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उपेक्षित है प्रसिद्ध सांस्कृतिक-ऐतिहासिक स्थल “घेजन”

आवश्यकता है अब इस महत्वपूर्ण एवं ऐतिहासिक बौद्ध तथा हिंदू स्थल को पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने की तथा इसे बौद्ध सर्किट से जोड़कर इसकी विशेषता को उजागर करने की।

 

बिहार राज्य के पटना गया रेलवे लाइन पर जहानाबाद स्टेशन एवं जिला मुख्यालय से लगभग 10.5 किलोमीटर उत्तर मखदुमपुर स्टेशन है । इससे करीब 9 किलोमीटर दूर पश्चिम में मोरहर नदी के तट पर बसा एक अति ऐतिहासिक, पुरातात्विक एवं पर्यटन की दृष्टि से भी अति महत्वपूर्ण पाईबिगहा बाजार के पास उपेक्षित सांस्कृतिक ऐतिहासिक स्थल “घेजन” है।

पुराविद् ‘वेगलर’ ने इसे सर्वप्रथम 1872- 73 ईस्वी में देखा था । उन्होंने इसे “बिशनपुर घनजन” नाम से संबोधित किया है। बाद के वर्षों में सन् 1902 ईस्वी में मेजर ‘ब्लॉच’ ने इस स्थल का सूक्ष्म निरीक्षण किया था,जिसका विस्तार से उन्होंने वर्णन किया है। यहां उन्होंने बहुतायत संख्या में बौद्ध और हिंदू मूर्तियों को पाया था। उन्होंने वर्णन क्रम में बतलाया है कि भगवान बुद्ध की यहां एक अति आश्चर्यजनक नेकलेस पहने अलौकिक मूर्ति त्रृस्तरीय राजमुकुट धारण किए बड़ी मूर्ति थी। साथही एक अवलोकितेश्वर बुद्ध की भी लिपियुक्त मूर्ति को देखा था,जिसकी आधारशिला में स्थवीर रत्न सिन्हा जो नालंदा से यहां आए थे, ने दानस्वरूप इसे अपने दो शिष्यों- जन सिन्हा और उध्योता के लिए पूजन हेतु प्रदान किये थे । इससे यह स्पष्ट होता है कि प्राचीन जमाने में यह स्थल काफी प्रसिद्ध रहा है।

यहां प्राचीन इंटो से बने मंदिरों के अवशेष अभी भी गांव के दक्षिण- पूर्व में देखने को मिलते हैं। यहां एक बड़ा सा टीला है, जो ‘गढ़ ‘ या “ढीबरा” कहलाता है। यहां इस स्थल पर बुद्ध विहार तथा बौद्ध मंदिर होने का पुराविदों का अनुमान हैं।
इस ऐतिहासिक स्थल से मिली कीमती मूर्तियां “भारतीय संग्रहालय” कोलकाता की भी शोभा बढ़ा रही हैं। जबकि चार टूटी विशाल और बेशकीमती काले पत्थर की “बुद्ध-मूर्तियां” भूमि स्पर्श मुद्रा की खड़ी यहां एक आधुनिक शेड में “भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग “नई दिल्ली द्वारा 30 × 30 फीट के भीतर सुरक्षित जमीन परिसर में गाड़ी हुई संरक्षित हैं।
गांव के आधुनिक नवनिर्मित मंदिर में भी बड़ी संख्या में हिंदू मूर्तियां रखी और पूजित हैं– जिनमें तारा, भगवती, विष्णु, गरुड़, एक लिंग की अनोखी अवशेष, लक्ष्मी, शिवानी आदि की मूर्तियां प्रमुख हैं।

आवश्यकता है अब इस महत्वपूर्ण एवं ऐतिहासिक बौद्ध तथा हिंदू स्थल को पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने की तथा इसे बौद्ध सर्किट से जोड़कर इसकी विशेषता को उजागर करने की।

बीते दिन इस ऐतिहासिक स्थल को लेखक डा.शत्रुघ्न दांगी ने अपने सहयोगी कमलेश कुमार के साथ जाकर इस ऐतिहासिक स्थल का विशेष रुप से निरीक्षण किया और वहां तैनात रक्षा प्रहरी एवं ग्रामीणों तथा इस स्थल की पूरी जानकारी रखने वाले श्री विकास चन्द्र मिश्र से जानकारी प्राप्त की। आगत अतिथियों की पुस्तिका में दर्ज पर्यटकों की सम्मतियों को भी पढा़। उनमें बांग्लादेश तथा राज्य के विभिन्न हिस्सों से आए बड़ी संख्या में पर्यटकों एवं श्रद्धालुओं के यहां आने के साक्ष्य मिलते हैं। साथ ही स्थानीय अधिकारी,प्रखंड विकास पदाधिकारी, राजनेता,स्थानीय विधायक एवं एम.पी. भी इस स्थल का दौरा कर चुके हैं औऱ इसे विकास करने हेतु अपनी सम्मतियाँ औऱ आश्वासन भी दिया है, किंतु आज तक प्रगति शून्य है।

हद तो यह है कि यहां आवागमन की भी कोई विशेष सुविधा प्राप्त नहीं है। ग्रामीणों ने बताया कि रूपसपुर पुल से मात्र दो कि.मी.यह धार्मिक एवं पुरातात्विक स्थल है, जो कच्ची सड़क से जुड़ा है। इसे पक्की करने के लिए सभी अधिकारियों से अनुरोध भी किया गया है। दो माह से ग्रामीण आमरण अनशन पर भी बैठे हैं, किंतु कोई सुनने वाला अभी तक नहीं है। अधिकारीगण सिर्फ आश्वासन देते औऱ चले जाते हैं। पर्यटन के क्षेत्र में विकास का यही हाल सरकार का है। जबकि बगल में ही “कोटेश्वर धाम” के लिए चारों तरफ से अच्छी सड़कें हैं। “कोटेश्वर धाम” नामक रेलवे स्टेशन भी है।

इस प्राचीन बौद्ध स्थल की महिमा को जानकर बोधगया स्थित “अशोक बुद्ध विहार” के संस्थापक ‘डॉ. अशोक शाक्या’ ने बीते वर्षो में यहां एक बड़े भिक्षु दल विभिन्न देशों को साथ लाकर इस ऐतिहासिक स्थल का दर्शन कराया था औऱ सेमिनार आयोजित कर ग्राम वासियों को “भगवान बुद्ध” के उपदेशों से लोगों को लाभान्वित करवाया था। बिहार सरकार को विशेष ध्यान इस ओर देने की आवश्यकता है, जिससे कि राज्य के राजस्व में वृद्धि होगी एवं रोजगार सृजन का मार्ग भी प्रशस्त होगा।

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