अग्नि पुराण में वर्णित है कि मातंग ऋषि की तपोस्थली ‘मातंगवापी’ वेदी पर तर्पण और पिंडदान की परंपरा वर्षों पूर्व से चली आ रही है। श्रद्धालु यहां ‘मातंग-कुंड’ में स्नान कर अपने पितरों के उद्धार हेतु तर्पण,अर्पण और पिंडदान कर अपने पितरों की मोक्ष की कामना करते हैं। वहीं पंचकोशी धर्म-यात्रा करने वाले श्रद्धालु गयाजी धर्म क्षेत्र में स्थित ‘सरस्वती-वेदी’ पर पिंडदान कर महाबोधि मंदिर में “तथागत-बुद्ध” का दर्शन करते हैं और अपने को धन्य समझते हैं।
वह व्यक्ति जो अपने जीवन काल में वैराग्य धारण कर लेता है या जिसका कोई उत्तराधिकारी नहीं होता अथवा जो अपने जीवन के पाप कर्मों का प्रायश्चित करना चाहता है- वही प्राणी गयाजी आकर श्रद्धापूर्वक अपना श्राद्ध-कर्म संपन्न करते हैं।
फल्गु तट पर बसे मोक्षधाम के रूप में प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त गयाजी में मुक्ति दिलाने वाली एक खास पर्वत “भस्मकुट” नामक पर्वत” है,जहां जीवित प्राणी अपने जीवन काल में ही “आत्म-श्राद्ध” यानी तर्पण और पिंडदान कर मरणोपरांत मोक्ष प्राप्ति हेतु श्राद्ध कर्म संपन्न करते हैं।
इस विधान के तहत देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं को गयाजी आकर 54 वेदियों पर पिंडदान करने के बाद अपना यानी स्वयं का पिंडदान “जनार्दन-मंदिर” गयाजी स्थित ‘भस्मकुट-पर्वत’ पर करना पड़ता है। यह ऐतिहासिक पर्वत मंगलागौरी मंदिर के उत्तर में स्थित है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु ने स्वयं यहां आकर इस वेदी की स्थापना की थी। यही कारण है कि यह विश्व का एकमात्र वह पवित्र वेदी स्थल है, जहां जीवित प्राणी स्वयं का पिंडदान, श्राद्ध व तर्पण कर मोक्ष की प्राप्ति को भविष्य के लिए सुरक्षित कर लेता है।
वह व्यक्ति जो अपने जीवन काल में वैराग्य धारण कर लेता है या जिसका कोई उत्तराधिकारी नहीं होता अथवा जो अपने जीवन के पाप कर्मों का प्रायश्चित करना चाहता है- वही प्राणी गयाजी आकर श्रद्धापूर्वक अपना श्राद्ध-कर्म संपन्न करते हैं।
श्राद्ध कर्म संपन्न करने वालों में “त्रिपिंडी-श्राद्ध” करने वाले श्रद्धालु बोधगया स्थित निरंजना और मुहाने नदी में प्रथम स्नान कर आत्म शुद्धि के बाद “पंचरत्न” से अर्पण व तर्पण कर धर्मारण्य वेदी पर ‘त्रिपिंडी-श्राद्ध’ संपन्न करते हैं। इसके बाद विष्णुपद मंदिर जाकर विष्णु चरण का दर्शन कर अपने पूर्वजों की आत्मा की चिर शांति और उन्हें स्वर्ग प्राप्ति के लिए गया गदाधर विष्णु से प्रार्थना करते हैं।
गयाजी स्थित विष्णुधाम की महत्ता इससे भी परिलक्षित होती है कि यहां द्वापर युग में कौरवों और पांडवों के बीच हुए महाभारत युद्ध में मारे गए मृत लोगों की आत्माओं की परम शांति के लिए धर्मराज युधिष्ठिर ने मगध जनपद स्थित ‘धर्मारण्य-पिंड’ वेदी आकर पिंडदान किया था और उन सबों को परम शांति एवं मोक्ष प्राप्ति हेतु कामना की थी।
