March 31, 2025

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मानवतावादी आदर्श विवाह संपन्न

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“जिय बिनु देह,नदी बिनु वारी। तैसीय नाथ पुरुष बिनु नारी।।” इस प्रकार विवाह जीवन का मूल है। इसमें मनुष्य विभिन्न कर्मों को करता हुआ धर्म का अनुसरण करता है और अक्षय सुख की प्राप्ति की कामना करता है। हिंदू समाज में विवाह सुनियोजित और सुव्यवस्थित जीवन का प्रतीक होता है। इस प्रकार विवाह एक सांस्कृतिक तथा सुसंस्कृत मिलन है।

बिना तिलक-दहेज,अंधविश्वास, रुढ़िवाद और ढोंग-ढकोसला से परे मानववादी विचारधारा के तहत मानववादी चिंतक एवं क्रांतिकारी समाजवादी पुरोधा तपसी तरुण सिंह के दो कन्याओं का विवाह युवक विवाह पद्धति से स्थानीय रॉयल पैलेस डाकबंगला रोड,टिकारी, गया (बिहार) के बड़े सभागार में संपन्न हुआ। इस समारोह की अध्यक्षता पाली विभागाध्यक्ष अवकाश प्राप्त प्राध्यापक डॉक्टर मुन्दिरका प्रसाद ‘नायक’ ने की। वहीं वैवाहिक समारोह का उद्घाटन प्रसिद्ध इतिहासकार एवं पुराविद् डॉक्टर शत्रुघ्न डांगी ने किया। विवाह कार्य युवक संघ के राज्य महासचिव विजय कुमार अधिवक्ता द्वारा संपन्न हुआ।

दो कन्याएं :- वधु- आयु.आरती कुमारी, सुपौत्री स्मृतिशेष रमनी देवी एवं स्मृतिशेष भोली यादव उर्फ पहलवान जी, सुपुत्री श्रीमती रामपति देवी एवं श्री तपसी तरुण सिंह, ग्राम-बेलल्हड़िया, पोस्ट+थाना-टिकारी,जिला-गया, बिहार संग चिरंजीवी कुमार सर्वजीत,सुपुत्र- श्रीमती रीता देवी एवं श्री बलिराम यादव, पैक्स-अध्यक्ष,ग्राम-नियामतपुर, पोस्ट-फाग, थाना-गोह, जिला-औरंगाबाद( बिहार) के साथ संपन्न हुआ।

साथ ही आयु. राधिका कुमारी, सुपुत्री श्रीमती रामपति देवी एवं श्री तपसी यादव ग्राम- बेलहरिया पोस्ट थाना- टिकारी, जिला- गया(बिहार) संग चिरंजीवी संजीत कुमार,सुपुत्र- श्रीमती चिंतामणि देवी एवं स्मृतिशेष शत्रुघन यादव, चाचा भरत यादव ग्राम- निघमा, पोस्ट-सिन्दुआरी,थाना-कोंच, जिला- गया, बिहार के साथ विवाह संपन्न हुआ। शिविर की अध्यक्षता पालि साहित्य के अवकाश प्राप्त प्राध्यापक मुन्द्रिका प्रसाद नायक ने किया, वहीं मुख्य अतिथि के रूप में इतिहासकार एवं पुराविद् डॉक्टर शत्रुघ्न डांगी ने भाग लिया। वैवाहिक कार्य अधिवक्ता विजय कुमार ने संपन्न किया।

