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विलुप्ति के कगार पर बिहार का राजकीय पक्षी “गौरैया”

आधुनिक बनावटी जीवन शैली ने प्रकृति से लोगों का मधुर संबंध और रिश्ता खत्म कर दिया है। देश के पेड़-पौधों की हरियाली,फूस और खपड़े के घर प्रायः अब पूरे देश में देखने को नहीं मिलते। यही कारण है कि देश का निरीह और बिहार का एकमात्र राजकीय पक्षी का दर्जा प्राप्त “गौरैया” आज विलुप्ति के कगार पर है।

इसकी गंभीरता को देखते हुए वर्ष 2010 में पहली बार विश्व के विभिन्न प्राकृतिक अध्ययन से जूड़ी संस्थाओं की पहल पर 20 मार्च को “विश्व गौरैया दिवस” मनाने का निर्णय लिया गया। इन संस्थाओं में नेचर फौर एवर सोसाइटी एवं बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी, कार्नेल लैब्स आफ आर्निथोलौजी (यूनाइटेड स्टेट्स आफ अमेरिका), इकोसिस एक्शन फाउंडेशन (फ्रांस) तथा एवन वाईल्ड- लाइफ ट्रस्ट शामिल हैं।

इसके बाद ब्रिटेन की “रोयाल सोसायटी आफ प्रोटेक्शन आफ बर्ड्स” ने भारत से लेकर विश्व के विभिन्न हिस्सों में अनुसंधान कर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन के आधार पर “गौरैया” को “रेड-लिस्ट” में डाला गया। फिर बाद दिल्ली ने 2012 में इसे संरक्षण देने तथा बिहार सरकार ने 2013 में “गौरैया” को संरक्षण देने की पहल शुरू करते हुए इसे “राजकीय पक्षी” घोषित किया।

इस कार्यक्रम को प्रोत्साहन देने हेतु भारतीय डाक विभाग ने भी “गौरैया” पर एक “डाक-टिकट” जारी किया था। इसकी महत्ता को प्रदर्शित करने का प्रयास कई समाजसेवी एवं प्रकृति से जुड़ी संस्थाओं ने भी करना शुरू किया। इससे लोगों के घरों में अब चिड़ियों की पुनः चह-चहाट कुछ हद तक सुनने को मिलने लगी है। इसे लेकर कई सामाजिक संस्थाएं अब लगातार जागरुकता पैदा करने में भी जुटना आरंभ कर दिया है।

बिहार में प्रत्येक वर्ष वन विभाग की ओर से “गौरैया दिवस” पर औपचारिक रूप में विभाग की ओर से अब छोटे बड़े कार्यक्रम समायोजित करने की प्रथा शुरु की गई है। इस कार्यक्रम के माध्यम से विभाग लोगों से इसे संरक्षण देने की अपील करती है।

आधुनिक काल में मोबाइल टावरों की बढ़ती संख्या और उनके विकिरण से पक्षियों पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव,कीट नाशक दवाओं का धड़ल्ले से किसानों द्वारा फसलों पर किए गए जा रहे प्रयोग, बाजार के पैकेट बंद अनाजों का ही व्यक्ति द्वारा किये जा रहे इस्तेमाल, खाना-बदोश व बहेलियों द्वारा पक्षियों का शिकार करने आदि कारण पक्षियों की चह-चाहट को खत्म करने में कम दोषी नहीं है। अतः अब आवश्यकता है इन निरीह पक्षियों के प्रति विशेष दया-भाव रखने की और उसे संरक्षण देने की।

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