March 31, 2025

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मोदी और योगी की दूरदर्शिता ने भारत और हिंदुत्व की एक नई पहचान दिलाई

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मोदी और योगी के निर्देशन एवं नेतृत्व में इस वर्ष का संपन्न”महाकुंभ-2025″ ने भारत और हिंदुत्व को एक नई पहचान दिलाई है। इस महाकुंभ को विश्व स्तरीय पहचान दिलाने में इन दोनों का अमूल्य योगदान रहा है। इन दोनों की दूरदर्शिता और महाकुंभ की अद्भुत व्यवस्था ने विश्व को चौंकाया है और भारत को गर्व के साथ एक नई ऊंचाई पर लाने में अपनी अहम भूमिका निभाई है, क्योंकि यह महाकुंभ पौराणिक दृष्टि से अति प्राचीन और गौरव प्रदायिनी है।

इतिहासकारों का एकमत यह भी है कि “कुंभ मेला” सिंधु घाटी सभ्यता से भी प्राचीन है। चीनी यात्री “व्हेनसांग” ने सम्राट हर्षवर्धन के शासनकाल में संपन्न हुए कुंभ मेले का वर्णन अपने यात्रा वृतांत में भी विस्तार से किया है। कुंभ मेले में आध्यात्मिक चिंतन तथा दार्शनिक विषयों पर चर्चाएं करने का एक विशाल प्लेट फार्म यहां विद्वानों को मिलता है। इस महाकुंभ मेले में देश के बड़े-बड़े दार्शनिक,धर्म-गुरु और आध्यत्मिक चिंतक भाग लेते हैं।

आदिगुरु शंकराचार्यों ने भी भाग लिये और संगम में डुबकियां लगाई। यह “कुंभ” सारी दुनिया को विश्व बंधुत्व, लोक कल्याण और विश्व शांति का संदेश देते हुए इसे चिर संरक्षण और संवर्धन करने की लोगों से अपील करता है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार एक समय “सागर-मंथन ” हुआ था। तब मंथन से प्राप्त विष को महादेव शंकर ने पी लिया था,लेकिन मंथन से निकले “अमृत-कुंभ” पर युद्ध छिड़ गया था।

स्कंद पुराण के अनुसार अमृत-घट से छलक कर “अमृत” पृथ्वी के चार स्थानों– हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक में गिरा था। इस कारण इन्हीं चार स्थानों पर कुंभ मेले के आयोजन होते आए हैं। लोगों में यह मान्यता है कि अमृत की प्राप्ति से अनंत काल तक का जीवन अमृतमय हो जाता है। इसी भावना को लेकर लोग प्रयागराज के “त्रिवेणी-संगम” यानी गंगा, यमुना और सरस्वती नदी में डुबकी लगाते हैं,जिससे कि उन्हें अनंत काल तक का जीवन अमृतमय हो जाय। यह एक और बात है कि “अमृत-प्यास” की चर्चा विश्व के किसी अन्य विद्वानों ने नहीं की है,यह दर्शन सिर्फ भारतीय दृष्टि में ही वर्णित है।

संस्कृति देश की साधना, उपासना और कर्म को गति देती है। संस्कृतियों की भिन्नता प्रत्येक राष्ट्र की पहचान होती है। भारत में आध्यात्मिक, यूनान में सौंदर्य,रोम में न्याय, चीन में विराट जीवन के आधारभूत नियम, ईरान में सत्य और सत्य के बीच द्वंद, मिश्र में भौतिक जीवन की व्यवस्था और संस्कार तथा सुमेर में दैवीय दंड विधान को अपनी-अपनी दृष्टि से आदर्श रूप में स्वीकारा है। यही उनकी संस्कृति का विकास है। परन्तु, भारतीय संस्कृति और परंपरा में तो “प्रतीकों” को भी आध्यात्मिक रूप देने और उसे लोकप्रिय बनाने की अद्भुत क्षमता है। यही कारण है कि हमारी संस्कृति,परंपरा,धर्म और दर्शन का ही प्रतीक यह कुंभ और महाकुंभ है।

भारत में मूर्तियां और मंदिरें भी ऐसे ही प्रतीक का द्योतक हैं। “कुंभ” पूर्ण रूप से आस्था और संस्कृति का प्रतीक है। वेद,उपनिषद और पुराणों में भी इसका वर्णन मिलता है। ज्योतिषियों के अनुसार सूर्य की बारह राशियों में एक राशि “कुंभ” भी है। सभी मांगलिक कार्यों तप,साधना और आध्यात्मिक अनुष्ठानों में सर्वप्रथम “कुंभ-कलश” की स्थापना होती है। विवाह,यज्ञ तथा छोटे-बड़े सभी धार्मिक कार्यों में कुंभ-कलश स्थापना का विधान है। इसके पीछे धार्मिक मान्यता यह है कि कुंभ-कलश के ग्रीवा में-रुद्र,मूल में-ब्रह्मा तथा सप्त-सिंधु,सप्त-द्वीप एवं ग्रह समूह,नक्षत्र और संपूर्ण ज्ञान “कुंभ-कलश” में विद्यमान है।

