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18वीं सदी का मगध का सशक्त जमींदार था सुंदर सिंह

टिकारी राज किला (भाग-2)

18वीं सदी का विख्यात इतिहासकार ‘सैयद गुलाम हुसैन खान’ ने अपनी पुस्तक” सियारूल मुताखरीन ” में लिखा है कि सुंदर सिंह मगध का एक बड़ा सशक्त जमींदार था । उसके अधीन न केवल तत्कालीन गया जिला, बल्कि दक्षिण के बहुत बड़ा पहाड़ी भाग का एक  बड़ा क्षेत्र भी उसके अधीन था । सुंदर सिंह का एक पुत्र दुलह सिंह था , वह पिता की जीवनकाल में ही स्वर्ग सिधार गया। सुंदर सिंह के अपने बड़े भाई त्रिभुवन सिंह के चार लड़के थे -बेचू सिंह ,फतेह सिंह, बुनियाद सिंह और निहाल सिंह ।

सुंदर सिंह अपने पुत्र की मृत्यु के बाद बुनियाद सिंह को गोद ले लिया था । इसलिए सुन्दर सिंह की मृत्यु के बाद बुनियाद सिंह को उत्तराधिकारी के रूप में राजा का खिताब प्राप्त हुआ । उधर राजा त्रिभुवन सिंह के बड़े पुत्र फतेह सिंह को, चूँकि राजा त्रिभुवन सिंह की मृत्यु के बाद नाबालिक होते हुए भी टिकारी का राजा बना दिया गया था,  इसलिए चाचा सुंदर सिंह ही इसके संरक्षक बने रहे ।

राजा सुन्दर सिंह सैन्य संचालन में ज्यादा व्यस्त रहते थे, इस कारण उन्होंने अपने छोटे भाई छतर सिंह के पुत्र कहर सिंह के लड़के दुन्द बहादुर को 1753 ई० में अपना प्रतिनिधि मुर्शिदाबाद में बहाल किया। राजा सुन्दर सिंह की हत्या होने के बाद राजा ‘ मुर्शिदाबाद ‘में टिकारी राज का प्रतिनिधि बुनियाद सिंह बने। 8 मार्च 1759 ई० को शाहआलम (अली गौहर) कर्मनाशा नदी पार कर  बिहार आया ।

6 फरवरी 1761 को  गया स्थित मानपुर में  शाह आलम और अंग्रेजो के बीच एक समझौता हुआ । समझौता क्रम में  शाह आलम स्वयं अंग्रेजों के कैंप में आया । इससे अंग्रेज अफसर  प्रसन्न होकर  उसे पटना आने का  निमंत्रण  दिया । इसे  वह स्वीकार कर लिया।  इस बीच बंगाल का सूबेदार  मीर कासिम बादशाह को प्रसन्न कर  बंगाल ,बिहार  तथा  उड़ीसा की  सुबेदारी  हासिल कर ली । करीब 2 वर्षों तक  शाहआलम  बिहार के आक्रमण दौरे पर रहा ।

इस दरम्यान टिकारी राज का जानी दुश्मन कामगार खाँ शाही सेना में अपना प्रवेश पा लिया । वह नहीं चाहता था कि टिकारी से राजा बुनियाद सिंह एवं फतेह सिंह को संरक्षण मिले । वह टिकारी के राजा एवं इनके राज को विनष्ट करने में जुट गया । बुनियाद सिंह को उसने गिरफ्तार करवा दिया ।

टिकारी इलाके को भी कई महीनों तक शाही सेना से घीरे रखा ।राजा किला में बंद रहे । इस तबाही और परेशानी से बचने के लिए बुनियाद सिंह शाही दरबार छोड़ अंग्रेजों के साथ हो लेने का मन बना लिया । इसके लिए उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी के पास निष्ठा एवं श्रद्धा से भरा पत्र लिखा, जो दुष्ट ”मीर कासिम “को हाथ लग गया । उसने एक बहाना बनाकर राजा बुनियाद सिंह को परिवार सहित मुंगेर में आने का निमंत्रण दिया ।

निमंत्रण पाकर बुनियाद सिंह कॉफी खुश होकर अपने भाई राजा फतेह सिंह , राजकुमार त्रिलोक सिंह तथा अन्य परिवार गण के साथ मुंगेर पधारे । वे इसके साजिश में फंस गए । इन्हें मुंगेर पहुंचते ही उसने गिरफ्तार करवा कर सबो की हत्या करवा दी । हत्या होने वालों में राजा बुनियाद सिंह ,राजा फतेह सिंह, राजकुमार त्रिलोक सिंह ,राम नारायण सिंह ,राजबल्लभ सिंह ,राम किशोर सिंह ,उमेश राय जगत सेठ ,महताब राय तथा महाराजा रूपचंद जी मुख्य थे । हत्यारा समरू था ,जो मीर कासिम का सिपहसालार था । राजा बुनियाद सिंह ने गया के उस पार फल्गु नदी के तट पर एक शहर बसाया था, जो आज भी बुनियादगंज नाम से प्रसिद्ध है ।

राजा बुनियाद सिंह की मृत्यु के कुछ ही माह बाद 1762 ईस्वी में उन्हें एक पुत्र पैदा लिया, जिसका नाम “मित्र जीत ” था । यह समाचार ज्योहीं मीरकासिम को मिला तब उसने एक सैन्य टुकड़ी उसे मारने हेतु भेजा । किंतु उसकी माँ ने काफी होशियारी से उस जन्मजात बच्चे को एक ऊपले (कंडे )की टोकरी में अपने एक विश्वासी धाय के मार्फत राजा बुनियाद सिंह के विश्वासी सरदार दिलीप सिंह के पास भेज दिया । वे उसे एक पहाड़ी किले में बक्सर युद्ध तक छिपाकर रखा । सरदार के नेतृत्व में टिकारी की एक सैनिक टुकडी़ अंग्रेजों के साथ बक्सर युद्ध (1764 ईस्वी )में लडी़ । इस युद्ध में अंग्रेजों की जीत हुई और मिरकासीम  की नवाबी मुर्शिदाबाद की समाप्त हो गयी ।

टिकारी राज के राजा फतेह सिंह के छोटे भाई नेहाल सिंह के बडे़ पुत्र पीताम्बर सिंह को राजा फतेह सिंह की विधवा रानी लग्न कुंअर द्वारा गोद लिए जाने से राजा बने । इस पर बुनियाद सिंह की पत्नी मुर्शिदाबाद कोर्ट में अपना फरियाद पेश की कि उसका पुत्र मित्र जीत सिंह राज का सही हकदार है ।

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