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जी-20 शिखर सम्मेलन: भारत ने विश्व को दिया ‘वसुधैव कुटूम्बकम’ का संदेश

भारत की गौरवमयी सांस्कृतिक-ऐतिहासिक प्रमाणों, चित्रों और कृतियों को जी-20 शिखर सम्मेलन के माध्यम से विश्व पटल पर रखा गया है।

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दिल्ली के प्रगति मैदान में दो दिवसीय जी-20 शिखर सम्मेलन का आयोजन और समापन दोनों ही भव्य तरीके से हुआ। इस सम्मेलन में विश्व के सामरिक शक्तियों से सम्पन्न देशों के पीएम और राष्ट्रपति का शामिल होना भारत के लिए महत्वपूर्ण कूटनीतिक सफलता मानी जा रही है।

18वें जी-20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी भारत ने की है। पूरी दुनिया की निगाहें भारत में आयोजित जी-20 सम्मेलन पर थी। ब्रिटेन, फ्रांस, चीन, कनाडा, इटली, अमेरिका, जर्मनी आदि देशों के बड़े नेताओं ने इस सम्मेलन में हिस्सा लिया। किसी कारणवश रूस और चीन के राष्ट्रपति इस सम्मेलन में नहीं आ सके तो उन्होंने अपने प्रतिनिधियों को जरूर भेजा है।

इस सम्मेलन केे दौरान दिल्ली में सुरक्षा चाकचौबंद कर दी गई। तीन दिन तक दिल्ली में बंद जैसी स्थिति रही लेकिन किसी को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा और सभी इस आयोजन की भव्यता को देखकर गौरवान्वित महसूस कर रहे थे।

भारत की मेजबानी में जी-20 शिखर सम्मेलन को इतिहास के पन्नों में इसलिए भी सुनहरे अक्षरों से लिखा जायेगा क्योंकि अफ्रीकन यूनियन को जी-20 की स्थायी सदस्य बनाने का प्रस्ताव पारित किया गया। पीएम नरेन्द्र मोदी के इस प्रस्ताव पर इस सम्मेलन में उपस्थित सभी देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने सहमति जता दी।

पीएम मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि अफ्रीका भारत के लिए शीर्ष प्राथमिकता है। हमें साथ मिलकर वर्तमान की चुनौतियों से निपटना है। हमें उनलोगों को साथ लेकर चलना है जिनकी विश्व पटल पर आवाज नहीं सुनी जा रही है।

कूटनीतिक तौर पर यह भारत की बड़ी जीत बतायी जा रही है क्योंकि अफ्रीकन देशों में चीन का विस्तार बहुत तेजी से हो रहा है। आर्थिक रूप से कमजोर देशों को पहले कर्ज देता है फिर वहां चीन अपनी कूटिल चाल चलता है। पाकिस्तान, अफगानिस्तान, श्रीलंका, नेपाल और दक्षिण अफ्रीकी देशों की बदहाली के लिए बहुत हद तक चीन जिम्मेदार है। चीन उन देशों के आंतरिक मामलों में अब दखलंदाजी करने लगा है। यही कारण है चीन के प्रति विकासशील और पिछड़े देशों का भरोसा टूटता जा रहा है। जी-20 के सदस्य बनने से उन देशों की आवाजों को विश्व मंच पर सुनी जायेगी।

भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चीन पर लगाम कसने के लिए बहुत ही सधी हुई चाल चली है। यही कारण है कि चीन के समाचार पत्र ग्लोबल टाइम्स ने जी-20 को लेकर भारत की आर्थिक और वैदेशिक नीतियों पर सवाल खड़ा किया है। लेकिन इतना मानना पड़ेगा कि भारत की कूटनीति के आगे चीन पस्त होता दिख रहा है। जी-20 शिखर सम्मेलन के बहाने भारत एक तीन से कई निशानों को साधने में सफल रहा है। भारत के विकास में रोड़ा अटकाने वाले पड़ोसी देशों को एक बड़ा संदेश दिया है।

जी-20 शिखर सम्मेलन में सदस्य देशों के बीच कई मुद्दों पर सहमति बनी। 37 पन्नांें में घोषणा पत्र में भूख, गरीबी, बीमारियां, पर्यावरण चुनौतियों, आतंकवाद जैसे प्रमुख मुद्दे शामिल हैं। इस घोषणा पत्र को नई दिल्ली लीडर्स समिट डिक्लरेशन कहा गया है। जी-20 शिखर समिट के सफल आयोजन के बाद भारत एक ग्लोबल लीडर बनकर उभरा है।

” जी-20 शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि हम सभी के लिए, वैश्विक भलाई के लिए एक साथ चलने का समय है। उन्होंने कहा कि कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के बाद दुनिया को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा हैं। उसमें एक है विश्वास की कमी। दुर्भाग्य से हम बीमारी और युद्ध के दौर से गुजर रहे हैं। हम सभी को एकरूपता के साथ चुनौतियों से निपटना है। और यह तभी संभव है जब हम एक दूसरे पर भरोसा करें। एक दूसरे की जरूरतों को पूरा करें। पीएम मोदी के संबोधन को सुनने के बाद सदस्य देशों से प्रशंसा की। ”

” जी-20 शिखर सम्मेलन 2023 ” को इसलिए भी याद रखा जायेगा क्योंकि भारत-मिडिल ईस्ट और यूरोपीय देशों ने साथ मिलकर इकोनॉमिक कॉरिडोर के निर्माण पर सहमति जतायी है। इससे एशिया, अरब के देशों और यूरोप के बीच कनेक्टिविटी आसान हो जायेगी और विश्व के व्यापार को बड़ा आयाम मिलेगा। ऐसे भी ग्लोबल इकोनॉमी में करीब 80 फीसदी से ज्यादा का प्रतिनिधित्व जी-20 में शामिल देश करते हैं। भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोपीय इकोनॉमिक कॉरिडोर बनने से अन्य देशों की चीन पर निर्भरता कम हो जायेगी। जब मांग और आपूर्ति में अंतर आ जायेगा तो विश्व के बाजार पर चीन की बादशाहत अपने-आप कम हो जायेगी।

जी-20 के सदस्य देशों ने यूएनएससी में भारत की स्थायी सदस्यता की मांग कर डाली है। आने वाले समय में यूनाइटेड नेशन इसपर कोई पहल कर सकता है। क्योंकि विश्व के विकसित देशों को भी इस बात का अहसास होने लगा है कि भारत विश्व का बड़ा बाजार है और इसे कमतर नहीं आंकना चाहिए। भारत की दोस्ती कारोबारी देशों के लिए बड़ी जरूरतों में से एक है।

इस सम्मेलन में भारत अपनी सांस्कृतिक पहचान कोे पेश करने में सफल रहा। भारत के ‘‘वसुधैव कुटुंबकम’’ को विश्व के नेताओं ने काफी प्रशंसा की है। प्राचीन भारत की गौरवमयी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक प्रमाणों, चित्रों और कृतियों को जी-20 के माध्यम से विश्व पटल पर रखा गया है। आजादी के बाद इस देश को पहली बार ऐसा अवसर प्राप्त हुआ है जिसमें भारत की सांस्कृतिक विविधताओं से भारत सरकार ने दुनिया को परिचित कराया है।

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