Tuesday, November 4, 2025
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आयुर्वेद से हो रहा मोहभंग : सीजीएचएस का विभागीय फैसला मरीजों के हित में नहीं

यदि मरीज गंभीर बीमारी जैसे मधुमेह, रक्तचाप और कमर दर्द सहित कई जटिल बीमारियों से ग्रसित है तो वह ऐलोपैथी चिकित्सा से इलाज बार बार करा सकता है परन्तु प्राकृतिक चिकित्सा, योग एवं आयुर्वेद से केवल 6 माह में एक बार। 

केन्द्र में मोदी सरकार के आने के बाद स्वास्थ्य मंत्रालय में आयुष विभाग का गठन किया गया। जिसके अंतर्गत योग और प्राकृतिक चिकित्सा एवं आयुर्वेद सिद्धा यूनानी पद्वति को शामिल किया गया। मोदी सरकार ने इसके व्यापक प्रचार-प्रसार के लिए हजारों करोड़ खर्च भी किये। सरकार के प्रयास से सार्थक परिणाम यह निकला कि लोगों में आयुष चिकित्सा के प्रति झुकाव बढ़ा। कोविड काल के दौरान लोगों में आयुर्वेद के प्रति रूझान बढ़ा है। लोग एलोपैथी चिकित्सा से हटकर आयुष चिकित्सा पद्वति का विकल्प ढूंढने लगे और आयुर्वेद पद्वति में लोग सहज महसूस करने लगे।

मोदी सरकार ने विश्व में आयुर्वेद का डंका बजवाया और आज आम से लेकर खास लोगों के जीवन का हिस्सा बन गया है। आयुष विभाग ने आयुर्वेद सिद्धा यूनानी प्राकृतिक चिकित्सा, योग में शामिल पद्वतियों को कैटैगराइज किया और संबद्ध संस्थानों को रियायतें देनी शुरू कर दी। जिसका लाभ मरीजों को भी मिलने लगा।

केन्द्र सरकार का सीजीएचएस विभाग देश के कई आयुष चिकित्सा संस्थानों को पैनलबद्ध किया। पिछले आठ सालों में देशभर में लाखों मरीजों ने इसका फायदा उठाया है। अब सीजीएचएस के आयुष विभाग के अफसर आयुर्वेद को आगे नहीं बढाना चाहते। हाल ही में सीजीएचएस के आयुष विभाग द्वारा एक गाइडलाइन जारी की गई जो आयुष चिकित्सा के मरीजों के हित में नहीं है।

सीजीएचएस के आयुष विभाग गाइडलाइन के अनुसार, सीजीएचएस लाभार्थी चाहे वो 70 साल के ही क्यों ना हो, बिना सरकारी आयुर्वेद डाक्टर के रेफेरल के अपना ईलाज करने के लिए किसी भी आयुर्वेद के अस्पताल में नहीं जा सकते।जबकि, अंग्रेजी अस्पताल में जाने के लिए 70 साल से बड़े व्यक्तियों को कोई रेफेरल नहीं चाहिये होता। परन्तु आयुर्वेद का इलाज करने के लिए आयुर्वेद के डाक्टर का रेफेरल जरुरी है| जिसके लिए सीजीएचएस लाभार्थी सीजीएचएस केंद्र के धक्के खाता रहता है| अभी इसी रेफेरल पद्धिति के चक्कर में कुछ डॉक्टर भ्रष्टाचार करते हुए पकडे गए हैं। एक तरफ तो हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इंस्पेक्टर राज ख़तम करने में लगे हैं दूसरी तरफ सीजीएचएस के अधिकारी अपने निजी फायदे के लिए जबरदस्ती रेफेरल सिस्टम को मरीजों पर थोप रहे हैं।

एलोपैथी ईलाज से 70 गुना सस्ते आयुर्वेद के ईलाज के तरफ लोग आकर्षित होने शुरू हो गए हैं और आजकल शुद्धि हॉस्पीटल, दलको, जीवा आयुर्वेद, तुलसी हॉस्पीटल, कैलाश आयुर्वेद संस्थान जैसे संस्थानों ने सीजीएचएस के साथ जुड़ कर आयुर्वेद में एक नई जान डाल दी है। हजारों लोग अपना ईलाज आयुर्वेद से करना चाहते हैं परन्तु सीजीएचएस का आयुष विभाग आपने निजी फायदे के लिए आयुर्वेद को ख़तम करने में लगा है।

