Thursday, May 22, 2025
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भारतीय सांस्कृतिक विरासतों पर गर्व करने वाला देश “कंबोडिया”

दक्षिण पूर्व एशिया में भारतीय संस्कृति से ओत-प्रोत कंबोडिया एक प्रसिद्ध देश स्थित है। इसका प्राचीन नाम कंबुज, कंबोज व कम्पूचिया संस्कृत नाम है। सर्व प्राचीन इंडोचीन प्रायद्वीप में भारतीय उपनिवेश की स्थापना सर्वप्रथम पहली शताब्दी में हुई थी,जहां लगभग 600 वर्षों तक हिंदू संस्कृति का प्रचार -प्रसार होता रहा। उसके बाद कंबुज का महान् राज्य स्थापित हुआ, जिसकी गौरव परंपरा करीब 14 वीं सदी तक कायम रही। उसके प्राचीन वैभव के अवशेष आज भी अंकोरवट (अंग्कोर-थोम व अंग्कोरवात) में प्राप्य हैं।

मान्यता यह है कि आर्य देश के राजा “कंबु” स्वयंभुव ने इस उपनिवेश की नींव डाली थी, जो शिव का परम भक्त था। उसने यहां बस रही प्राचीन नाग जाति के राजा की सहायता से जंगली मरुस्थल को हरा- भरा और सुंदर प्रदेश बनाकर राज्य की स्थापना की तथा उसने अपनी प्रतिभा से नागराज की अति सुंदर कन्या “मेरा” को मोहित कर उससे शादी कर ली और महारानी बना लिया। साथ ही उसने कंबुज राजवंश की भी नींव डाली।

ऐतिहासिक कंबोज का प्रथम राज्य संस्थापक के रूप में श्रुतवर्मन का नाम आता है, जिसने कंबोज देश को फूनान की अधीनता से मुक्त कराया था। उसके बाद उसका पुत्र श्रेष्ठवर्मन ने अपने नाम पर “श्रेष्ठपुर” नामक राजधानी बसायी, जिसके पुरावशेष लाओस के “वाटफू पहाड़ी” यानी लिंग पर्वत के पास मिलते हैं। बाद राजा भववर्मन ने जिसका संबंध
फूनान और कंबोज दोनों राजवंशों से था, उन्होंने एक नया वंश “खमेर वंश”चलाया तथा अपने नाम पर “भवपुर” नामक राजधानी बसायी।

भववर्मन एवं उसके भाई महेंद्रवर्मन के शासनकाल में कंबुज का काफी विकास हुआ। महेंद्र वर्मन की मृत्यु के बाद उसका प्रतापी पुत्र ईशान वर्मन ने कंबोज राज्य की सीमा को बहुत दूर-दूर तक विस्तार किया। उसने भारत तथा चंपा के साथ राजनयिक संबंध स्थापित कर “ईशनपुर” नाम की एक नई राजधानी भी बनाई। कंबोज के राजा ईशान बर्मन से चंपा के राजा जगद्धर्म ने अपनी पुत्री की शादी कर दी जिससे वह कंबोज की महारानी बनी। उनसे उत्पन्न पुत्र प्रकाशधर्म चंपा का राजा बना ।

ऐतिहासिक श्रोतों से ज्ञात होता है कि भारत से कंबोडिया पहुंचे अनेक व्यापारियों के नाम पर भी वहां कई नगरों की स्थापना मानी जाती है। कंबोडिया के इतिहास में प्रथम हिंदू शासक के रूप में “चंदन” का भी नाम आता है, जो 357 ईसवी में वहाँ का शासक रहा। बाद पांचवी शताब्दी में कौण्डिन्य का और फिर शुतवर्मन नामक शासक ने कंबोज को फुनान से मुक्त कराया था।

खमेर शासकों के द्वारा वहां कृषि कार्य,सरोवरों का निर्माण तथा नहरें बनवाने का विशेष उल्लेख मिलता है। रोलोस के पास पहले बने खमेर मंदिरों का निर्माण हुआ था जो अंकोर काल के पहले का माना जाता है। इनमें गाय,गो देवता व नंदी, नाकोंग और लोलेई हरिहरालय के मंदिर भी उस जमाने में ईंटों से बने थे।

ईस्वी सन् 88 में वाकोंग का मंदिर अंकोरवट का आधार बना था। लोलेई का “हरिहरालय मन्दिर” भगवान विष्णु को समर्पित है। भारतीय संस्कृति से ओतप्रोत कंबोडिया में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तथा राम, कृष्ण के अलावा गौतम बुद्ध के गौरव को भी विशेष स्थान दिया गया है। 12 वीं शताब्दी का विश्व विख्यात “अंकोरवट मंदिर” परिसर में 70 देवालयों का निर्माण हुआ था। इसे राजा सूर्यवर्मन नाम शासक ने बनवाया था। इस मंदिर के मुख्य देवता तो विष्णु हैं, किन्तु इसके प्रवेश द्वार पर गौतम बुद्ध की बहुसंख्यक आकृतियां अंकित हैं।

यह मंदिर भारतीय संस्कृति का विश्व में गौरव को प्रदान करता है। इसकी पश्चिमी दीर्घा की दक्षिणी दिशा में महाभारत का भीषण युद्ध चित्र है,वहीं द्रोणाचार्य और भीष्म के भी चित्र अंकित हैं। एक कोने में अर्जुन और कर्ण को एक दूसरे पर तीरों की बौछार दर्शाते हुए चित्रित किया गया है। उत्तर की ओर रामायण युद्ध तथा खमेर चित्रकला में यहाँ हनुमान को अनोखे रूप में चित्रित किया गया है।

ऐतिहासिक तथ्यों से यह भी ज्ञात होता है कि 15 वीं शताब्दी में इस मंदिर को बौद्ध मंदिर के रूप में परिवर्तित किया गया था। बाद प्राकृतिक विनाश लीला और गृह युद्ध के दौरान इसे काफी क्षति पहुंची थी। तब वर्ष1986 में इस मंदिर का जीर्णोद्धार भारत ने ही किया था। एक माने में कंबोडिया को (कंबोज) भारतीय उपनिवेश माना जाता था। वहां के निवासियों की सभ्यता, संस्कृति, परंपराएं, भाषा, वास्तुकला तथा धर्म पर भारतीयता की अमिट छाप रही है, जिसे दर्शन करने आज भी वहां लोग जाते हैं। तभी तो अरब पर्यटकों ने इसे हिन्दू देश कहा है। प्राचीन काल में यहां की राजभाषा संस्कृत थी, फिर बौद्ध धर्म के प्रचार के बाद यह स्थान पाली भाषा ने ले ली। आज भी वहां के धार्मिक क्षेत्र की मुख्य भाषा पाली ही है। वहां की प्रचलित भाषा कंबुज है।

यहां की भूमि काफी उपजाऊ है। यहां का मुख्य फसल चावल है तथा अन्य फसलों में तंबाकू, कहवा और रबर की खेती होती है। पशुपालन यहां का मुख्य धंधा है। जीविका के लिए लोगों द्वारा यहां मछली पकड़कर धन अर्जित करने की परंपरा है।

‘मीकांग’ और ‘टोनले साप’ नदी के संगम पर बसा “प्राम-पेन” नामक नगर यहां की राजधानी है। यह देश तश्तरीनुमा आकार की एक घाटी है, जो चारों ओर से पर्वतों से घिरा है। यहां का विस्तृत भू-भाग श्रमिकों के अभाव में कृषि विहीन खाली पडी़ है,जबकि मिट्टी यहां की काफी उपजाऊ है।

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