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ललन सिंह का इस्तीफाः नीतीश कुमार और लालू यादव के बीच शह-मात का खेल शुरू

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं। राजनीति में उनका अगला कदम क्या होगा यह कोई नहीं जानता। दिल्ली में हुई जदयू की कार्यकारिणी की बैठक में नीतीश कुमार ने पार्टी के अध्यक्ष ललन सिंह से इस्तीफा ले लिया और अब खुद जदयू के सर्वेसर्वा बन गये।

जदयू के पार्टी नेताओं द्वारा पहले कहा गया कि यह एक रूटीन बैठक हैं, लेकिन इस बैठक में नीतीश कुमार ने अपने विरोधियों को सीधा संदेश दे दिया है कि शह-मात के खेल में उनसे बड़ा कोई खिलाड़ी भारतीय राजनीति मे नहीं है।

यही कारण है कि लगभग 3 फीसदी वोट को रिप्रजेंट करने वाले नीतीश कुमार पिछले 18 साल सेे बिहार के मुख्यमंत्री बने हुए हैं, चाहे वह एनडीए के साथ गठबंधन में हों या आरजेडी के साथ। वह मुख्यमंत्री पद के बिना किसी के साथ कोई समझौता नहीं करते।

कहा जा रहा कि नीतीश कुमार की पार्टी में सबकुछ ठीक है, लेकिन अंदरखाते में अफरातफरी है। उसकी वजह है ललन सिंह की राजद के मुखिया लालू प्रसाद यादव से बढ़ती नजदीकी। इसी कारण जदयू में टूट की स्थिति बनने लगी।

सूत्र बताते हैं कि ललन सिंह पार्टी अध्यक्ष की हैसियत से नीतीश कुमार के सामने तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने का प्रस्ताव रखा था, जिसे उन्होंने खारिज कर दिया। नीतीश कुमार के इनकार किये जाने के बाद राजद की ओर से तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने के लिए प्लान बी पर काम किया जाने लगा।

योजनाबद्ध तरीके से जदयू के 12 विधायकों की गुप्त बैठक हुई थी। इन विधायकों को या तो आरजेडी में शामिल कराये जाते या फिर ऐसी सियासी परिस्थितियां उत्पन्न की जाती, जिसके कारण नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ता।इसकी भनक गुप्त सूत्र के द्वारा नीतीश कुमार को लग गई। इसके बाद ललन सिंह को पार्टी से हटाने की पटकथा नीतीश कुमार ने लिख दी।

जब नीतीश कुमार को लगने लगा कि ललन सिंह कुछ विधायकों के साथ मिलकर तख्ता पलट करना चाह रहे हैं। इसलिए योजनाबद्ध तरीके से मीडिया में चर्चा का विषय बनाकर ललन सिंह से इस्तीफा लिया गया। ऐसा करके नीतीश कुमार ने ललन सिंह के सियासी कॅरियर पर भी ग्रहण लगा दिया। अब ललन सिंह राजद कोटे से राज्यसभा भेजे जायेंगे इसकी संभावना कम है।

नीतीश कुमार ने ललन सिंह को पार्टी के अध्यक्ष पद से हटाकर सीधे तौर पर राजद को भी संदेश दे दिया है। इस पूरे खेल के पीछे राजद के मुखिया लालू प्रसाद की भूमिका नहीं हो, ऐसा संभव नहीं है। लालू यादव हर हाल में अपने बेटे तेजस्वी यादव को बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं। लालू यादव अगले विधानसभा चुनाव परिणाम का इंतजार नहीं करना चाहते हैं। इससे पहले राजद की ओर से प्रेशर पोलिटिक्स का भी सहारा लिया गया। राजद के नेताओं द्वारा कई बार नीतीश कुमार को कहा गया कि उन्हें बिहार की राजनीति छोड़कर केन्द्र की राजनीति करना चाहिए और बिहार की सत्ता तेजस्वी यादव को सौंप देनी चाहिए। लेकिन बात अब तक नही बनी है।

एनडीए से अलग होने के बाद बिहार में राजद के साथ भले ही नीतीश कुमार सरकार चला रहे हैं लेकिन उनके साथ एक असमंजस की स्थिति बनी हुई है। क्योंकि जदयू का एक धड़ा नीतीश कुमार के इस कदम को सही नहीं ठहराया और कही न कहीं इस कदम से नीतीश कुमार की लोकप्रियता में भी गिरावट आयी है। लेकिन शह मात के खेल में वह अपने विरोधियों से दो कदम आगे चलने वाले है।

नीतीश कुमार एनडीए को भी झटका दे चुके हैं और राजद को भी। एक समझौते के तहत नीतीश कुमार एनडीए को छोड़कर राजद के साथ फिर दोस्ती बढ़ाई। नीतीश कुमार को साधने के लिए राजद ने ललन सिंह का सहारा लिया। कहा जाता है कि ललन सिंह ने ही नीतीश कुमार को एनडीए से नाता तोड़ने और आरजेडी से हाथ मिलाने में बड़ी भूमिका निभायी थी।

उसके बाद ललन सिंह ने तेजस्वी यादव को बिहार के मुख्यमंत्री बनाने का बीड़ा उठाया है। हर कार्य के लिए एक कीमत तय होती है। ललन सिंह बिहार की राजनीति में सेफजोन तलाश रहे हैं। मीडिया में चर्चा है कि ललन सिंह को राजद कोटे से राज्यसभा में भेजने की कवायद चल रही है। अगले साल राज्यसभा सांसद मनोज झा का कार्यकाल पूरा हो जायेगा। उस सीट पर ललन सिंह को आरजेडी राज्यसभा भेज सकती है। लेकिन इसके लिए तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाना जरूरी है। ललन सिंह अपनी तरफ से भरपूर कोशिश भी की।

उसके बाद पार्टी में तोड़-फोड़ की कवायद शुरू हुई। विधायकों की गुप्त बैठक की जाने लगी। यही से सारा खेल बिगड़ गया और लालू यादव की चाहत फिर अधूरी रह गई।

बिहार में जदूय-और आरजेडी की साझा सरकार भले ही चल रही है। लेकिन पहले की ही तरह लालू यादव और नीतीश कुमार के बीच शह मात का खेल फिर शुरू हो गया है। देखना यह है बिहार की सियासत में अब क्या गुल खिलता है।  जिस तरह जदयू के नेता आरजेडी पर हमलावर हैं उससे तो यही लग रहा है कि इस सरकार का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही नीतीश कुमार कही फिर ना पलटी मार दें ?

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