April 1, 2025

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रिहाई के लिए जेल मैन्युअल में बदलाव: राजनीतिक पतन की पराकाष्ठा

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बिहार के पूर्व डीजीपी अभयानंद का कहना है कि बिहार सरकार को इस तरह के फैसले लेने से पहले एक आंतरिक कमीशन बैठाने की जरूरत थी। जेल मैन्युअल हटाने से पहले कुछ पार्टियों के नेता, कुछ अधिकारी और कुछ वरिष्ठ लोगों की राय ली जानी चाहिए थी।

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तर्क यह दिया जा रहा है कि कई राज्यों में उम्रकैद की सजा काट रहे बंदियों को परिहार दिया गया है, लेकिन अन्य राज्यों और यहां की परिस्थितियों में अंतर है। यहां जिसे परिहार दिया गया है उसपर एक आईएएस अधिकारी की हत्या का आरोप लगा और उसे सजा मिली। इसे सामान्य घटना से तुलना नहीं की जानी चाहिए।

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बिहार के गोपालगंज जिले के डीएम जी कृष्णैया की 4 दिसंबर 1994 को मुजफ्फरपुर में सरेआम हत्या कर दी गई थी। तब लोगों की प्रतिक्रिया थी कि जिस राज्य में डीएम सुरक्षित नहीं है वहां आम आदमी की सुरक्षा तो भगवान भरोसे है। डीएम जी. कृष्णैया की हत्या का आरोप बिहार पीपुल्स पार्टी के अध्यक्ष बाहुबली आनंद मोहन पर लगा। आरोप यह लगा कि छोटन शुक्ला की हत्या के विरोध में सड़क जाम करने वाली भीड को आंनद मोहन ने ही डीएम को मारने के लिए उकसाया था। जी. कृष्णैया भीड़ के सामने गिड़गिड़ाते रहे कि मुझे जाने दो, मै गोपालगंज का डीएम हूं। लेकिन भीड़ ने उनकी एक नहीं सुनी और एम्बेसडर से उन्हें खीचकर सड़क पर घसीटकर लाया गया।

एक आईएएस की इतनी बर्बरतापूर्ण हत्या के बाद आनंद मोहन पर केस दर्ज हुआ और लोअर कोर्ट ने उन्हे फांसी की सजा सुना दी। फांसी से बचने के लिए आंनद मोहन ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी डाली और सर्वोच्च न्यायालय ने फांसी को उम्रकैद में तब्दील कर दिया। आनंद मोहन को अक्टूबर 2007 में उम्रकैद की सजा हुई थी। जेल मैन्युअल के मुताबिक, उन्हें 14 साल की सजा पूरी करने के बाद परिहार मिल सकता था, लेकिन 2007 में जेल मैन्युअल में एक बदलाव की वजह से वे बाहर नहीं आ पा रहे थे। लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आनंद मोहन को जेल से बाहर निकालने के लिए जेल मैन्युअल में ही बदलाव कर दिया। जिससे उन्हें जेल से बाहर निकलने का रास्ता साफ हो गया।

आनंद मोहन की रिहाई के बाद बिहार की सियासत गरमा गई है। आनंद मोहन राजपूत जाति से हैं। कहा जा रहा है कि राजपूत वोट को अपने पाले में करने के लिए महागठबंधन की सरकार ने ऐसा कदम उठाया है। महागठबंधन की सरकार में राजद-जदयू साहित सात अन्य पार्टियां साझीदार है।

आनंद मोहन के जेल से बाहर आने से राजपूत जाति के लोगों में नीतीश- लालू के प्रति एक सहानुभूति जरूर होगी। बिहार की राजपूत लॉबी आनंद मोहन को एक हीरो में रूप में देखती है और इनकी रिहाई के पीछे भी एक बड़ा सियासी कारण बताया जा रहा है।

बिहार में विपक्ष का कहना है कि 6 से 8 फीसदी राजपूत वोट को अपने पाले में करने के लिए राज्य सरकार द्वारा आनंद मोहन को जेल से रिहा किया गया है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसके लिए जेल मैन्यूअल में बदलाव किया है। सियासी फायदे के लिए सरकार में साझीदार आरजेडी ने भी सहमति जतायी है।

बिहार में 12 से 15 लोकसभा सीटों पर राजपूत वोट से सियासी समीकरण बनते और बिगड़ते हैं। इसलिए आनंद मोहन की रिहाई पर बिहार की ज्यादातर पार्टियों की मौन सहमति दिख रही है। आनंद मोहन की रिहाई को लेकर ज्यादातर दलों के नेता गोलमोल बातें कर रहे हैं। बिहार के सीएम नीतीश कुमार 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुट गये हैं और चुनावी परिप्रेक्ष्य में ही आंनद मोहन को जेल से परिहार दिया गया है।

नीतीश कुमार के इस फैसले का विरोध आईएएस एसोसिएशन ने किया है। वहीं दिवंगत जी.कृष्णैया की पत्नी और बेटी ने भी नीतीश कुमार को इस फैसले पर फिर से विचार करने को कहा है। जी.कृष्णैया की पत्नी ने मीडिया से कहा है कि एक अपराधी को अपराध की नजर से ही देखा जाना चाहिए। अगर सियासी फायदे के लिए किसी अपराधी को जेल से बाहर निकालते हैं तो इसका गलत संदेश जायेगा।

आंनद मोहन के जेल से बाहर आने से राजपूत जाति में खुशी की लहर है और अलग-अलग पार्टियों के कई राजपूत नेताओं ने नीतीश कुमार के फैसले को सही करार दिया है। आंनद मोहन 15 साल बाद जेल से बाहर आ रहे हैं। उनको जेल से बाहर लाने के लिए पिछले कई महीने से शासनिक स्तर पर कोशिशें की जा रही थी। उन्हें जेल से बाहर आने में एक एक अड़चन आ रही थी।

