भारत में लूट और मानवता को शर्मसार करने वाला रहा है मुस्लिम शासकों का इतिहास
1 min readभारत में इस्लामों द्वारा लूट का इतिहास मानवता को शर्मसार करने वाला रहा है। लूट का इतिहास सर्वप्रथम हम कुछ वर्षों तक सीमा के पार से आये हमलावर हमहमूद गजनवी से आरंभ करते हैं। महमूद गजनबी ने सर्वप्रथम अपनी सेना लेकर आक्रमण किया और निकटतम राजा को लड़ाई में पराजित कर उसे जागीरदार बना दिया। फिर उसने भारत में और आगे बढ़कर पैर पसारने के लिए उसे मित्र एवं केंद्र बनाया। इसी सिलसिला को अपनाकर उसने उत्तर भारत के मैदानी भागों में भी धीरे-धीरे इस्लामी राज्य का विस्तार किया। यह सिलसिला सैकड़ों साल तक चलता रहा और हमारा देश मुस्लिम शासकों का चारागाह बनता गया।
“इस प्रकार हमारे सीमांत प्रदेश प्रतिवर्ष घटते चले गए और इस्लामी राज्य उत्तर भारत के मैदानी भागों में एवं भीतर फैलते गये। यह प्रक्रिया सैकड़ो वर्षों तक चलती रही।”इस तथ्य की पुष्टि-“भारत का सैन्य इतिहास” पेज-33-34 पुस्तक में की गई है। महमूद गजनवी मध्य अफगानिस्तान के गजनी राजवंश का शासक था,जो तुर्क मूल का था। उसने सबसे पहला हमला भारत पर 1001 ईस्वी में किया। फिर वह सोमनाथ को लूटने के लिए अपना इरादा बनाया। तब उसने भारत पर बार-बार हमला करना और तबाही मचाना शुरू कर दिया। इसका ज्वलंत उदाहरण उसके द्वारा सोमनाथ, मथुरा, कांगड़ा और ज्वालामुखी के मंदिरों को नष्ट करना है। इसी कारण वह मूर्ति-भंजक भी कहलाया। वह सुबुक्तगीन का पुत्र था तथा उसकी माँ इरानी कुल की थी। उसका जन्म 2 नवंबर 971 और मृत्यु 30 अप्रैल 1030 में हुआ।
उसने सर्वप्रथम हिंदू शासक जयपाल पर चढाई की और उसे हराया। स्वाभिमानी शासक जयपाल ने उसके द्वारा हारे जाने से लज्जित होकर खुद को आत्महत्या कर ली। तब उसका पुत्र आनंदपाल उत्तराधिकारी बना। फिर 1005 ईस्वी में महमूद ने भाटिया पर और 1006 ईस्वी में मुल्तान पर हमला किया। इसी दौरान आनंदपाल ने भी उस पर हमला किया। तब 1007 ई. में भाटिया के शासक सुखपाल पर महमूद ने हमला कर उसे कुचल दिया। फिर 1011 ई.में उसने पंजाब की पहाड़ियों पर नगरकोट पर कब्जा कर आनंदपाल के अधीनस्थ अन्य साम्राज्यों पर हमला किया। फिर उसने 1013 ईस्वी में पेशावर के पास हिंदशाही राजधानी ‘वेहिंद’ की लड़ाई में उसे हरा दिया।
वर्ष 1014 ई. में थानेश्वर पर कब्जा किया।1015 ई. में कश्मीर पर कब्जा किया और 1018 ई. में उसने मथुरा पर चंद्रपाल शासक सहित उसके गठबंधन के सारे शासकों को हराया। फिर वर्ष 1021 में कन्नौज के राजा चंदेल गौड़ को हराकर कन्नौज पर कब्जा किया। इसके बाद ग्वालियर पर 1023 ई. में हमलाकर उसे भी जीत लिया। इसके बाद 1025 ई.में सोमनाथ मंदिर पर हमला कर वहां के सारे जमा धन को लूटा। फिर 17 वें आक्रमण में वह वीर योद्धा मालव दांगी जाटों द्वारा घायल कर दिये जाने के कारण वापस लौटा और बीमार होकर अपने देश में दम तोड़ दिया।
