Sunday, December 7, 2025
Google search engine
Homeविरासतशारदीय नवरात्रि की पहचान: गरबा-डांडिया, शक्तिपूजन और भव्य अनुष्ठान

शारदीय नवरात्रि की पहचान: गरबा-डांडिया, शक्तिपूजन और भव्य अनुष्ठान

“गरबा”- ‘देवी-दुर्गा’ के जीवनचक्र और उनकी शक्ति का पर्याय रूप माना गया है। डांडिया नृत्य में ये दोनों ढोलक और तबले की ताल और थाप पर एक दूसरे के साथ मिलकर नृत्य करते हैं और उत्साह तथा उमंग में एक सजी हुई बांस की छड़ी पर प्रहार करते हैं। यह छड़ी देवी दुर्गा की तलवार का प्रतीक होती है। इसीलिए यह “तलवार नृत्य” भी कहा जाता है। इस नृत्य में गोलाकार घेरे के बीच गतिविधियां शामिल होती हैं,जो नृत्य में चार चांद लगाती है।

“गरबा व डांडिया” रास एक प्रसिद्ध भावपूर्ण परंपरागत पुरुषों तथा महिलाओं; विशेषकर लड़के और लड़कियों द्वारा प्रस्तुत अति मनमोहक गुजरात का एक प्रसिद्ध भावपूर्ण आकर्षक ‘लोक-नृत्य’ है। इसमें महिलाएं विशेषकर लड़कियां रंगीन चोली-काचली और अलंकृत परिधानों के साथ विविध आभूषणों से सज्जित होकर, हाथ में रंगीन डांडिया के साथ गरबा नृत्य के लिए उतरती हैं, वहीं पुरुष व लड़के भी सर पर पगड़ी बांधे,अचकन व केडिया पहने अपने हाथों में रंगीन डांडिया लिए गरबा नृत्य में साथ जोड़ी बनने के लिए मैदान में आ उतरते हैं। ये दोनों प्रतिभागी एक दूसरे के साथ जोड़े बनकर रंगीन डांडिया को एक दूसरे से टकराते हुए संगीत की ताल और ढोलक-तबले की थाप पर नृत्य करते हुए जो रास रचाते हैं, वह अति मनोरंजक,आकर्षक और मनमोहक दृश्य उपस्थित करता है।

यही कारण है कि डांडिया और गरबा नृत्य केवल अब गुजरात ही नहीं,बल्कि पूरे देश और विदेशों में भी प्रचलन में आ चुका है। ऐसे इस नृत्य का उद्गम स्थल गुजरात ही है। डांडिया और गरबा एक सांस्कृतिक एवं पारंपरिक भारतीय लोक नृत्य है, जो विशेषकर गुजरात और राजस्थान के इलाकों में नवरात्रि के अवसर पर उत्सव के रूप में मनाया जाता है। ऐसे यह नृत्य “देवी-दुर्गा” और “राक्षस-महिषासुर” के बीच युद्ध का प्रतीक माना गया है,जो बुराई पर अच्छाई की जीत को दर्शाता है। इसी कारण नवरात्र के अवसर पर इसे खुशियां के रूप में आयोजित किया जाता है। इसमें रंगीन डांडिया यानी छड़ियां देवी की तलवार का प्रतिनिधित्व करती है,जो बुराई पर अच्छाई की जीत का द्योतक माना जाता है।

डांडिया-रास “गरबा-नृत्य” के साथ मिलकर सामाजिक और धार्मिक लोक नृत्य के रूप में”नवरात्रि” के शुभारंभ में अब सर्वत्र एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है। “गरबा”- ‘देवी-दुर्गा’ के जीवनचक्र और उनकी शक्ति का पर्याय रूप माना गया है। डांडिया नृत्य में ये दोनों ढोलक और तबले की ताल और थाप पर एक दूसरे के साथ मिलकर नृत्य करते हैं और उत्साह तथा उमंग में एक सजी हुई बांस की छड़ी पर प्रहार करते हैं। यह छड़ी देवी दुर्गा की तलवार का प्रतीक होती है। इसीलिए यह “तलवार नृत्य” भी कहा जाता है। इस नृत्य में गोलाकार घेरे के बीच गतिविधियां शामिल होती हैं,जो नृत्य में चार चांद लगाती है।

भारतीय संस्कृति में नृत्य की दो मुख्य शैलियां हैं:– 1. एक शास्त्रीय नृत्य शैली –जिसकी उत्पत्ति भरत मुनि के “नाट्य शास्त्र” से हुई मानी गई है और 2. दूसरी लोक नृत्य शैली– जिसकी उत्पत्ति – ग्रामीण परिवेश से हुई मानी गई है।
भारत में मान्यता प्राप्त प्रमुख आठ शास्त्रीय नृत्य शैलियां हैं, किन्तु भारतीय सांस्कृतिक मंत्रालय ने ‘छऊ’ नृत्य को भी शास्त्रीय नृत्य की सूची में शामिल कर लिया है,जिससे अब शास्त्रीय नृत्यों की संख्या नौ हो गई है:-

