विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में यज्ञ के महत्व को बताया गया है। आयुर्वेद में भी अग्निहोत्र का वर्णन है। वातावरण शुद्ध होगा तो बीमारियां कम होंगी। मूल रूप से देखा जाये तो हवन उपचार एवं वातावरण शुद्धिकरण की एक प्रक्रिया है, जिसका ठोस धाार्मिक और वैज्ञानिक आधार है।
- ब्रिटिश वैज्ञानिक डॉ. हॉफकिन ने अपनी शोध में उल्लेख किया है कि शुद्ध घी, चीनी और सुगंधित पेड़ों की लकड़ियों को एक साथ जलाने से जो धुआं निकलता है उससे वातावरण के हानिकारक कीट मर जाते हैं।
- जंगल में पाये जाने वाले विशेष प्रकार के पेड़ों की सुखी लकड़ियां जलाने पर उससे निकलने वाले धुंएं से वातावरण में मौजूद संचरण रोग फैलाने वाले जीवाणु-विषाणु बेअसर हो जाते हैं। – जर्मन वैज्ञानिक प्रो. टिलवर्ड
सनातन संस्कृति में हर धार्मिक कर्मकांडों का विशेष महत्व है। सनातन धर्म में पूजा विधानों के पीछें जन कल्याण की भावना निहित है। पूजा समापन के पश्चात हवन की परम्परा है और यह अनादिकाल से चली आ रही है। हवन अर्थात अग्निहोत्र के बाद ही पूजा की पूर्णता मानी जाती है।
हमारे ऋषि मुनियों ने हवन करने की परम्परा इसीलिए भी बनायी ताकि पर्यावरण की शुद्धता बरकरार रहे। हवन सामग्री में औषधियुक्त कई जड़ी बुटियां होती है जिसके जलने से पर्यावरण में विचरण करने वाले हानिकारक जीवाणु-विषाणु मर जाते हैं।
हवन में उपयोग में लायी जाने वाली सामग्रियों में शुद्ध घी, जड़ी बुटियां, सुगंधित वृक्षों की लकड़ियां एवं कई धुम्रित चीजों को शामिल की जाती है। हवन के दौरान उठने वाले धुएं से आसपास के वातावरण शुद्ध हो जाते हैं। हवन का मुख्य उद्देश्य होता है नकारात्मक शक्तियों को घर से दूर करना, घर की पवित्रता को बनाये रखना है लेकिन इससे आस-पास के वातावरण की भी शुद्धि हो जाती है।
अपने घरों की शुद्धता के लिए सप्ताह में एक बार जरूर हवन किया जाना चाहिए। ऐसा करने से आस-पास का वातावरण विषाणु से मुक्त रहता है।
हमारे धार्मिक ग्रंथों में कई तरह के यज्ञ बताये गये हैं। अलग-अलग मनोकामना की प्राप्ति के लिए भिन्न-भिन्न विधियों से यज्ञ किये जाते हैं, लेकिन इन सभी का उद्देश्य मानव कल्याण की कामना है, परोपकार की भावना है।
कोई भी व्यक्ति पूजा पाठ, हवन अपनी मनोकामनाओं की प्राप्ति के लिए करता है लेकिन इसका प्रभाव व्यापक है। व्यक्ति विशेष द्वारा किया जाने वाला यह कार्य दूसरों को भी आरोग्य बनाता है। वह पर्यावरण की शुद्धिकरण मेें सहभागी बनता है।
कई वैज्ञानिक शोधों से भी स्पष्ट हो चुका है कि हवन के दौरान उच्चारण किये जाने वाले मंत्र और यज्ञ से प्रज्जवलित होने वाली अग्नि से प्रकृति को लाभ पहुंचती है। हवन में आहुत की जाने वाली सामग्रियां वातावरण मे फैले विषाणु और जीवाणु को नष्ट कर देती है।
अग्निहोत्र का धुआं प्रदूषण मिटाने में भी सहायक है। धुएं के रूप में निकलने वाली सुगंधित उष्मा मन को शांति पहुंचाती है। तनाव से मुक्ति मिलती है। यज्ञ मनुष्य के सात्विक जीवन के लिए शुद्ध परिवेश निर्मित करता है।
जिस स्थान पर हवन किया जाता है वहां के लोगों पर भी इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। हवन मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है। यज्ञ मनुष्य को स्वस्थ जीवन प्रदान करता है। जहां पर नित्य हवन होता है वहां पर लोग बीमार कम होते हैं। अग्निहोत्र सनातन धर्म की श्रेष्ठ धामिक विधि है। यज्ञ विज्ञान के मानदंड पर भी खरा उतरता है और इससे होने वाले लाभ पर अभी भी शोध जारी हैं।
प्रदूषित वातावरण में अगर हम लम्बे समय तक रहते हैं तो हमारा शरीर जल्दी थक जाता है। हमारा शरीर बार-बार बीमार पड़ जाता है। कई बार तो शरीर को गभीर बीमारियां घेर लेती है।
महानगरों में प्रदूषण के कारण बीमारियां बढ़ रही है। प्रदूषित वायु और जल के सेवन से मनुष्य बीमार पड़ता है। हवा और पानी के दूषित होने से मनुष्य को 150 प्रकार की बीमारियां होती है। कैंसर एवं कई गंभीर बीमारियों का कारण प्रदूषण भी है।
औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थों से जल और वायु दोनों प्रदूषित हो रहा है। ऐसे में हम छोटे-छोटे प्रयासों से अपने आस-पास के वातावरण को शुद्ध रख सकते हैं।
अगर हम सामूहिक स्तर पर सप्ताह में एक बार किसी मंदिर के प्रांगन में या खुले आसमान के नीचे हवन करते हैं तो आस-पास का वातावरण बहुत हद तक प्रदूषण से मुक्त हो जाता है। वैज्ञानिक शाोध में यह साबित हो चुके हैं कि हवन से 84 प्रतिशत वायुमंडल में उत्पन्न हानिकारक विषाणु नष्ट हो जाते हैं।
हवन बहुत ही सरल प्रक्रिया है जबकि इसके प्रभाव व्यापक हैं। धार्मिक दृष्टिकोण से देखें तो अग्निहोत्र के माध्यम से नकारात्मक उर्जा और बुरी आत्माओं के प्रभाव को भी खत्म किया जाता है। जबकि हवन से घर के वास्तु दोष भी दूर हो जाते हैं।
विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में यज्ञ के महत्व को बताया गया है। आयुर्वेद में भी अग्निहोत्र का वर्णन है। अगर वातावरण शुद्ध होगा तो बीमारियां कम होंगी। मूल रूप से देखा जाये तो हवन उपचार एवं वातावरण शुद्धिकरण की एक प्रक्रिया है, जिसका ठोस धाार्मिक एवं वैज्ञानिक आधार है।
जिस स्थान पर लगातार हवन होते हैं वहां पर रोगजनक जीवों-परजीवों की वृंिद्ध रूक जाती है। मनुष्य के शरीर का रक्त शुद्ध हो जाता है। शरीर की ग्रंथियों एवं कोशिकाओं को नयी ऊर्जा मिलती है। यह त्वचा को पुनर्जीवित करता है और रोग संचारित जीवों की वृद्धि को रोकता है।
हवन मानव जीवन के लिए पौष्टिक और औषधीय परिवेश निर्मित करता है। कुल मिलाकर कहा जाये तो मनुष्य हवन के माध्यम से सनातन परम्परा का निर्वाह करते हुए अपने आस-पास का वातावरण शुद्ध कर सकता है।




