Thursday, May 22, 2025
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बराबर की गुफाएं: एशिया का प्रथम “रॉक- कट मोनास्ट्री”

मगध की धरती धरोहरों की धरती मानी गई है। अति प्राचीन काल से ही यहां एक से एक धरोहरें विद्यमान हैं। उन्ही में से एक है एशिया का प्रथम “रॉक- कट मोनास्ट्री” का प्रथम नमूना के रूप में विश्व पटल पर अपनी छाती में संजोए हुए है बराबर की गुफाएं ; जो प्राकृतिक, धार्मिक एवं ऐतिहासिक तथा पुरात्तात्विक दृष्टिकोण से अति महत्वपूर्ण हैं। इन सात गुफाओं में सतघरवा और नागार्जुनी गुफाएं हैं।

पहाड़ी के उतुंग शिखर पर सिद्धेश्वर नाथ का अति प्राचीन प्रसिद्ध शिव मंदिर भी है। यहां की अनुपम छटा, पहाड़ियां, जंगल और ऐतिहासिक धरोहरें न केवल प्रसिद्ध हैं, बल्कि यहां मिलने वाली अनमोल जड़ी- बूटियाँ और अयस्क के भंडार भी काफी महत्त्वपूर्ण हैं।

प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने इस स्थल का दौरा किया था उसने अपनी यात्रा वृतांत में इस स्थल का विस्तार से वर्णन किया है। “द-एंटीक्वैरियन-रिमेन्स-इन बिहार” पुस्तक में बी.आर.पाटिल ने महाभारत का हवाला देते हुए मिस्टर “जैक्सन” द्वारा अन्वेषित दो शिलालेखों में इस स्थल का नाम गोरथगिरी, खलातिका तथा प्रवरगिरिका बताया है। वहीं ब्रिटिश उपन्यासकार ई.एम.फोस्टर ने अपनी पुस्तक “ए-पैसेज-टू-इंडिया” में भारत यात्रा के दौरान लिखें इस उपन्यास में बराबर का नाम “किमाराबार” लिखा है।

नक्सलवाद से प्रभावित जिला बिहार के जहानाबाद में अपनी गोद में समाये जिला मुख्यालय से करीब 25 किलोमीटर दूर दक्षिण- पूर्व गया पटना रेलखंड पर बेलागंज अथवा मखदुमपुर स्टेशन से करीब 9 किलोमीटर पूरब वाणावर की 1130 फीट ऊंची पर्वत श्रृंखला में यह स्थित है। यह स्थल प्रदूषण रहित, नैसर्गिक सुषमाओं से पूरित एवं पौराणिक तथा ऐतिहासिक धरोहरों का संगम रूप में अवस्थित है। बराबर की गुफाएं जो “सतघरवा” नाम से प्रसिद्ध है–वे हैं सुदामा गुफा, लोमस ऋषि गुफा, विश्व झोपड़ी गुफा इसमें दो कोठारियां हैं एवं कर्ण चोपड़ा गुफा इसमें भी दो कोठरियां हैं। इस कारण इसे स्थानीय लोग “सतघरवा” नाम से पुकारते हैं।

मिस्टर जे. एच. हेरिंगटन ने 1785 ईस्वी में बराबर और नागार्जुनी गुफाओं में उत्कीर्ण शिलालेखों की खोज की थी। प्राचीन जमाने में बौद्ध भिक्षु ,श्रामनेर,उपासक और आजिवकों के लिए ये गुफाएं मौर्य काल अर्थात् सम्राट अशोक तथा उनके पौत्र राजा दशरथ ने ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में 322-185 के बीच बनवाया था। गुफा द्वारों में सम्राट अशोक के शिलालेख उत्कीर्ण हैं। सात गुफाओं में तीन में सम्राट अशोक के अभिलेख तथा परवर्ती काल के अन्य अभिलेखों में मौखरी वंश नरेश अनंतवर्मन का नाम अभिलिखित है।