अग्नि पुराण में वर्णित है कि मातंग ऋषि की तपोस्थली ‘मातंगवापी’ वेदी पर तर्पण और पिंडदान की परंपरा वर्षों पूर्व से चली आ रही है। श्रद्धालु यहां ‘मातंग-कुंड’ में स्नान कर अपने पितरों के उद्धार हेतु तर्पण,अर्पण और पिंडदान कर अपने पितरों की मोक्ष की कामना करते हैं। वहीं पंचकोशी धर्म-यात्रा करने वाले श्रद्धालु गयाजी धर्म क्षेत्र में स्थित ‘सरस्वती-वेदी’ पर पिंडदान कर महाबोधि मंदिर में “तथागत-बुद्ध” का दर्शन करते हैं और अपने को धन्य समझते हैं।
इस वर्ष रूस का प्रसिद्ध व्यवसायी ‘वैलरी वासिल्को’ ने विश्व प्रसिद्ध विष्णुपद स्थित नवनिर्मित पवित्र गंगाजल से पूरित “रबर-डैम” के पास पवित्र फल्गु में स्नान कर तर्पण और जलांजलि देकर अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा निवेदित किया। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्थल बोधगया के धर्मारण्य-पिंड वेदी पर भी पिंडदान किया। फिर विष्णुपद और अक्षय-वट में पिंड दान कर अपने पितरों को मोक्ष प्राप्ति की कामना की।
भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति एवं राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री भैरव सिंह शेखावत के नाती अभिमन्यु सिंह रिजवी जो राजस्थान में भाजपा पार्टी के मुख्य प्रवक्ता हैं, ने अपने नाना शेखावत जी एवं नानी सूरज कमल जी को मोक्ष दिलाने हेतु यहां यानी विष्णु धाम गयाजी आकर फल्गु नदी जाने वाले मार्ग में हनुमान मंदिर के समीप पिंडदान व श्राद्ध कर्म संपन्न कर रहे थे, इसी बीच यह सुनकर गया के जिलाधिकारी शशांक शुभंकर तथा वरीय पुलिस अधीक्षक आनंद कुमार ने आकर उनसे भेंट की और उन्हें विशेष सुरक्षा प्रदान करते हुए उपहार स्वरूप गंगाजल की थैली भेंट की। सर्व मान्यता यह है कि “गया-श्राद्ध” पितरों का करने से उनके पीतर भवसागर से पार हो जाते हैं और गदाधर के अनुग्रह से परम गति को प्राप्त करते हैं। गयाजी धर्म क्षेत्र को पितृ तीर्थों में सभी तीर्थों से श्रेष्ठ और मंगलदायक माना गया है। क्योंकि देव देवेश्वर भगवान पितामह यहां स्वयं विराजमान हैं।
पितृ तीर्थ गयाजी आकर उनके वंशजों द्वारा श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने से प्राणी को मोक्ष की सीधी प्राप्ति होती है। वहीं फल्गु नदी में श्रद्धा से वे लोग जिनके लिए श्राद्ध कर्म संपन्न करते हैं, उन्हें फल्गु नदी के जल स्पर्श मात्र से प्राणी को आवागमन से मुक्ति मिलती है। श्रद्धा पूर्वक फल्गु स्नान से व्यक्ति अपने दस पितरों एवं दस वंशजों की रक्षा करता है। इस महान् गयाजी पितृ-तीर्थ में नदी,पहाड़,शिला,जल आदि सभी विष्णु स्वरूप होने के कारण मुक्ति प्रदान करने में अत्यंत सक्षम माना गया है। यही कारण है कि प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु यहां अपने पितरों को मोक्ष दिलाने हेतु “श्राद्ध-कर्म” संपन्न करने आते हैं।