एक तो सीजीएचएस की तरफ से समय पर आयुर्वेदिक दवाई नहीं मिलती और यदि सीजीएचएस के साथ जुड़े उपरोक्त संस्थान अपनी दवाइयां मरीजों को देते है तो भी वहां के अफसर उसमे नए नए आदेश देकर रोक लगाते रहते हैं। किसी भी अंग्रेजी अस्पताल के लिए इतनी रोक टोक नहीं है परन्तु आयुर्वेदिक संस्थानों को ही सीजीएचएस के अफसर परेशान कर रहे हैं।

यदि मरीज गंभीर बीमारी जैसे मधुमेह, रक्तचाप और कमर दर्द सहित कई जटिल बीमारियों से ग्रसित है तो वह ऐलोपैथी चिकित्सा से इलाज बार बार करा सकता है परन्तु आयुर्वेद से केवल 6 माह में एकबार। सीजीएचएस द्वारा यह भी कहा गया है कि जो मरीज एक बार आयुर्वेद से इलाज करा लेगा फिर उसे छह महीने तक आयुर्वेद से इलाज नहीं मिलेगा।

सीजीएचएस द्वारा ये भी कहा जा रहा है कि आयुष चिकित्सा के अंतर्गत एक दिन में एक मरीज दो से ज्यादा चिकित्सा लाभ नहीं ले सकते। ये भी सीजीएचएस का आयुष विभाग बताएगा न कि आयुष डाक्टर जो मरीज का इलाज कर रहा है। जैसे आयुर्वेद में मरीज एक दिन में केवल 2 ट्रीटमेंट ही ले सकता है। आयुर्वेद में केवल स्नेहन या कोई और एक इलाज।

एलोपैथी चिकित्सा के लिए ऐसी कोई बाध्यता नहीं है| क्या एलोपैथी डाक्टर को कहा जा सकता है की आप 3 दवाई से ज्यादा नहीं लिख सकते, चाहे मरीज को कोई भी बीमारी हो। कई सवाल यही पर खड़ा होते हैं कि क्या सीजीएचएस आयुर्वेद के मरीजों को इन चिकित्साओं से हटा कर एलोपैथी चिकित्सा के पास भेजने को आतुर है?

एक तरफ मोदी सरकार आयुष के प्रचार-प्रसार के लिए हजारों करोड़ खर्च कर चुकी है। वहीं दूसरी तरफ संबंध चिकित्सा संस्थानों और मरीजों पर नये नियम थोपे गये हैंं। जिससे आने वाले समय में मरीजों को कई असुविधाओं का सामना करना पड़ सकता है। या यूं कहें कि इलाज नहीं मिल पाने के कारण उनका योग और आयुष के प्रति मोहभंग हो सकता है और वह पुनः मजबूरीवश एलोपैथी चिकित्सा के प्रति रूख कर सकते हैं।

स्पष्ट तौर पर कहें तो मोदी सरकार के सपनो को पलीता स्वास्थ्य मंत्रालय के सीजीएचएस में बैठे कुछ लोग ही लगा रहे हैं। वह आयुर्वेद के प्रसार में नये-नये अंकुश लगा रहे हैं। पिछले आठ सालों में जिसके उत्थान को लेकर केन्द्र सरकार ने कोई कसर ना छोड़ी हो, आज सीजीएचएस के विभागीय फैसलों की वजह सरकार की नीतियां पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

बहरहाल, अगर विभागीय स्तर पर यह खेल चल रहा है तो केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री एवं केन्द्रीय आयुष मंत्री को इसपर त्वरित एक्शन लेना चाहिए। ताकि डैमेज को कंट्रोल किया जा सके। क्योंकि अगर ऐसा कुछ भी होता है तो यह विभाग की बदनामी नहीं है, मंत्रलाय की बदनामी नहीं है। यह सीधे-सीधे मोदी सरकार की नीतियों की असफलता मानी जायेगी। क्योंकि आयुर्वेद को जन-जन तक पहुंचाना मोदी सरकार के महत्वपूर्ण एजेंडे में शामिल है।

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