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नालंदा विश्वविद्यालय : शिक्षा का गौरवशाली केन्द्र जो चरमपंथ की भेंट चढ़ गया – भाग-1

ह्वेनसांग ने एक वर्णन में लिखा है कि-” एक द्वार महाविद्यालय में खुलता है, जो मध्य के आठ भवनों से अलग खड़ा था। उसके अत्यधिक सुसज्जित मीनार और परियों की भांति चोटी वाली पहाड़ियों की तरह के स्तंभों को इकट्ठा बना दिया गया था। वेधशाला तो धुंध में छुपी हुई है और ऊपर वाले कमरें आकाश से भी ऊंचे हैं।

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यह दुनिया का प्रथम आवासीय विश्वविद्यालय जो विश्व का दूसरा सबसे प्राचीन विश्वविद्यालयों में तक्षशिला के बाद यही था। इसकी खुदाई अभीतक वर्तमान में मात्र डेढ़ लाख वर्ग फीट में ही हुई है, जिसमें विश्वविद्यालय के इतने सारे बहुमूल्य अवशेष अभी हमलोगों को देखने को मिलते हैं। पुराविदों का मानना है कि अभी इस विश्वविद्यालय की मात्र 10% हिस्से की ही खुदाई हो पाई है।

नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना चीनी यात्री वह ह्वेनसांग के अनुसार शक्रादित जो संभवत कुमार गुप्त (414 ई. से 455 ई.) और बुद्ध गुप्त (475 ई. से 500) ई. तक के बीच की गई थी। इस विश्वविद्यालय की भव्यता, सुंदरता और अलंकरण विश्व में अनोखा था। इसे चीनी यात्री भी प्रशंसा करते नहीं थकते। सम्राट हर्षवर्धन ने ((590ई. से 647 ई.) के बीच इस विश्वविद्यालय के प्रवेश द्वार के पास विशाल “विहार- स्तंभ” बनवाया था, जो करीब 100 फीट ऊंचा था और वह पीतल की परत से ढका शोभायमान था।

पूर्व मध्यकाल में प्राप्त एक अभिलेख के अनुसार नालंदा के विशाल भवनों के बारे में इसकी भव्यता का पता चलता है। ह्वेनसांग ने अपनी यात्रा वृतांत में यहां बुद्ध की एक 80 फीट ऊंची विशाल मूर्ति का वर्णन किया है। वर्णन से यह पता चलता है कि इस विश्वविद्यालय में आठ मुख्य विशाल भवन थे, जिनमें एक “श्री विजय” सुमात्रा के राजा बाल पुत्रदेव ने बनवाया था। इस तथ्य की पुष्टि आठवीं सदी के पाल नरेश “देववपाल” के ताम्रपत्र से होती है।

ये सभी भवन पंक्तिबद्ध बनवाए गए थे। ह्वेनसांग ने छः विशाल महाविहारों के बारे में भी लिखा है,जिनमें पांच गुप्त राजाओं के द्वारा तथा एक सम्राट हर्षवर्धन के द्वारा बनवाये जाने का वर्णन है। इतना ही नहीं इन इमारतों के अलावा विशाल पुस्तकालय, मंदिर,चैत्य एवं प्रशासनिक भवनों का भी जिक्र किया गया है।

ह्वेनसांग ने विहारों के पास निर्मल नीले पानी का नाला बहता था, जिसमें खिले हुए नीलकमल के पुष्पों से नाला सुन्दर लगता था। मंदिरों के भीतर सुंदर वृक्ष लगे थे,जो चमकदार सुनहरे पुष्पों से लदे थे। बाहर आम के बागों में कुटियाएं सुशोभित थीं। यह विश्वविद्यालय चारों तरफ से विशाल दीवारों से घिरा था।

ह्वेनसांग ने एक वर्णन में लिखा है कि-” एक द्वार महाविद्यालय में खुलता है, जो मध्य के आठ भवनों से अलग खड़ा था। उसके अत्यधिक सुसज्जित मीनार और परियों की भांति चोटी वाली पहाड़ियों की तरह के स्तंभों को इकट्ठा बना दिया गया था। वेधशाला तो धुंध में छुपी हुई है और ऊपर वाले कमरें आकाश से भी ऊंचे हैं।

बाहर के भवन जिनमें पुरोहितों के स्थान हैं वे चार-चार मंजिलों के हैं। मंजिलों के बड़े-बड़े प्रक्षेप हैं। रंगदार गुफाएं हैं। मुलम्मेंदार एवं लालमणि जैसे स्तंभ हैं। अत्यधिक सुसज्जित चबुतरे हैं। छतों में चमकीले पत्थर लगे हैं, जिनमें से प्रकाश अन्य रंगों में परावर्तित होते हैं।” यह था हमारा वैभवशाली नालंदा।

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