Thursday, May 22, 2025
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अश्लीलता और फूहड़ता से गिरी भोजपुरी भाषा की साखः लगाम के लिए सेंसर की दरकार

मैथिली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कर लिया गया लेकिन भोजपुरी तो रेस में भी नहीं है। अगर भोजपुरी भाषा को राष्ट्रीय स्तर का सम्मान दिलाना है तो सबसे पहले उन गायकों का सार्वजनिक तौर पर बहिष्कार कीजिए जो इसमें अश्लीलता फैला रहे हैं। पर्व- त्योहारों एवं अन्य मौके पर सार्वजनिक आयोजनों से उन्हें बाहर रखिए। इसके लिए बुद्धिजीवियों और माननीयों को आगे आना होगा। सामाजिक संगठनों को आगे आकर भोजपुरी भाषा में अश्लीलता के खिलाफ आवाज बुलंद करनी होगी। 


भाषाएं, लिपियां, परम्परायें… ये सभी विरासत हैं, धरोहर हैं जो आने वाली पीढ़ियों का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में मार्गदर्शन करते हैं। यह किसी कि निजी संपत्ति नहीं है कि कोई इसे तहस-नहस करे।

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बिहार के चर्चित भोजपुरी गायक खेसारी लाल यादव की बेटी पर गायक पंकज सिंह ने आपत्तिजनक भाषा में गाना गाकर एक नयी बहस छेड़ दी है कि, इस समृद्ध भाषा को अश्लीलता में पिरोने का अधिकार इन सबको किसने दिया है। मामला लत्तम-जुतम से होते हुए थाना और कोर्ट तक पहुंच गया है। लेकिन अब सवाल उठने लगे हैं कि इस हमाम सब नंगे हैं तो सिर्फ कार्रवाई एक ही पर क्यों ?

भोजपुरी का ज्यादातर गायक तो लोगों की मां-बहन, बेटी, मौसी…. कर रहा है।

बिहार में ऑटो, बसों डीजे एवं सार्वजनिक समारोहों में बजने वाले उन अश्लील गानों को सुनकर आप खुद शर्मसार हो जायेंगे। अगर आप अपने परिवारों के साथ ऑटो, बसों में सवार हैं तो कानफाड़ू अश्लील गानों को सुनकर आपको अगल-बगल झांककर अपनी शर्मिंदगी छिपानी पड़ेगी।

वर्तमान दौर के अधिकांश गानों के बोल में उन्मुक्त मादकता से पूर्ण नारी का चरित्र चित्रण और अश्लीलता से इतर इन भोजपूरी लेखकों-गायकों की सृजन क्षमता गायब ही दिखती है। जबकि, भिखारी ठाकुर, शारदा सिन्हा और भरत शर्मा जैसे सरीखे गायकों ने भोजपुरी भाषा को एक नयी पहचान दी और इसे जनमानस में स्थापित किया। लेकिन आज-कल के ये सड़कछाप गायक भोजपुरी भाषा को रसातल में ले जा रहे हैं।

पिछले दो-तीन दशकों में भोजपूरी सिनेमा का भले ही विस्तार हुआ हो लेकिन इसी दौरान लभगग 2000 वर्ष पुरानी भोजपुरी भाषा का पतन भी तेजी से हुआ है। भोजपुरी को अश्लीलता का टैग दे दिया गया है। इस समृद्ध भाषा को बिहार के बाहर बोलने में भी लोगो को शर्मिंदगी महसूस होती है, क्योंकि इसे भोजपूरी सिनेमा जगत ने कहीं का नहीं छोड़ा। जब आप खुद इस भाषा का सम्मान नहीं करेंगे तो दूसरों से कैसे उम्मीद कर सकते हैं।

गीत-संगीत को माध्यम बनाकर ये गायक अश्लीलता फैला रहे हैं और वैचारिक स्तर पर समाज को गंदा कर रहे हैं। पानी सिर से उपर गुजरने के बाद भी, ”चलनी में बहत्तर छिद्र” जैसे हालात भोजपूरी के गायकों के सामने हैं। अश्लीलता पर कौन मुंह खोले। इसलिए अधिकांश गायक खामोश हैं।

उन्हें कभी इस बात का इल्म नहीं है या इसकी थोड़ी भी चिंता नहीं है उनके इन अश्लील गानो को सुनकर उनकी मां, बहन और बेटी क्या सोचती होगी। जब उन गानों में कोई चोली का हूक खोल रहा है, तो कोई लहंगा में मीटर लगवा रहा है। गानों में अश्लीलता तो इस कदर भरी है कि मर्यादा को ध्यान में रखते हुए उसे उल्लेख करना उचित नहीं है।

