किसी भी राजनीतिक दल के लिए सबसे बड़ी पूंजी है चर्चा में बने रहना। चुनाव आयोग के खिलाफ संसद से सड़क तक मोर्चा खोलने के कारण विपक्ष पिछले दो महीने से सुर्खियों में है। विपक्ष को मालूम है कि सुर्खियां पाने और जनता को आकर्षित करने के लिए एक राष्ट्रीय मुद्दा को मीडिया के समक्ष उठाना जरूरी है। बिहार में चुनाव आयोग द्वारा करवाये गये स्पेशल इंटेसिव रिवीजन को विपक्ष एक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहा है।
‘वोट अधिकार यात्रा’ बिहार में विपक्ष के लिए केवल एक आंदोलन नहीं, बल्कि एक रणनीतिक अवसर है। यदि विपक्ष इसे मजबूती से आगे बढ़ाता है, तो यह यात्रा न केवल बिहार बल्कि राष्ट्रीय राजनीति के लिए भी महत्वपूर्ण साबित हो सकती है।बिहार की राजनीति हमेशा से राष्ट्रीय स्तर पर खास महत्व रखती आई है। यहां से उठी आवाज़ें केवल राज्य तक सीमित नहीं रहतीं, बल्कि पूरे देश की राजनीति को दिशा देती हैं। इसमें दोमत नहीं कि “वोटर अधिकार यात्रा” ने विपक्ष की एकजुटता के लिए एक अवसर प्रदान किया है।
राजनीति में आंदोलन जनता को जोड़ते हैं, लेकिन रणनीति ही उन्हें चुनावी सफलता में बदलती है। वोटर अधिकार यात्रा विपक्ष के लिए यही काम कर रही है। यह सिर्फ़ चुनाव आयोग के खिलाफ नाराज़गी जताने का मंच नहीं है, बल्कि केन्द्र और एनडीए गठबंधन राज्य सत्ता के खिलाफ वैचारिक और संगठनात्मक तैयारी का अवसर भी है।
17 अगस्त 2025 से राहुल गांधी ने बिहार में ‘वोटर अधिकार यात्रा’ शुरू की, जो 16 दिनों में लगभग 1300 किलोमीटर, 25 जिलों से होकर होकर 01 सितम्बर को पटना में समाप्त होगी। वोटर अधिकार यात्रा विपक्षी दलों को एक साझा मंच प्रदान कर रही है। राजद, कांग्रेस, वामपंथी दल और अन्य छोटे क्षेत्रीय दल का यह साझा मंच मतदाताओं के बीच सकारात्मक असर डाल सकता है। इस यात्रा के साथ ही बिहार का विपक्ष चुनावी समीकरण बनाने में जूट गया।
इस वर्ष के अंत में बिहार में विधान सभा चुनाव होना है। जातिगत वोट के सहारे चुनावी मैदान में उतरने वाले नेता हमेशा ऐसे मुद्दों की तलाश में रहते हैं जिसके माध्यम से वह जनता के करीब जा सके। वोटर अधिकार यात्रा ऐसे नेताओं के लिए संजीवनी के रूप में हैं।
24 जून 2025 को चुनाव आयोग ने बिहार में विशेष इंटेंसिव रिवीजन की घोषणा की, जिसके तहत सभी मतदाताओं को फिर से सूची में शामिल करने या दस्तावेज़ जमा करने को कहा गया। जिसमें आधार, राशन कार्ड और वोटर आईडी जैसी सामान्य और व्यापक रूप से उपलब्ध दस्तावेज़ों को मान्य दस्तावेजों में शामिल नहीं किया गया था। इससे 65 लाख से अधिक प्रवासी और दस्तावेज़ों की कमी वाले बिहार के लोग मतदाता सूची से बाहर हो गये। हालांकि दोबारा उन्हें मतदाता सूची में नाम जुुड़वाने का मौका दिया गया है। बिहार में लगभग 55 प्रतिशत मतदाता 40 वर्ष से कम उम्र के हैं।
भारत में चुनाव आयोग को लोकतंत्र का संवैधानिक संरक्षक कहा जाता है। वोटर अधिकार यात्रा के माध्यम से विपक्ष बिहार की जनता को यह संदेश देना चाहती है कि चुनाव आयोग गरीबों, दलितों, वंचितों का चुनावी अधिकार छीनना चाहती है। उन्हेें हर सरकारी सुविधाओं से वंचित करना चाहती है। राहुल गांधी कई बार कह चुके हैं कि चुनाव आयोग केन्द्र सरकार के इशारे पर काम कर रहा है। विपक्ष अपने आपको जनता का बड़ा शुभचिंतक के रूप में पेश कर रहा है। जबकि, यह पूरी लड़ाई राजनीतिक है।
किसी भी राजनीतिक दल के लिए सबसे बड़ी पूंजी है चर्चा में बने रहना। चुनाव आयोग के खिलाफ संसद से सड़क तक मोर्चा खोलने के कारण विपक्ष पिछले दो महीने से सुर्खियों में है। विपक्ष को मालूम है कि सुर्खियां पाने और जनता को आकर्षित करने के लिए एक राष्ट्रीय मुद्दा को मीडिया के समक्ष उठाना जरूरी है। बिहार में चुनाव आयोग द्वारा करवाये गये स्पेशल इंटेसिव रिवीजन को विपक्ष एक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहा है।
जबकि, चुनाव आयोग ने प्रेस कांफ्रेंस में दावा किया कि ‘सर’ एक कानूनी और पारदर्शी प्रक्रिया है। विपक्ष द्वारा चुनाव आयोग पर लगाये गये आरोप निराधार है। सीईसी ज्ञानेश कुमार ने कहा कि लाखों कर्मियों और एजेंटों की निगरानी में ‘वोट चोरी’ असंभव है।
बहरहाल, इस यात्रा में केन्द्र और चुनाव आयोग के विरोध को लेकर विपक्ष के नेता मर्यादा की सीमाओं को भी लांघ रहे हैं। नेताओं को राजनीतिक शूचिता का ख्याल रखने की जरूरत है। क्योंकि जनता सबकुछ देख रही है। वोटर अधिकार यात्रा के नाम पर विपक्ष को रणनीतिक अवसर जरूर मिला है लेकिन इसका सही इस्तेमाल नहीं कर पाया तो इसकी कीमत भी चुकानी पड़ सकती है। बिहार विधानसभा चुनाव का परिणाम तय करेगा कि ‘सर’ के विरोध से विपक्ष को क्या हासिल हुआ।




