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विदेशी महिलाओं में भी पितरों के प्रति आस्था जगी

पितरों को मोक्ष और हेवेन (स्वर्ग) की प्राप्ति हेतु विदेश की महिलाएं तथा पुरुष “विष्णु धाम”-‘गया जी’ पधारे और श्राद्ध कर्मकांड को संपन्न किया। यह जानकर कि भारतीय संस्कृति और परंपरा में व्यक्ति को तीन ऋणों से मुक्ति पाने का विधान है। पहला पितृ-ऋण, दूसरा ऋषि-ऋण और तीसरा देव-ऋण है। इनमें मानव पर “पितृ-ऋण” का स्थान सर्वोपरि माना गया है। इसमें माता-पिता तथा वंश के सभी पूर्वज आते हैं। पितृ-ऋण से मुक्ति के लिए अपने पूर्वजों के मृत आत्माओं को सम्मान पूर्वक पिंडदान एवं तर्पण करने का विधान है।

इसके लिए गया तीर्थ ही सर्वश्रेष्ठ माना गया है–

“गयायां न हि तत् स्थानं, यत्र तीर्थे न विद्यते।
सानिध्यं सर्व तीर्थानां, गया तीर्थ ततो वरम्।।“- ‘वायु पुराण’।

हिंदू संस्कृति में व्यक्ति को पितरों के लिये श्राद्ध करना एक श्रेष्ठ कार्य बताया गया है —
“न तत्र वीराः जायंते, निरोगो न शतायुषः।”-‘पृथ्वी चंद्रोदय ग्रंथ’,

अर्थात् जहां श्रद्धा नहीं होता वहां वीर उत्पन्न नहीं होते और न तो नीरोग एवं शतायु ही उत्पन्न होते हैं। इस दृष्टि से गया तीर्थ की महत्ता और भी बढ़ जाती है। तभी तो विश्व के समस्त हिंदू लोग अथवा अपने माता-पिता के प्रति श्रद्धावन लोग गयाजी तीर्थ में ही आकर उन्हें श्राद्ध, पिंडदान व तर्पण करते हैं। इससे उनके पितरों को आवागमन से मुक्ति मिलती है और वे सभी स्वर्ग लोक की प्राप्ति करते हैं।

इतना ही नहीं यहां प्रवाहित अंतःसलिला पवित्र फल्गु नदी का पानी भी इतना पावन है कि इसमें पैर रखते ही प्राणी की आत्मा पवित्र और शुद्ध हो जाती है–
” गंगा पादोदक विष्णोः फल्गुर्वादि गदाधर।”
यहां महारानी अहिल्या बाई होल्कर द्वारा निर्माण करायी गई अति पावन और विशाल स्थापत्य कला का बेजोड़ आकर्षक विष्णुपद मंदिर है,जिसके दर्शन मात्र से ही आत्मा को शांति और पवित्रता की अनुभूति होती है।

इस वर्ष पितृपक्ष मेला महासंगम-2023, 23 सितंबर से 14 अक्टूबर तक आयोजित था, जिसमें में देश-विदेश से करीब 14 लाख से अधिक तीर्थ यात्री पिंडदान, तर्पण व श्राद्ध कार्य संपन्न करने आये। यहां की प्रशासन द्वारा की गई सुदृढ़ व्यवस्था और सुरक्षा को तीर्थ यात्रियों ने मुक्त कंठ से सराहा।

उनकी सुख-सुबिधा को ध्यान में रखते हुए जिला प्रशासन गया की ओर से जिलाधिकारी डा.त्यागराज एस.एम.ने गया के गांधी मैदान में विशाल “टेंट-सिटी” का निर्माण कर, उसमें 2500 यात्रियों के लिये एट ए टाईम आवासन और भोजन की सुबिधा निःशुल्क उपलब्ध करायी। देश-विदेश से आये तीर्थ यात्रियों ने इस बे-मिशाल व्यवस्था को पाकर जिलाधिकारी की भूरी-भूरी प्रशंसा की है। वरीय पुलिस अधीक्षक आशीष भारती,आइजी क्षत्रनील सिंह, आयुक्त मयंक वरबड़े तथा अन्य सभी कर्मियों की सेवा को भी श्रद्धालुओं ने सराहा।

इस आयोजित पितृपक्ष महासंगम मेले में भारतीय संस्कृति के प्रभाव से प्रभावित विदेश की महिलाओं में एक अनोखी मिसाल देखने को गयाजी में मिली। जर्मन से आयी विदेशी महिलाएं एवं पुरुष पवित्र फल्गु नदी के पश्चिमी तट पर स्थित देवघाट पर करीब एक दर्जन महिलाओं एवं पुरुष श्रद्धालुओं ने भारतीय परिधान को धारण कर अपने पितरों की आत्मा की शांति एवं उन्हें मोक्ष प्राप्ति की कामना को लेकर पिंडदान, तर्पण व श्राद्ध-कर्म कांड को संपन्न किए।

यह दृश्य पूरे पितृपक्ष मेले में इस वर्ष अनूठा दिखा और यह दृश्य देखने के लिये लोगों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। विदेशी महिलाओं में ‘अबूदाबी’ ने बताया कि पिंडदान कर हमें बहुत ही शांति मिली और अच्छा लगा। मुझे लगा कि मैं अपने पूर्वजों के प्रति जो इस पवित्र स्थल में श्रद्धा निवेदित की हूँ,वह उन्हें प्राप्त हो गई। भारतीय कल्चर और धर्म में पितरों के प्रति आस्था का यह निरूपण अनुपम है। यह जानकर मुझे बेहद अनुभूति हो रही है कि इस भीड़ भरे माहौल में भी इस स्थल पर शांति बरसती है। यह भारत और गयाजी की ही एक मात्र भूमि है,जहाँ शांति और मोक्ष दोनों की प्राप्ति एक बार होती है।

“यूक्रेन” की ‘यूलिया’ नामक प्रबुद्ध महिला ने यहां के पवित्र और शांत वातावरण तथा संस्कृति की प्रशंसा करते हुए बताया कि विदेशी महिलाओं में पिंडदान व पितरों के प्रति मोक्ष की कामना के प्रति आस्था यहां की परंपरा को देखकर हम लोगों में अब यह विश्वास उत्पन्न होने लगा है कि भारतीय परंपरा और संस्कृति पाश्चात्य सभ्यता और संस्कृति से काफी उच्च और सुदृढ़ है।

इस मौके पर पिंडदानियों तथा कर्मकांडियों में साथ दे रही जर्मन की श्वेतलाना,मरीना, मारग्रेटा, इरीना, वेलेंटिना, ग्रिचकेविच,नटालिया और केविन सहित अन्य साथ हैं।

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