इस वर्ष भारतीय सनातन संस्कृति का ऐतिहासिक कुंभ-महोत्सव यानी “प्रयागराज-महाकुंभ”-2025 जो 144 वर्षों के बाद इस सुखद संयोग पर 45 दिनों तक के लिए ‘सनातन-धर्म महाकुंभ’ पर्व के रूप मेंआयोजित है। आस्था के इस जनसमुद्र में संगम के पवित्र तट पर प्रथम स्नान पवित्र दिवस 13 जनवरी पौष-पूर्णिमा और 14 जनवरी 2025 मकर-संक्रांति के दिन से आरंभ हुआ।

एक आंकड़े के अनुसार इन दो दिनों में ही करीब दस करोड़ से ज्यादा श्रद्धालुओं ने डुबकी लगाई। फिर महोत्सव का प्रमुख पवित्र स्नान 29 जनवरी-“मौनी-अमावस्या”3फरवरी”बसंत-पंचमी” और 12 फरवरी-“माघ-पूर्णिमा” के दिन एवं ‘अमृत- महोत्सव'”महाकुंभ” का अंतिम स्नान 26 फरवरी “माघ-शिवरात्रि” के दिन होकर इसकी समाप्ति की गई।

यह ऐतिहासिक महाकुंभ ,”प्रयागराज-महोत्सव” चार हजार हेक्टेयर में बसे अस्थायी शहर के रूप में श्रद्धालुओं के लिए सारी सुबिधाओं से पूर्ण राज्य तथा केंद्र सरकारों ने मिलकर उपलब्ध करायी थी। सुरक्षा,ट्रांसपोर्ट,चिकित्सा, शुद्ध-पेयजल, ठहरने आदि की सभी व्यवस्थाएं विश्व स्तरीय की गई थी। “प्रयागराज” में विश्व का यह सबसे बड़ा मानव-मेला सदियों से लगता आ रहा है। धर्म से संचालित भारतीय संस्कृति का यह ऐतिहासिक मेला हजारों वर्षों से चले आ रहे परंपरा की देन है।

संस्कृति और परंपरा कोई अंधविश्वास नहीं, वरन् यह एक विशेष प्रकार का इतिहास और पहचानहै।अपने राष्ट्र-जीवन से इसे जोड़ना और लगातार संस्कारित करना ही हमारी”संस्कृति” है। धर्म, दर्शन, आस्था, संस्कृति और परंपरा सभी एक साथ यहां जुटते हैं,जिसकी एक नई पहचान इस बार योगी और मोदी ने दी है। इसकी प्रशंसा विश्व स्तर पर हुई है। यों तो प्रयागराज सदियों से यज्ञ, साधना,योग एवं आत्मदर्शन का पुण्य क्षेत्र के रूप में प्रसिद्ध रहा ही है,किन्तु यहां गंगा,यमुना और सरस्वती जैसी पवित्र मोक्षदायिनी नदियों का मिलन विश्व का एक अद्भुत संयोग है।

एक विशेष मान्यता और भी है कि “महाकुंभ” के दौरान ग्रहों की स्थिति में विशेष परिवर्तन होते हैं। “नक्षत्र-ज्ञानियों” का मत है कि जब बृहस्पति ‘मकर-राशि’ में और सूर्य तथा चंद्रमा एवं अन्य ग्रह शुभ स्थान पर होते हैं,तब यह संयोग 144 वर्षों बाद एक बार आता है,जो क्षैतिज पैमाने पर अति शुभ,दिव्य तथा अद्भुत माना जाता है। महाकुंभ के इस योग में स्नान करने वाले श्रद्धालुओं को असिमित “पुण्य” की प्राप्ति होती है। महाकुंभ में “अमृत-स्नान” यानी ‘शाही-स्नान’ का बड़ा महत्व है।

महाकुंभ का सबसे खास आकर्षण “अमृत-स्नान” का होता है, जो विशेष ग्रह-स्थिति के दौरान होता है। उस समय लाखों श्रद्धालु त्रिवेणी-संगम गंगा,यमुना और सरस्वती में डुबकी लगाते हैं और अपने द्वारा किए गये जाने-अनजाने पापों से मुक्ति पाने के लिए प्रार्थना करते हैं। अमृत-स्नान के दौरान ग्रहों की स्थिति के साथ जो धार्मिक मंत्रों का उच्चारण होता है, वह श्रद्धालुओं की आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग को प्रश्स्त करता है। एक सौ चौआलीस वर्षों बाद आयोजित इस कुंभ मेले को अति पवित्र माना गया है, क्योंकि समुद्र-मंथन के संयोग से यह क्षण जुड़ा हुआ माना गया है। इस मंथन से पृथ्वी पर विशेष ऊर्जा का अवतरण होता है,जिससे यह मेला और भी अधिक पवित्र,दिव्य तथा ऐतिहासिक बन जाता है। इस महाकुंभ में स्नान करने से न केवल पापों का नाश होता है,बल्कि व्यक्ति को “मोक्ष” की भी प्राप्ति होती है।