डॉक्टर शत्रुघ्न दांगी ने समारोह को संबोधित करते हुए बताया कि विवाह एक संस्कार है। दो आत्माओं का शाश्वत मिलन है। तभी तो दर्शनशास्त्र के प्रख्यात विद्वान एवं पूर्व राष्ट्रपति डॉ राधाकृष्णन ने कहा है कि विवाह एक भागीदारी है, जिसमें धैर्य की आवश्यकता होती है। यह एक प्रयोग नहीं, वरन् गंभीर अनुभूति है। तभी तो तुलसीदास ने भी अपने प्रसिद्ध ग्रंथ रामायण जो अवधी भाषा में लिखी गई है, उसमें वर्णन किया है कि–“जिय बिनु देह,नदी बिनु वारी। तैसीय नाथ पुरुष बिनु नारी।।” इस प्रकार विवाह जीवन का मूल है। इसमें मनुष्य विभिन्न कर्मों को करता हुआ धर्म का अनुसरण करता है और अक्षय सुख की प्राप्ति की कामना करता है। हिंदू समाज में विवाह सुनियोजित और सुव्यवस्थित जीवन का प्रतीक होता है। इस प्रकार विवाह एक सांस्कृतिक तथा सुसंस्कृत मिलन है। विश्व में स्त्री से बढ़कर कोई भेंट नहीं है। तभी तो देश के महान विद्वान डॉक्टर संपूर्णानंद ने भी कहा है कि “वास्तव में कन्यादान से न तो किसी स्वत्व का सर्जन होता है और न विसर्जन। कन्या कोई चल या अचल संपत्ति नहीं है, जिसे दान किया जाए।”

जहां एक ओर हम साल भर में दो बार नवरात्र के अवसर पर सप्तशती का पाठ कर नारी शक्ति के रूप में उसे पूजते हैं- “स्त्रियः समस्ताः सकला जगत्सु,तव देवी भेदाः।” जब यह बात है, तब फिर भेद क्यों ? कन्या के लालन-पालन में भी भेदभाव पूर्ण व्यवहार किया जाता है, यह कहकर कि वह तो “पराया धन” है। यह रूढ़ि बात हम अपनी स्वस्थ वैदिक परंपरा को न जानने के कारण कहते हैं,जबकि “कन्या” गृह स्वामिनी के रूप में सास, ससुर, देवर, ननद पर साम्राज्ञी है। ऋग्वेद के मंत्र में भी स्त्री को परतंत्र भाव से पति और उसके संबंधियों की सेविका नहीं बताया है–यह स्पष्ट रूप से ऋग्वेद के मंडल 10/85/46 में अंकित है।

विवाह की इस पद्धति में मागधी भाषा में इससे जुड़ी एक सुमधुर तथ्यात्मक गीत है–
“कन्यादान से परम दुखहोयतो,
आज हई आनंदवा के दिन अहो लाल।
कन्या जात हई जाति के मनुईया,
कैसे करअब मनु के दान अहो लाल।।”


इस प्रकार जब-जब स्वार्थबस स्त्री को वस्तु माना गया है, तब तब अधर्म हुआ है। महाभारत में धर्मराज कहे जाने वाले युधिष्ठिर द्रौपदी को दांव पर लगाते हैं और हारते हैं। उस भरी सभा में नीति के जानकार विदुर, मर्यादा के पालक भीष्म आदि के होते हुए भी किसी ने युधिष्ठिर को इस अधर्म और अनीति के लिए नहीं धिक्कारा। यही नहीं जब द्रौपदी ने भरी सभा में यह सवाल उठाती है कि “तुम पहले अपने को हारे या मुझे।” तब भी सभासद मौन बनी रहती है। यह अनीति नहीं है तो और क्या ~? जबकि मनुस्मृति भी व्यवस्था देती है कि स्त्री का पति से विक्रय या दान से विच्छेद नहीं हो सकता ।फिर भी कन्यादान के भ्रामक प्रचार के कारण ऐसा अधिकार पुरुषों ने जबरन हासिल कर लिया है। राष्ट्र को इस महत्वपूर्ण इकाई के विकास मार्ग को अवरुद्ध करने वाली रूढ़ियों और मान्यताओं को तोड़ना होगा।

