
नीतीश कुमार ने बिहार सातवीं बार मुख्यमंत्री की शपथ लेकर एक रिकॉर्ड बनाया है। एनडीए गठबंधन से कई नये चेहरे को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है। विधानसभा चुनाव से पहले महागठबंधन को छोड़कर एनडीए में शामिल होने वाले हिन्दुस्तान अवाम मोर्चा और विकासशील इसान पार्टी (वीआईपी) को कैबिनेट में जगह देना नीतीश कुमार की मजबूरी है। क्योंकि बिहार की सत्ता की चाबी इन्हीं दोनों के पास है। इसलिए एनडीए में इनकी आवभगत खूब हो रही है। वहीं महागठबंधन भी इन दोनों के लिए रेड कार्पेट बिछाकर बैठा है। संयोग ऐसा है कि बिहार में इनके बिना सरकार की स्थिरता संभव नहीं है। राजनीतिक समीक्षकों का मानना कि यह सरकार हमेशा चुनौतियों से घिरी रहेगी। क्योंकि एनडीए में शामिल नये दलों के नखरे और डिमांड को पूरा करना सरकार के लिए आसान नहीं होगा। चुनावी भाषणों को पूरा कर पाना सरकार के लिए बड़ी चुनौती है।
बहरहाल, नई चुनौतियों के बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कुर्सी संभाल ली है और अपने कैबिनेट की पहली बैठक भी बुलाई। बिहार में अभी सभी मंत्रालयों का बंटवारा नहीं हो पाया है। इसलिए कुछ और नये चेहरे मंत्रिमंडल में शामिल हो सकते हैं। एनडीए की ओर से नीतीश कुमार को बिहार की सत्ता की चाबी सौंपी गई है। क्योकि एनडीए ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाकर ही चुनाव लड़ा था। बीच में खबर आई की बीजपी की ओर से बिहार का अगला मुख्यमंत्री होगा क्योंकि बीजेपी की सीटें जदयू से अधिक है। नीतीश कुमार ने भी गेंद बीजेपी के पाले में डाल दिया। केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने उन सारे कयासों पर विराम लगाते हुए नीतीश कुमार की ताजपोशी की हरी झंडी दे दी।
बिहार विधानसभा चुनाव परिणाम में जदयू की सीटे बीजेपी से कम है। सीटों के मामले में जदयू बिहार में तीसरे नंबर पर है। 75 सीटें जीतकर आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनी है। जबकि 74 सीटों पर जीत दर्ज कर बीजेपी दूसरे नंबर पर है। तीसरे नंबर पर जदयू (43) और चौथे नंबर पर कांग्रेस (21) है। बिखंडित जनादेश के कारण किसी घटक अथवा दल को पूर्ण बहुमत (122 सीट) हासिल नहीं हुआ है।
इसलिए आशंका व्यक्त की जा रही है कि नयी सरकार के सामने इस बार चुनौतियों का पहाड़ होगा। चुनावी घोषणाओं के आधार पर बिहार की जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने एवं घटक दलों के साथ संतुलन बनाकर चलना मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सामने बड़ी चुनौती होगी। इस बार नीतीश कुमार पर उम्मीदों के बोझ कुछ ज्यादा ही हैं।
नीतीश कुमार ने अपने संबोधन में भी कहा कि इस बार उनकी सरकार का युवाओं और रोजगार पर फोकस ज्यादा होगा। क्योंकि इस चुनाव में भ्रष्टाचार, राज्य की बदहाल व्यवस्थाएं और बेरोजगारी प्रमुख मुद्दों में शामिल रहे। पक्ष और विपक्ष दोनों इन्हीं मुद्दों पर चुनाव मैदान में उतरे थे। इसलिए सरकार की जिम्मेदारी इस बार बढ़ गई है और विपक्ष भी इन्हीं मुद्दों पर सरकार को घेरने के लिए ताक में बैठा है।
चुनावी रैलियों में महागठबंधन की ओर से तेजस्वी यादव ने जब घोषणा की थी कि अगर उनकी सरकार बिहार में बनती है तो 9 लाख युवाओं को नौकरी दी जायेगी। तब एनडीए की ओर से सुशील कुमार मोदी ने नहले पर दहला मारते हुए 19 लाख नौकरी देने की घोषणा कर दी। अब चूंकि बिहार में सरकार एनडीए की बन गई है। तो नीतीश कुमार को उन सभी रूकी हुई परियोजनाओं को गति देने के साथ-साथ चुनावी वायदों और घोषणाओं को पूरा करने के लिए भी कदम उठाना होगा। क्योंकि इस बार बिहार का विपक्ष पहले से ज्यादा सशक्त है और मौके की ताक मे है। इस बार बिहार में पक्ष और विपक्ष के बीच जीत-हार का अंतर बहुत ज्यादा नहीं है। इसलिए इस सरकार पर खतरा हमेशा मंडाराता रहेगा।
बिहार में एनडीए की सरकार बन गई यह विपक्ष को अभी तक हजम नहीं हो पा रहा है। क्यांेकि मतगणना से पूर्व संध्या पर ही कई चैनलों एवं एक्जिट पोल एजेंसियों ने तेजस्वी यादव की ताजपोशी कर दी थी। वहीं महागठबंधन समर्थक दलों, नेताओं और शुभचिंतकों ने तेजस्वी यादव को नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री की बधाई भी भेज दी। लेकिन अगले दिन जनादेश एनडीए के पक्ष में आया। इसपर महागठबंधन की ओर से मतगणना में धांधली की बात कही जाने लगी।
तेजस्वी यादव का कहना है कि यह जनादेश महागठबंधन के पक्ष में आया है लेकिन चुनाव आयोग ने बिहार में सरकार एनडीए की बनवा दी। तेजस्वी यादव इस मामले को सुप्रीम कोर्ट ले जाने की बात कर रहे हैं। जिन सीटों पर हार-जीत का अंतर बहुत कम है उन सीटों पर वह सुप्रीम कोर्ट की मदद से रिकाउंटिंग कराना चाहते हैं। इसके लिए वकीलों से राय ली जा रही है। विपक्ष अपनी हार को हार मानने को तैयार नहीं है। विपक्ष के इस रवैये से आने वाले दिनों में बिहार में सियासी उठापटक तेज होने की संभावना दिख रही है।




