सनातन पर टिकी भारतीय परंपरा में एक बहुत बड़ी विशेषता है कि इस परंपरा में पारिवारिक संबंधों को मजबूती प्रदान करता है। साथ ही सामाजिक सहयोग और अपनत्व की भावना को भी बढ़ावा देता है। इस परंपरा में अपने देशी-विदेशी मेहमानों को आदर और सत्कार करना सिखाता है।
सनातनी परंपरा का ही यह गहरा प्रभाव है कि जो लोग विदेशों में बस रहे हैं, उन सभी भारत वंशियों व अन्य को भी यहां की धरती आकर्षित करती है। वे अन्य दिनों के अलावा पितृपक्ष-महासंगम के विशेष पावन अवसर पर गयाजी पधारते हैं।
सनातन के इसी संस्कार में अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा निवेदित करने का भी एक अद्भुत विधान बताया है, जो उन्हें मोक्ष दिलाने के लिए प्रसिद्ध पवित्र नगरी गयाजी में पधारते हैं। पवित्र फल्गु में तर्पण, अर्पण और पिंडदान पूरे विधि विधान से अपने पितरों को मोक्ष दिलाने की कामना से करते हैं। इस वर्ष भी विदेशों से 17 सनातन संस्कृति से जुड़े श्रद्धालुगण पहुंच कर पिंडदान किया।
विदेशी मेहमानों में 14 महिलाएं थीं। विदेशी मेहमानों सोफिया, ओसिया, ओलगा, दिया ना, एवगोनिया, एलेक्सी, वेलेन्टिना, सोफिया और लोहिया आदि हैं। सभी महिलाएं रुद्राक्ष धारण किए हुए थे। स्पेनवासी रोसिया ने बताया कि वह मूल रुप से यूक्रेन के रहने वाले हैं लेकिन पिछले 10 वर्षों से स्पेन में रह रहे हैं। उन सभी ने बताया कि भारत में आकर बहुत सुकून मिला है। पूर्वजों के प्रति आस्था प्रकट करने की अद्भुत विधि सनातन धर्म में है। सनातनी परंपरा का ही यह गहरा प्रभाव है कि जो लोग विदेशों में बस रहे हैं, उन सभी भारत वंशियों व अन्य को भी यहां की धरती आकर्षित करती है। वे अन्य दिनों के अलावा पितृपक्ष-महासंगम के विशेष पावन अवसर पर गयाजी पधारते हैं।
काफी संख्या में इस वर्ष भी कई विदेशी मेहमान यहां पधार चुके हैं। पिछले एक दशक से यहां विदेशी मेहमानों का अपने पूर्वजों को मोक्ष दिलाने की कामना से लगातार आने का सिलसिला जारी है। विदेशों से आने वाले हाल के पिंडदानियों में रूस, यूक्रेन और अमेरिका आदि देशों से जुड़े श्रद्धालुगण हैं। वे यहां तीनदिनी पिंडदान विधि के तहत प्रथम दिन सीताकुंड फिर दूसरे दिन विष्णु पद,फल्गु और अक्षयवट, तीसरे दिन में पिंडदान करने के बाद अन्य पिंडों पर पिंडदान कर, उन लोगों ने इसके बाद चार धाम की यात्रा के लिए सभी रवाना हो गये।
उन सभी ने बताया कि हम सभी बीते सात सालों से सनातनी परंपरा से जुड़कर सनातनी परंपरा को हम सभी ने अपना धर्म मान लिया है। यही कारण है कि हमारे सबों के घरों में शिवलिंग हैं, जिनकी प्रतिदिन हमारे घर में पूजा-पाठ की जाती है। मत्रों का भी हम लोग जाप करते हैं। हम सभी शुद्ध शाकाहारी हैं।
हम अपने पूर्वजों की परंपरा का ही पालन करते हैं। सभी विदेशी श्रद्धालुओं ने भारतीय वेशभूषा में अपनी संस्कृति को संजोए अपने पितरों के उद्धार के लिए पिंडदान गयाजी की पवित्र वेदियों पर करने के उपरांत अपने को धन्य समझते हुए यहां से विदा ली।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने विष्णुपद मंदिर में पिंडदान किया
विदेशियों में पड़ोसी देश नेपाल से अकेले करीब सौ की संख्या में पिंडदानी व श्रद्धालु यहां आये और अपने पूर्वजों को मोक्ष दिलाने की कामना से पूरे सनातनी हिन्दू रीति रिवाज से पिंडदान व तर्पण कार्य संपन्न किया। नेपाल से आने वाले श्रद्धालुओं में प्रेम प्रकाश कुमार ढुंगाना-पूर्व न्यायधीश सुप्रीम कोर्ट ऑफ नेपाल, कवि ढुंगाना- फाइनांस एक्जीक्यूटिव, श्रीमती कल्पना ढुंगाना और जया ढुंगाना आदि अति महत्वपूर्ण हैं।
एक ओर जहां कई विदेशी हस्तियां गया जी आकर अपने पूर्वजों को मोक्ष दिलाने की कामना से विष्णुपद मंदिर में पूजा-पाठ और पिंडदान किया, वहीं भारत की प्रथम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू हुई, जिन्होंने गया जी के विष्णुपद मंदिर आकर अपने पिता, माता, सास,ससुर और दो बेटों सहित सात स्वजन के आत्मा की शांति और मोक्ष दिलाने की भावना से पिंडदान संपन्न किया। कर्मकांड संपन्न कराने वाले ओडीशा के गयापाल पुरोहित राजेश कटियार और बाबूलाल झंकर थे।