अब, एक गायक ने किसी की बेटी पर गाना गा दिया दिया तो यह मामला निजता का हनन के दायरे में आ गया और आना भी चाहिए। संविधान प्रदत्त निजता की सुरक्षा का अधिकार प्रत्येक व्यक्ति के पास है और समाज में अश्लीलता फैलाने वाले उन गायकों को कानूनी स्तर पर सबक मिलनी चाहिए। अगर ऐसा नहीं होगा तो कुंठाग्रस्त ऐसे लोग अथवा कथित गायक किसी अन्य की बेटी, बहन को निशाना बनाना शुरू कर देंगे।

ऐसे मामले को दोहराया न जाये इसके लिए भोजपुरी स्टार और सांसद रवि किशन ने भोजपुरी में अश्लीलता को रोकने के लिए सरकार से सेंसर बोर्ड के गठन की मांग की है। उनका कहना है कि भोजपुरी सिनेमा एवं गानों में व्याप्त अश्लीलता की जितनी भर्त्सना की जाये कम है। उन्होंने केन्द्र सरकार से मांग की है कि स्वच्छता अभियान के तहत भोजपुरी भाषा में फैली अश्लीलता की सफाई के लिए ठोस कदम उठाये जायें।

भाषाएं, लिपियां, परम्परायें… ये सभी विरासत हैं, धरोहर हैं जो आने वाली पीढ़ियों का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में मार्गदर्शन करते हैं। यह किसी कि निजी संपत्ति नहीं है कि कोई इसे तहस-नहस करे। भोजपुरी एक सहज, मीठी और समृद्ध भाषा पर जिस तरह अश्लीलता और फुहड़पन का लबादा चढ़ा दिया गया है। उससे इस भाषा को राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान तो मिलने से रहा।

जबकि, मैथिली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कर लिया गया लेकिन भोजपुरी तो रेस में भी शामिल नहीं है। अगर भोजपुरी भाषा को राष्ट्रीय स्तर का सम्मान दिलाना है तो सबसे पहले उन गायकों का सार्वजनिक तौर पर बहिष्कार कीजिए जो भोजपुरी भाषा में अश्लीलता फैला रहे हैं। पर्व-त्योहारों एवं अन्य मौके पर सार्वजनिक आयोजनों से उन्हें बाहर रखिए। इसके लिए बुद्धिजीवियों और माननीयों को आगे आना होगा। सामाजिक संगठनों को आगे आकर भोजपुरी भाषा में अश्लीलता के खिलाफ आवाज बुलंद करनी होगी।

बिहार सरकार को भी इसपर संज्ञान लेकर उन गायकों, लेखकों के खिलाफ कठोर कदम उठाने की जरूरत है जो भोजपुरी भाषा को अपनी जागीर समझ रहे हैं। हाल के दिनों में भोजपुरी में अश्लीलता के खिलाफ कई लोग सोशल मीडिया पर मुखर होकर बोल रहे हैं, तो इससे कुछ गायकों की भौहें तन गयी हैं। वह अजीब-अजीब तर्क देकर अपनी गलतियों को भी जायज ठहरा रहे है और विरोध करने वालों को अपनी धौंस दिखा रहे हैं।

कुछ गायक तो खुलेआम धमकी दे रहे हैं कि अगर उनके खिलाफ कोई बयानबाजी करेगा तो वह उसे कहीं का नहीं छोड़ेंगे। सोशल मीडिया पर दर्जनों ऐसे वीडियों हैं जिसमें वह अपने प्रशंसकों से अपने विरोधियों को गाली सुनवा रहे हैं। मतलब ये सभी खुलेआम समाज में गंदगी फैलायें और इनके खिलाफ कोई कुछ बोले भी नहीं।

इस तरह भोजपुरी भाषा को लेकर सोशल मीडिया पर दो खेमा बन गया है। एक विरेाध करने वाला तो दूसरा उन गायकों का महिमामंडन करने वाला। इस तरह की खेमेबाजी भोजपुरी भाषा के हित में नहीं है।

अब तो गायको के पक्ष में जातिवादी लॉबी शुरू हो चुकी है और उन्हें जस्टिफाई करने की कोशिश की जा रही है। अगर यह सब लम्बे समय तक चलता रहा तो आने वाली पीढ़ियों के लिए भोजपुरी में सिर्फ अश्लीलता, नग्नता और फूहड़ता ही विरासत के रूप में बचेगी।

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