प्राचीन मान्यताओं के अनुसार “महाकुंभ” केवल आस्था-व्यवस्था का आध्यात्मिक अवसर ही प्रदान नहीं करता,बल्कि यह समाज के विभिन्न वर्गों को एक साथ जोड़ने का कार्य भी करता है। यही कारण है कि यहां पर विभिन्न वर्गों के संत,महात्मा,नागा,किन्नर, साधु,साध्वी और कल्प-वासी सभी मिलकर ध्यान-साधना करतेहैं। मोदी और योगी के योग ने महाकुंभ के इस आयोजन में भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों से आए श्रद्धालुओं को भी एक महत्वपूर्ण अनुभव करने का क्षण प्रदान किया है।

महाकुंभ के इस आयोजन में विशेष रूप से साधु-संतों,योगि और साधकों के लिए एक समय होता है,जब वे अपनी साधना और ध्यान में लीन होते हैं,तब वह समय समाज के लिए आध्यात्मिक उन्नति,आत्मज्ञान और धर्म- प्रचार का श्रेष्ठ अवसर प्रदान करता है। इससे धार्मिक, सांस्कृतिक और हिन्दूत्व की भारत में गतिविधियां तेज होती है और परंपरा को गति मिलती है। श्री योगी और मोदी ने भारत में सनातन धर्म की गरिमा तथा संस्कृति को अक्षुण्ण बनाये रखने तथा उसे उच्च शिखर पर पहुंचाने का जो कार्य किया है,वह अति सराहनीय कदम रहा है। इन दोनों केअद्यम साहस,उत्साह और कार्य कुशलता का ही परिणाम रहा कि इतना बड़ा और भव्य आयोजन सफल रहा,पूरी दुनिया इसका कायल है।

अनेकता में एकता का संदेश देता हुआ यह महाकुंभ-2025, “प्रयागराज” मानवता के कल्याण के साथ ही सनातन से साक्षात कराता हुआ भारत में हिन्दूत्व की गरिमा को उच्च शिखर पर लाकर एक नई पहचान दिलाने का कार्य की है। भारत की एकात्मता का जीवंत प्रतीक और आध्यात्मिक तथा सांस्कृतिक चेतना के महासमागम का यह भव्य एवं दिव्य आयोजन प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के यशस्वी नेतृत्व और मार्गदर्शन तथा श्री योगी के कुशल कर्मठता तथा कुशल प्रशासकीय कार्य शैली के कारण ही संभव हो सका है।

तभी तो देश के प्रधानमंत्री श्री मोदी ने महाकुंभ पर “प्रयागराज” में पधारे लोगों को अपने संदेश में कहा कि “आज देश एकसाथ विकसित भारत के संकल्प को लेकर तेजी से बढ़ रहा है। इस “महाकुंभ”से निकली आध्यात्मिक सामूहिक शक्ति हमारे संकल्प को और भी मजबूत बना दी है।” विश्व का यह एक अद्भुत पूजनीय पवित्र स्थल “प्रयागराज” है,जो हजारों वर्षों की तप साधना से निकली एक विकसित भूमि के रूप में पहचान दिलायी है। तभी तो इंडोनेशिया के पवित्र धार्मिक ग्रंथ में भी इस “प्रयाग कुंभ” की महिमा वर्णित है।

‘मार्गवेट’ ने 1895 के कुंभ को आश्चर्यजनक और श्रद्धा की शक्ति का बड़ा केंद्र बताया था। अपनी इस भारतीय संस्कृति की ही तो देन है,जो यह अकल्पनीय और सुंदरतम हो पाया है। इसकी महिमा को गोस्वामी तुलसीदास ने भी ‘रामायण’ में वर्णन किया है। देश अथवा विदेशी के महापुरुषों तथा विद्वानों ने इस महाकुंभ के पवित्र अवसर पर अद्भुत महासंगम की भरपूर प्रशंसा की है।

इतिहासकारों का तो मानना है कि “कुंभ-मेला” “सिंधु-घाटी सभ्यता” से भी पुरानी है। इसे चीनी यात्री “ह्वेनसांग” ने भी अपनी यात्रा-वृतांत में कुंभ मेले का हर्षवर्धन काल में सुन्दर वर्णन किया है। वहीं “यूनेस्को” ने तो इसे “मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत” बताया है। इस प्रकार भारतीय संस्कृति से जुड़ा यह “कुंभ-मेला” दुनिया को विश्व-बंधुत्व, लोक-कल्याण, सहभागिता तथा विश्व-शांति का संदेश देता हुआ भारत का न केवल गौरव है,वरन् मोदी और योगी.की इस दूरदर्शिता ने भारत और हिन्दूत्व की नई पहचान दिलाई है।

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