1- श्रृंगार : प्रेम
2- हास्य : विनोदी
3-करुणा : दुख
4- रौद्र : क्रोध
5- वीर : वीरता
6- भयानक :भय
7- विभत्स : घृणा
8-अद्भुत : आश्चर्य और
9- छऊ नृत्य ।

भारत के विभिन्न प्रदेशों में अपनी-अपनी विशिष्ट बहुमूल्य कई नृत्य शैलियां हैं, जो इस प्रकार हैं:– भरतनाट्यम – तमिलनाडु, कथक – उत्तर प्रदेश, कुचिपुड़ी – आंध्र प्रदेश, ओडीसी – ओडीशा, कथकली -केरल, सत्त्रियानृत्य -असम, मणिपुरी – मणिपुर, मोहिनीअट्टम – केरल, भांगड़ा – हरियाणा, झिझिया,जट-जटी,झूमर,कजरी, विदेशिया आदि – बिहार प्रमुख हैं।

आज डांडिया व गरबा गुजरात से निकलकर पूरे भारत में छा चुका है। सिनेमा जगत का प्यारा गीत “मैं तो भूल चली बाबुल का देश, पिया का घर प्यारा लगे। कोई मायके का दे दो संदेश, पिया का घर प्यारा लगे।” जैसे स्वर कोकिला लता के कंठ और अभिनेत्री नूतन के जीवंत अभिनय से यह गीत अति लोकप्रिय और उत्कृष्टता की शीर्ष उंचाई पर पहूंची। पहले ‘गरबा’ सिर्फ फिल्मों में देखा जाता था। फिल्म ‘सरस्वती चंद्र’ में प्रेम में शराबोर नवविवाहित ‘नूतन’ अपनी सखियों के संग नृत्य करती अति मनमोहक लगी थी।

“गरबा व डांडिया” शक्ति पूजन का एक अनुष्ठान है। ये दोनों ही गुजराती संस्कृति का एक अंग है। यह एक प्रकार का रास है, वही रास जो द्वापर युग में श्री कृष्ण गोपिकाओं के संग यमुना के तट पर कदंब के नीचे रास रचाते थे। वर्तमान में डांडिया और गरबा को लोग एक तरह से अपनी मां दुर्गा-अंबे के आने की प्रसन्नता में स्वागत स्वरूप मनाते हैं और महिषासुर मर्दनी पर दुर्गा के अजय रूप को नृत्य करते पूजते हैं। गरबा और डांडिया देखने में एक जैसे लगते हैं। किंतु इन दोनों की शैलियां विभिन्न अवसरों में भिन्न हो जाती हैं। दोनों ही दो अलग-अलग कहानियों को कहते हैं।

वास्तव में यह उत्सव पूरे परिवार का उत्सव होता है। पूरा परिवार एक साथ मिलकर भांगड़ा को घर में या घर से बाहर इसे समूह में पूरे उत्साह और उमंग के साथ मनाते हैं। यही कारण कि इसकी व्यापकता आज पूरे भारत और विदेशों में भी फैल चुकी है। गुजरात, दिल्ली,उत्तर प्रदेश, पंजाब, महाराष्ट्र, बिहार, झारखंड आदि राज्यों में डांडिया की छाया सर्वत्र छायी हुई है। मां देवी-अंबे दूर्गा के आगमन के स्वागत में हर घर पूजा की चहल-पहल आरंभ हो गई है। पूरे घर की साफ-सफाई, पूजा व आरती के लिए डलिया सज चुकी है। वहीं फल-फूल, नारियल, कलश, धूप-दीप आदि पूजनीय अनुष्ठानिक सामग्रियों से पूर्ण तैयारी के साथ विधिवत् पूजा-पाठ प्रतिदिन पूर्ण भक्तिभाव से आरंभ हो चुका है। तभी तो कहा जा रहा है कि लोक संस्कृति से परिपूर्ण “डांडिया” का डंका अब सर्वत्र बज चुका है।

इस कड़ी में “इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, गया द्वारा “डांडिया” महोत्सव का आयोजन ‘क्राउन प्लाजा’ पुरानी घाट के पास ‘डांस ग्रुप डायरेक्टर’ अरविंद आर्यन के निर्देशन में आयोजित हुआ। इस महोत्सव के ‘चीफ गेस्ट’ गया के प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ विजय करण रहे, वहीं समारोह की ‘अध्यक्षता’ इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के प्रेसिडेंट डॉक्टर अशोक कुमार सिंह ने संभाली। सभी चिकित्सकों ने स्टेज पर आकर अपनी उपस्थिति दर्ज करते हुए, एक से एक डांडिया व गरबा का मनमोहक प्रोग्राम प्रस्तुत किया। महोत्सव में बेस्ट परफॉर्मेंस करने वाले चिकित्सकों में “बेस्ट कास्ट्यूम अवार्ड” डॉक्टर रतन कुमार एवं डॉ.अमित सिंह को मिला, वहीं “बेस्ट कपल अवार्ड” डॉक्टर शंभू प्रसाद और डॉ.दिप्ति करण को दिया गया। ‘डांडिया’ तथा ‘गरबा’ का सफल निर्देशन एवं संचालन डांडिया-गरबा विशेषज्ञ अरविंद आर्यन ने संपन्न किया।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -
Google search engine

Most Popular

Recent Comments