सम्राट अशोक ने वास्तु कला के इतिहास में एक नई शैली को जन्म दिया था । इस शैली का पूर्ण विकास महाराष्ट्र के कार्ले, भांजा तथा कण्हेरी आदि स्थलों में पूर्ण रुप से परिलक्षित मिलता है। बराबर पहाड़ी की गुफाओं में लोमस ऋषि गुफा काफी आकर्षक और दर्शनीय है। इसके आंतरिक प्रकोष्ठ अंडाकार है। अग्रभाग बेहद सुंदर और अलंकृत है। प्रवेश द्वार दो पंखों पर तिरछे खड़े दो स्तंभ हैं, जिसके ऊपर गोल मेहराब बने हुए हैं।उसके बीच एक स्तूप है तथा दोनों किनारों से हाथियों की श्रृंखलाबद्ध झूंड स्तूप की पूजा करते अति आकर्षक रुप में प्रदर्शित है।

बराबर पहाड़ी की शिखर पर सिद्धनाथ का अति प्राचीन मंदिर है, जहां प्रत्येक सोमवार तथा पूरे श्रावण मास भारी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ होती है। अनन्त चतुर्दशी (रक्षाबंधन) के दिन लाखों की संख्या में दूर- दूर से श्रद्धालु मेला देखने आते हैं। यहां के झील, झरने, पातालगंगा तथा वनस्पतियां एवं प्राकृतिक दृश्य अति मनभावन हैं। पास में ही पवित्र फल्गु नदी बहती है।

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार सिद्धनाथ मंदिर स्थित शिव की स्थापना मगध साम्राज्य के राजा वाणासुर द्वारा किया गया था। वाणासुर के राजमहलों की खुदाई भारतीय पुरातत्त्व सर्वे क्षण द्वारा बेलागंज के पास सोनपुर में करायी गई थी,जहां से बडी़ मात्रा में पुरात्तात्विक सामग्रियां प्राप्त हुई थी।

वाणासुर की पुत्री उषा प्रत्येक दिन जलाभिषेक तथा पूजा करने वाणावर जाती थी। मैं डा.शत्रुघ्न दांगी स्वयं तत्कालीन बिहार पुरातत्व निदेशालय निदेशक डॉ प्रकाश चरण प्रसाद जी से मिलकर और पुरातात्विक तथ्यों से अवगत कराकर इसे प्राथमिकता देते हुए सुरक्षित, संरक्षित और परिवर्द्धित करने का कार्य किया था। इस ऐतिहासिक तथा धार्मिक स्थल का तत्कालीन मुख्यमंत्री माननीय लालू प्रसाद जी के द्वारा उद्घाटन करवाया था। यहां कैफिटेरिया, आउटपोस्ट, सिद्धनाथ पहाड़ी पर चढ़ने के लिए सीढियां एवं पातालगंगा का सौंदर्यीकरण और संग्रहालय भी बनवाए गए थे,जिनकी स्थिति आज अति दयनीय है।

कुछ वर्षों से यहां सरकारी स्तर पर महोत्सव का आयोजन भी किया जाता है,फिर भी इस ऐतिहासिक स्थल का विकास न तो पर्यटन स्थल के रूप में, न तो स्थानीय स्तर पर और न तो राष्ट्रीय स्तर पर ही हो पाया है। विश्व स्तर पर इसे विकसित करना तो दूर की बात है। ईधर कुछ वर्षों से अशोक प्रियदर्शी ने वाणावर काव्य महोत्सव का आयोजन कर इसकी विशेषता और गरिमा को उद्घाटित करने का कार्य कर रहे हैं। अतः अब आवश्यकता है इस पौराणिक, ऐतिहासिक एवं विश्व स्तरीय पुरात्तात्विक तथा प्रसिद्ध तीर्थ स्थल को विश्व पटल पर विकसित करने की।

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