किन्तु इन हमलों ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारतीय राजपूत शासकों के आपसी द्वंद्व के कारण ही विदेशी हमलावरों ने अपनी पैर भारत में पसारी और जीत भारत में कायम की। इस प्रकार परतंत्रता की बेड़ी में भारत 1947 के पूर्व तक बना रहा। जानने योग्य एक बात यह भी है कि जब महमूद गजनी ने 1026 ईस्वी में जगत प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर पर हमला किया तब उस समय वहा 1000 ब्राह्मण पुजारी थे। मंदिर के एक कोने पर 200 मन का सोने की जंजीर लटकी थी, जिसमें सोने के घंटे बंधे हुए थे। इस मंदिर में 350 गायक-गायिकाएं और नर्तक-नर्तकियां एवं 500 नाचने-गाने वाली लड़कियां तथा 200 संगीतज्ञ थे। इतना ही नहीं इस मंदिर की मूर्ति ‘सोम-भगवान’ के लिंग पर ताजा फूल चढ़ाने के लिए ‘कश्मीर’ से फूल आते थे। 1000 मील दूर से ‘गंगा’ का पवित्र जल स्नान और ‘जलाभिषेक’ के लिए आते थे । इस मंदिर के खर्च की पूर्ति के लिए दस हजार गाँवों की जागीर लगी हुई थी।
जब सोमनाथ मंदिर पर महमूद ने चढ़ाई की थी, तो कुछ राजाओं ने उसके दल-बल को भांप कर भय से संधि कर ली थी। बहुत सी हिंदू सेनाएं अंधविश्वास में हथियार डाल दिए थे,यह सोचकर की “सोम-भगवान” अपनी रक्षा स्वयं करेंगे और गजनवी की सारी सेनाओं का संघार कर देंगे। यह सोचकर मंदिर में तैनात सभी सेनाओं ने ज्योंही हथियार डाली तो महमूद ने तलवार की धार से एक-एक को कत्ल कर दिया। फिर जब वह शहर के बीच पहुंचा तो वहां हजारों सैनिक और हिंदू लोग इस चमत्कार की प्रतीक्षा में आंखें फाड़े खड़ी रही कि अब कुछ ही पलों में बड़ा चमत्कार दिखेगा और “सोम भगवान” महमूद की सारी सेनाओं को नाश कर देंगे।
इस घटना पर एक प्रबुद्ध इतिहासकार “एब्न असीर” ने लिखा है कि ,”जब महमूद ने सोमनाथ के किले के मुख्य दरवाजा पर हमला बोला तब किले की दीवारों पर बैठे लोग इस ख्याल से प्रसन्न हो रहे थे,कि दुःसाहसी मुसलमान अभी चंद मिनटों में नष्ट हो जायेंगे।” वे मुसलमानों को बता रहे थे कि हमारा देवता तुम्हारे एक-एक को नष्ट कर देगा।
जब दूसरे दिन फिर महमूद ने मार-काट करने का आदेश सैनिकों को दिया, तो दीवारों पर के तमाशबीन और हिंदू सैनिक सभी भागने लगे। तब सिपाहियों को महमूद ने आदेश दिया कि सीढियां लगाकर ऊपर के लोगों को ऊपर ही घेर लो और उन सभी को कत्ल कर दो। फिर तीसरे दिन जब नरसंहार करने का सैनिकों को आदेश दिया तो लोग अपनी रक्षा के लिए शहर छोड़ सभी बचे-खुचे लोग सोमनाथ मंदिर में भर गए कि उनकी रक्षा भगवान स्वयं करेंगे और नरसंहार से सभी जीवित बच जायेेंगे। किंतु हुआ ठीक इसका उल्टा, महमूद ने मंदिर के द्वार पर ही बूचड़खाना खोल दिया यानी सभी को कत्ल करवा दिया। इसकी पुष्टि एच.एच. इलियट लिखित “द हिस्ट्री ऑफ इंडिया ऐज टोल्ड बाई इट्स ओन हिस्टोरियन्स” पेज-470 से होती है।
महमूद गजनी ने सैकड़ों ऊँट, घोड़े आदि पर लादकर मन्दिर के सारे हीरे-जवाहरात, सोने-चांदी और तहखाने में रखे सारे धन को साथ लेकर गया। किसी भी राजा व हिंदू लोगों ने इस पर कोई रोष प्रकट करने की हिम्मत न की और नहीं तो उस आक्रांत को सबक सिखाने के लिए आवाज ही उठायी। इस प्रकार की वारदातों से जुड़ी भारत में हिंदू राजाओं की अदूरदर्शी सोच, कायरपन और अंधविश्वासी घटनाओं की अनेको उदाहरण मिलते हैं।