए का बारा-न्यारा समारोह के नाम पर हुआ, परंतु आज तक महारानी “अहिल्याबाई” अपने पिंजरे में बंद मुक्ति की बाट जोह रही है।

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