बिहार सरकार ने 10 अप्रैल 2023 को बिहार कारा हस्तक, 2012 के नियम-481(प) (क) में संशोधन करके उस वाक्यांश को हटा दिया, जिसमें सरकारी सेवक की हत्या को शामिल किया गया था। अब अगर सरकारी पद पर कार्यरत किसी व्यक्ति की हत्या होती है तो उसे सरकारी सेवक की हत्या नहीं बल्कि सामान्य हत्या ही मानी जायेगी।

इसपर बिहार के पूर्व डीजीपी अभयानंद का कहना है कि बिहार सरकार को इस तरह के फैसले लेने से पहले एक आंतरिक कमीशन बैठाने की जरूरत थी। जेल मैन्युअल हटाने से पहले कुछ पार्टियों के नेता, कुछ अधिकारी और कुछ वरिष्ठ लोगों की राय ली जानी चाहिए थी। तर्क यह दिया जा रहा है कि कई राज्यों में उम्रकैद की सजा काट रहे बंदियों को परिहार दिया गया है। लेकिन अन्य राज्यों और यहां की परिस्थितियों में अंतर है। यहां जिसे परिहार दिया गया है उसपर एक आईएएस अधिकारी की हत्या का आरोप लगा और उसे सजा मिली। इसे सामान्य घटना से तुलना नहीं की जानी चाहिए।

बीजेपी नेता सुशील कुमार मोदी कहते हैं कि, अगर बिहार सरकार ने आम और खास में अंतर मिटा दिया है तो यह बहुत ही बचकानी सोच है। इससे कोई भी व्यक्ति किसी अधिकारी को निशाना बनाने लगेगा। इससे तो सिविल वर्करों या सरकारी सर्विस से जुड़े लोगों के प्रति नफरत की भावना बढ़ सकती है। फिर कोई भी सिविल अधिकारी बिहार में रिस्क लेकर क्यों काम करना चाहेगा। वोट बैंक के लिए बिहार सरकार द्वारा अपराधियों का इस तरह महिमामंडन नहीं करना चाहिए।

कितनी बड़ी बिडम्बना है कि यह सब नीतीश कुमार के शासनकाल में हो रहा है जिन्हें बिहार में सुशासन बाबू के नाम से भी जाना जाता है।  इस बार नीतीश कुमार नया सोशल इंजीनियरिंग गढ़ने के चक्कर में नये-नये करामात कर रहे है। आज आप अपराधी को अपने सियासी फायदे के लिए जेल से रिहा कर रहे है। कल कोई और भी कर सकता है।

जब डीएम की हत्या के आरोप में उम्र कैद की सजा काट रहे आनंद मोहन नीतीश कुमार के लिए इतना महत्वपूर्ण हो सकता है, तो कल किसी सत्तारूढ़ पार्टी के लिए जेल में बंद सजायाफ्ता दुर्दांत अपराधी और आतंकवादी भी वोट की खातिर महत्वपूर्ण हो सकता है।  सत्ता का सुख पाने के लिए नेता जाति और जमात का ही सहारा ले रहे हैं।

यह भारत है, जहां लोकतंत्र के नाम पर लोक प्रतिनिधि अपने फायदे के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। यहां अपराधी को धर्म और जाति के चश्मे से देखा जाता है और अपराध को भी जस्टिफाई करने की कोशिशें की जाती है। अब आनंद मोहन के कई समर्थक यहां तक कहने लगे हैं कि इन्होंने कोई अपराध नहीं किया था। राजनीतिक साजिश में इन्हें फंसाया गया है।

नीतीश कुमार का यह फैसला स्वच्छ लोकतंत्र के लिए बदनुमा दाग साबित होने जैसा है। सियासत में अपराधियों का महिमामंडन और खैर खिदमत इस तरह मत कीजिए कि लिए आने वाली पीढ़ियों को इसकी कीमत चुकानी पड़े।

जाति की धूरी पर केन्द्रीत बिहार की राजनीति में बदलाव दूर-दूर तक इसीलिए नजर नहीं आती क्योंकि बिहार बदलाव के लिए तैयार नहीं है। अगर आप बिहार में अपराधियों के रिहा होने पर गौरवान्वित महसूस करते हैं तो आप अपनी पीढ़ियों को बर्बादी की राह पर धकेल रहे हैं।

जहां देश के महानगरों में हर तीसरा मजदूर बिहार का है, लेकिन इसपर बिहार के नेताओं को शर्म तक नहीं आती। आज बिहार मे कोई बड़ा इनवेस्टर नहीं जाता, आज बिहार में शिक्षा का स्तर लगातार गिरता जा रहा है, रोजगार सृजन पर बिहार सरकार का कोई रोडमैप नहीं दिखता, लेकिन यह मुद्दा नहीं है। बिहार में अपराध एवं लूट की घटनाओं में लगातार वृद्धि हो रही है, नेताओं के लिए यह भी मुद्दा नहीं है। लेकिन सत्ता पर पकड़ कम ना हो, उनकी जगह पर कोई दूसरा नहीं आ जाये… बिहार के नेताओं के सामने यह सबसे बड़ा मुद्दा है।

अब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से बिहार के विकास की उम्मीदें बेमानी लगने लगी है। अब तो लोग यहां तक कहने लगे हैं कि नीतीश कुमार अपने राजनीतिक पतन की पटकथा खुद ही लिख रहे हैं। जेल मैन्युअल में बदलाव करके एक आईएएस हत्यारोपी को जेल से रिहाई करवाना नीतीश कुमार की सरकार पर कलंक लगने जैसा है।

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