अध्यक्ष की अनुमति से विवाहकर्ता विजय कुमार ने विवाह के पांच अंगों का विस्तार से वर्णन करते हुए वरदान, अभिभावक सहमति, पाणिग्रहण और माल्यार्पण, विवाह प्रतिज्ञा, तिलक एवं सिंदूरदान अंगों का वर्णन करते हुए वैवाहिक कार्य को संपन्न किया। इस बीच विवाह पद्धति के बीच गणपति का स्वागत गीत,गणपति द्वारा कन्या को सभा मंच पर लाने के आग्रह का गीत–बोललन गणपति देवा, करके विचार गे माई। लावअ न सुलक्षण बेटी सभवा मझधार गे माई। इसके बाद शिविर में बधू के प्रवेश करते समय सहेलियां यह गीत गाती हुई सभा मंच पर प्रवेश करती है– चलू सखी देखी आवे, शिविर बिअहवा है। दूल्हा के मउर नाहीं, दुल्हन घूंघटवा हे। फिर पिता या अभिभावक अपने पुत्र-पुत्री को एक दूसरे के साथ विवाह करने की अनुमति देते हैं। इस पर भी एक मधुर गीत है– बगिया बगीचवा से डलिया मंगवलूं, फूलवा से करलूँ श्रृंगार आहो लाल। रूपैया पैईसवा के कौन है जरूरत, कैसे करब कन्यादान अहो लाल। गईया, भैंसिया के जात नहीं बिटिया, नहीं है पठरुआ के जात अहो लाल। कन्या जात हई जाति के मनुईया,कैसे करब मनु के दान अहो लाल। चांदी के सील नहीं,सोने के गहनवां, नहीं बेटी पन्ना, पोखराज अहो लाल। कन्यादान से परम दुख होयतो,आज हई आनंदबा के दिन अहो लाल।

वैवाहिक कार्यक्रम में पाणी-ग्रहण के समय सखियां यह गीत गाती हैं– स्वीकार करअ ही हो, स्वीकार करअ ही। सब लोगवन के आगे स्वीकार करअ ही। दोनों समझ बुझि के स्वीकार करअ ही, दोनों हथवा पकड़ के स्वीकार करअ ही। करार कर रही हो, करार करअ ही, दुख- सुख में रहेला करार करअ ही। नर- नारी बराबर स्वीकार कर ही। अंत में गठबन्धन गीत– “बंधा गेलई हो आज प्रेम के बंधनवां।हाथ में हाथ लेई, करअ ही परनमा, सफल करवई हो मिली दोनों जीवनवां।”

इस मौके पर भारत के प्रसिद्ध जादूगर सियाराम महतो ने अपने जादुई खेल से अंधविश्वास, रूढ़िवाद और ढोंग- ढकोसला पर हथौड़ा मारते हुए भरी सभा में प्रदर्शन किया, जो लोगों को बहुत ही भाया और उन्हें बहुत-बहुत बधाइयां दी।

दूर-दूर से आये अतिथियों,प्रबुद्ध नागरिकों,जन प्रतिनिधियों में मुख्य रूप से पूर्व विधायक शिव बचन यादव, पूर्व जिला परिषद सदस्या श्रीमती रेखा देवी (गोह), श्रीमती विभा कुमारी, श्रीमती किरण कुमारी, अभय कुशवाहा सांसद- प्रतिनिधि मंडल जी, जिला परिषद नागेंद्र यादव, श्रीमती ललिता कुमारी, श्री सत्येंद्र सिंह अमारी, श्रीमती विभा देवी, श्रीमती पिंकी देवी, श्रीमती प्रमिला देवी, आलोक रंजन, जे.के. पंकज ,अजय कुमार, ईश्वर यादव, अशोक कुमार,श्रीमती पिंकी कुमारी (पूर्व चेयरमैन), नंदलाल यादव, नागेश्वर यादव (अर्जक) सुभाष यादव, विकास यादव के अलावा डॉक्टर सरोज कुमार, डॉक्टर प्रणव कुमार,डा.बिनय कुमार,प्रधानाध्यापक ऋषि कुमार,आदि हजारों-हजार की संख्या में भाग लेकर वर-वधू को सुखमय जीवन की कामना करते हुए बधाइयां दी।

अंत में वैवाहिक कार्य को संपन्न होने की घोषणा करते हुए अध्यक्ष डा.मुन्द्रिका नायक ने लोगों से अपील की कि इसे व्यापक रूप से जन-जन में फैलायें और स्वयं इसे अपनायें। यह एक सुगम, कम समय तथा कम खर्च में विवाह संपन्न होने का नमूना है।

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