November 21, 2024

News Review

Hindi News Review Website

पीताम्बरी शक्ति पीठ: आस्था और सद्भाव का केन्द्र

1 min read

पूर्वी दिल्ली के खुरेजी में माता पीताम्बरी देवी का एक मंदिर है, जो पीताम्बरी शक्ति पीठ के रूप में विख्यात है। माता पीताम्बरी की प्रतिमा से कई क्विदंतियां जुड़ी हुई हैं। यह प्रतिमा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि भारत विभाजन की त्रासदी को भी बयां करती है। यह प्रतिमा धार्मिक और ऐतिहासिक विरासत के रूप में है।

यह प्रतिमा मुल्तान के एक मंदिर में स्थापित थी। जब भारत-पाकिस्तान का विभाजन हुआ तो भारी संख्या में हिन्दू वहां से पलायन कर गये। पाकिस्तान इस्लामिक राष्ट्र घोषित हो गया। वहां साम्प्रदायिक हिंसा की घटनाएं बढ़ने लगी। पाकिस्तान में कट्टरपंथियों के निशाने पर हिन्दू और हिन्दू मंदिर आ गये। मंदिर, मूर्तियां और हिन्दू प्रतीकें नष्ट की जाने लगी। कट्टरपंथियों ने वहां के हिन्दुओं को पाकिस्तान छोड़ने के लिए बाध्य कर दिया। वहां धार्मिक आधार पर हत्याएं और हिंसा बढ़़ गई।

तब एक श्रद्धालू ने अपनी जान पर खेलकर माता पीताम्बरी देवी की मूर्ति को एक संदूक में बंद कर मुलतान (पाकिस्तान) से लेकर भारत आया। उन्होंने उस मूर्ति को आचार्य केशव देव के पिता को सौंप दिया।

मूर्ति को सौंपते समय उस श्रद्धालू ने कहा था कि यह प्रतिमा माता पीताम्बरी देवी के रूप में प्रसिद्ध है। यह सिद्धि की देवी है, सिद्धिदात्री है और इनकी पूजा करने से हर मनोकामना पूरी होती है।

आचार्य केशव देव के पिता ने माता पीताम्बरी देवी की प्रतिमा को विधिसम्मत अनुष्ठान के साथ खुरेजी स्थित अपने आश्रम में स्थापित कर दिया। प्रतिमा की स्थापना के बाद आश्रम के आस-पास धार्मिक सद्भाव का वातावरण तैयार हुआ। दूर-दूर से लोग वहंा आकर माता पीताम्बरी देवी की पूजा करने लगे।

वर्तमान में पीताम्बरी शक्ति पीठ के पीठाधीश्वर आचार्य डॉ. विक्रमादित्य कहते हैं, माता पीताम्बरी देवी की मूर्ति लगभग 500 वर्ष पुरानी है। इनकी पूजा करने से शक्ति और आत्म चेतना जागृत होती है। माता पीताम्बरी देवी के प्रति श्रद्धालुओं की अटूट आस्था है। इस मंदिर में श्रद्धालू मनोकामना की इच्छा लेकर पूजा अर्चना करने आते हैं। यह प्रतिमा आस्था और श्रद्धा का प्रतीक है।

आचार्य डॉ. विक्रमादित्य आगे बताते हैं कि, पूरी दिल्ली में यह एक मात्र. मंदिर है जहां प्रतिदिन आठ घंटे यज्ञ किया जाता है। मंदिर के प्रांगण में वैदिक अनुष्ठान, हवन और मंत्रोच्चार की पूरी व्यवस्था बनायी गई है, ताकि श्रद्धालुओं को किसी तरह की परेशानियों का सामना नहीं करना पड़े। इस मंदिर मे प्रतिदिन दूर-दूर से लोग यज्ञ में शामिल होने और अनुष्ठान करने के लिए आते हैं। यह मंदिर धार्मिक-सांस्कृतिक उद्देश्यों को पूरा के लिए सदैव तत्पर है।

मंदिर में नियमित रूप से विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। दैवीय अनुष्ठान, सुंदरकांड, वैदिक मंत्रोच्चार एवं धार्मिक उत्सवों मंें श्रद्धालू बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं।

यह मंदिर गरीबों की सेवा के लिए भी जाना जाता है। आचार्य डॉ. विक्रमादित्य गरीब और जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। उनके सांन्निध्य में समय-समय पर जरूरतमंदों के बीच भोजन-कपड़े एवं अन्य आवश्यक सामग्रियां वितरित की जाती है। इस नेक कार्य में आचार्य डॉ. विक्रमादित्य का साथ देने के लिए उनका परिवार भी सदैव तैयार रहता है।

पीठाधीश्वर आचार्य डॉ. विक्रमादित्य कहते हैं कि, परहित सेवा परम धर्म है। मनुष्य को हर जीवों के प्रति मानवता और दया की भावना रखनी चाहिए। हमारी संस्कृति हमें वसुधैव कुटूम्बकम की प्रेरणा देती है। निःस्वार्थ सेवा में जगत का कल्याण निहित है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *