Tuesday, November 4, 2025
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“प्रेमचंद और हमारा समय” विषय पर प्रगतिशील लेखक संघ द्वारा गोष्ठी का आयोजन

प्रेमचंद अपनी कहानी और उपन्यासों में समाज के जो वंचित वर्ग थे, उसको नायक बनाने का काम किया। उन्होंने स्त्री को सबसे गरीब तथा समाज के उपेक्षित वर्ग को अपनी कहानी और उपन्यासों में मुख्य पात्र बनाया।

‘प्रेमचंद और हमारा समय’ विषय पर प्रगतिशील लेखक संघ गया की ओर से एक भव्य विचार गोष्ठी सह हिंदी,उर्दू और मगही भाषा में कविता पाठ का आयोजन हरिदास सेमिनरी हाई स्कूल के सभागार में आयोजित किया गया,जिसकी अध्यक्षता प्रगति लेखक संघ के जिला अध्यक्ष एवं वरीय अधिवक्ता कृष्ण कुमार ने की। उन्होंने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि “प्रेमचंद” के साहित्य में किसान,मजदूर, दलित और स्त्री है,जिन्हें वर्तमान समय में सत्ता के द्वारा हासिये पर धकेल दिया गया है और उसके साथ अमानवीय व्यवहार किया जा रहा है। सत्ता प्रायोजित शासन में सांप्रदायिकता की लहर भयावह है।

गोष्ठी में विषय प्रवेश संघ के जिला सचिव परमाणु कुमार ने किया। मुख्य वक्ता प्रोफेसर अली इमाम ने प्रेमचंद के साहित्य को प्रतिरोध का साहित्य और जनता का साहित्य बताया। उन्होंने बताया कि प्रेमचंद अपने समय के सभी तरह की असमानताओं को अपनी रचनाओं में चित्रित किया। वे “सोजे-वतन” नामक पत्रिका के संपादक थे,जिसे अंग्रेजों ने जब्त कर लिया था। वे स्वतंत्रता संग्राम में सैनिक साहित्यकार भी थे, परन्तु कभी वे जेल नहीं गए। इसका उन्हें मलाल था। लेकिन उनकी पत्नी “शिवरानी देवी” ने जेल जाकर उनके अरमान को पूरा कर दिया।

“जन-संस्कृति मंच” के संरक्षक मुरारी शर्मा ने अपने उद्वोधन में कहा कि अब समय आ गया है,सब कुछ स्पष्ट लिखने और बोलने की। वहीं राजीव रंजन ने कहा कि प्रेमचंद अपने लेखों के माध्यम से अपने युग की समस्याओं को स्पष्ट करते रहे, जिसमें भविष्य की योजनाएं भी समाहित थी।
संघ के उप सचिव सांडिल्य ‘सौरभ’ ने गोदान को केंद्र में रखकर वर्तमान की समस्याओं को पहचानने व राजनीतिक चरित्र को पकड़ने की समझ विकसित करने को कहा। वहीं सीताराम शर्मा ने आज सबसे ज्यादा जरूरत पत्रकारिता में सुधार की है बताया। उन्होंने कहा कि हमें जन साहित्य और जन पत्रकारिता करनी होगी तथा हमें प्रेमचंद साहित्य की ओर मुड़ना होगा।

जनवादी लेखक संघ के सचिव कृष्ण चंद्र चौधरी ने कहा कि आज के समय में जब बाजारवाद संस्कृति से सूचना तंत्र पर अपना जाल बीछा चुका है, तो हमें प्रेमचंद साहित्य की ओर मुड़ना होगा। कर्मचारी यूनियन के बड़े नेता कपिल देव प्रसाद सिन्हा ने जोर देकर कहा कि उनके साहित्य से हमें आंदोलन की योजना बनाने की प्रेरणा मिलती है। युवा लेखक महेश कुमार ने प्रेमचंद की कहानियों की चर्चा करते हुए कहा कि प्रेमचंद ऊंच-नीच और वर्ग भेद को स्पष्ट करते हुए दीखते हैं।

दूसरे सत्र की काव्य संध्या में राजीव रंजन, शंकर प्रसाद, पूनम कुमार, ट्विंकल रक्षिता, अरुण कुमार, डॉक्टर अन्नपूर्णा श्रीवास्तव, सहज कुमार, डॉक्टर कृष्ण कुमार सिंह, परमाणु कुमार, कृष्ण कुमार, कृष्ण चंद्र चौधरी, उत्तम कुमार,सुशील शर्मा,नंदकिशोर सिंह, सुमन विश्वकर्मा आदि ने अपनी-अपनी कविताओं का पाठ किया। काव्य संध्या का संचालन संस्था के उप सचिव शांडिल सौरभ ने किया एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉक्टर पप्पू तरुण ने किया।

कार्यक्रम में संघ के उप सचिव सुशील शर्मा ने संचालन करते हुए अपने वक्तव्य में कहा कि प्रेमचंद गंगा-यमुना तहजीब के बड़े पुरोधा थे। उनकी लेखनी आज भी राजनीति के आगे जलती हुई मशाल की तरह राह दिखा रही है। प्रेमचंद भारतीय साहित्य विधा में एक उद्भट लेखक थे, उन्होंने उर्दू और हिंदी पर समान रूप से लेखन किए।

प्रेमचंद अपनी कहानी और उपन्यासों में समाज के जो वंचित वर्ग थे, उसको नायक बनाने का काम किया। उन्होंने स्त्री को सबसे गरीब तथा समाज के उपेक्षित वर्ग को अपनी कहानी और उपन्यासों में मुख्य पात्र बनाया। इसका मुख्य श्रेय प्रेमचंद को ही जाता है। यही कारण है कि विश्व में जहां-जहां भी हिंदी की पढा़ई होती है,वहां प्रेमचंद की ही पाठ को पढा़या जाता है। इस प्रकार प्रेमचंद 20वीं सदी में मध्य एशिया के महान् लेखक साबित हुए।

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