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बढ़ते प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन : विश्व के 6000 वैज्ञानिकों की चेतावनी भरी रिपोर्ट

विश्व में बढ़ते प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन ने प्रकृति और मानव के अस्तित्व को इस चौराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है कि यह कहना मुश्किल हो गया है कि उनका अस्तित्व बच पाएगा अथवा नहीं । विश्व के 6000 वैज्ञानिकों ने वर्ष 2000 में ही जो चेतावनी भरी रिपोर्ट सौंपी थी, उसमें कहा था कि यदि ग्रीन हाउसों से गैसों के उत्सर्जन पर तत्काल रोक नहीं लगाई गई तो 21वीं सदी के अंत तक पृथ्वी पर जैव जीवन लायक नहीं बच पाएगी ।

संयुक्त राष्ट्र की आईपीसीसी रिपोर्ट ने बताया कि करीब 300 वर्ष पूर्व यानी जब से पूंजीवाद की शुरुआत हुई इसके पूर्व पृथ्वी प्रदूषण विहीन था । वैज्ञानिकों का मानना है कि सन 1750 से प्रदूषण की शुरुआत हुई थी | विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि ग्रीन हाउस गैसों के सकेंद्रण में बढ़ोतरी का मुख्य कारण जीवाश्म इंधन को उपयोग में लेना तथा भूमि उपयोग के तरीकों में परिवर्तन का लाना है | रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2010 में कार्बन डाइऑक्साइड का सकेंद्रण बढ़कर 392.3 पीपीएम हो गया, जबकि 1750 में यह मात्र 280 पीपीएम ही था |

एक आंकड़े के मुताबिक वायु प्रदुषण से प्रत्येक वर्ष करीब 40 लाख लोगों की जाने जाती हैं ।कार्बन और अन्य ग्रीन हाउस गैसों जैसे कार्बनडाइऑक्साइड, मिथन व क्लोरोफ्लोरो कार्बन आदि विगत 40 वर्षों में करीब चार गुना बढ़ा है, जिससे हमारा वैश्विक उष्माकरण और जलवायु में बढ़ते परिवर्तन से सुनामी और बाढ़ जैसी गंभीर स्थितियां उत्पन्न हो गई हैं | इसमें अमेरिका एक अकेला राष्ट्र है जो एक तिहाई ग्रीन हाउस गैसें उत्सर्जित करता है |

विश्व का 60% भाग जल का प्रदूषित हो चुका है | नदियां और तालाबों के पानी को पीना तो दूर उसमें मुंह भी धोना मुश्किल हो गया है | साफ जल की कमी से करीब दस हजार प्रजातियों में एक चौथाई जलीय -जीव विलुप्त हो चुकी हैं |वन्य जीवों में भी लगभग एक हजार प्रजातियां विलुप्ति के कगार पर और बारह हजार प्रजातियां खतरे की सूची में आ गई हैं । चिडियों की जानी पहचानी 9946 प्रजातियों में प्रदूषण , ग्लोबल वार्मिंग और कीटनाशक दवाइयों के प्रयोग तथा शिकार से 70% की संख्या में कमी आई है | वहीं गीद्ध और गौरैये की संख्या जो हाल ही में घटी हैं अथवा खत्म हुई है उसका कारण प्रदुषण ही है । कौवे की संख्या में भी भारी कमी आई है । दुषित जल से लगभग तीस लाख लोग प्रतिवर्ष मरते हैं ।

देश में प्रतिवर्ष वायु प्रदूषण से भी करीब बारह लाख लोग प्रतिवर्ष मरते हैं । डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक प्रतिवर्ष करीब एक करोड़ लोग कैंसर की बीमारी से मरते हैं । सबसे ज्यादा पंजाब से । पंजाब से तो एक ट्रेन भी कैंसर नाम की दिल्ली के लिए चलती है ।सबसे ज्यादा मौतें फेफड़े के कैंसर से होती है, जो मुख्यतः दूषित वायु और जल दूषित प्रयोग से होता है ।

विश्व के आधी से अधिक जंगल नष्ट हो चुके हैं । नष्ट होने का दर प्रति वर्ष करीब 90 हजार वर्ग किलोमीटर है । यदि यही रफ्तार रही और जंगल लगाने का अभियान भी यदि कागजों में खानापूर्ति होती रही तो इसमें दो मत नहीं कि अगले 25 वर्षों में जंगल ही विलुप्त हो जाएंगे । दूसरी एक और समस्या कॉरिडोर के नाम पर उपजाऊ कृषि योग्य भूमि को अधिग्रहण करना है । ‘प्रकृति संरक्षण अंतर्राष्ट्रीय संघ’ संस्था की लाल सूची में विलुप्त पशु प्रजातियों की संख्या 3037 बताई गई है, वहीं पेड़ पौधों की प्रजातियों की संख्या 2655 है । अवैध व्यापार में दवा , मीट और पशु की खाल के लिए व चीनी-पेंगोलिन और गैंडा के शिकार से सबसे ज्यादा वैश्विक व्यापार होता है ।अवैध वन्य -जीव का सालाना व्यापार लगभग 91258 अरब डॉलर का है ।

वर्ष 2016 में 1054 गेंडों का शिकार अकेले अफ्रीका महादेश में हुआ था । उसी साल 4.15 लाख अफ्रीकी हाथियों में 211 मीट्रिक टन का हाथी दांतों का अवैध कारोबार हुआ था । अप्रैल 2016 में केन्या में 105 टन हाथी दांत और गैंडे की सींग जलाए गए थे । अवैध शिकार से लगभग 40% सालाना हाथियों की मौतें होती हैं ।

इस प्रकार देखा जाए तो प्रतिवर्ष विकास के नाम पर जंगलों की कटाई आदि से पर्यावरणीय संकट इस स्तर पर उपस्थित हो गया है ,जो प्राणी को इस चौराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है कि प्राणी व जीव -जंतु का अस्तित्व जीवित रह पायेगा या खत्म हो जाएगा कुछ कहा नहीं जा सकता ।

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